Savitribai Phule Jayanti 2023: हिंदुस्तान की पहली महिला टीचर की कहानी जो दिल को छू जाएगी

Savitribai Phule Jayanti 2023: इस आर्टिकल में जानें देश की पहली महिला टीचर के बारे में दिलचस्प बातें। 

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Savitribai Phule Jayanti 2023:भारत में कई ऐसी महिलाएं रही हैं जिन्होंने आने वाले समय का रुख ही बदल दिया। शिक्षा की बात जहां भी होती है वहां हम हमेशा डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन को याद करते है, लेकिन साथ ही साथ हमें एक और शिक्षक को याद करना चाहिए जिसने भारतीय शिक्षा प्रणाली का रुख ही बदल दिया था। जी नहीं ये शिक्षक अभी नहीं बल्कि 1840 के दशक में भारत में सक्रिय थी। ये हैं सावित्रीबाई फुले जो भारत की पहली महिला शिक्षक रही हैं।

8 साल की उम्र में ही सावित्रीबाई फुले की शादी 13 साल के ज्योतिराव फुले से हो गई थी। उनकी सीखने की लगन को देखते हुए ज्योतिराव ने उन्हें पढ़ना-लिखना सिखाया। महाराष्ट्र में समाज सेवा को लेकर उनका नाम बहुत ऊपर लिया जाता है। वो ब्रिटिश राज में भी वो भेदभाव को लेकर अपनी आवाज़ उठाती थीं और महिलाओं के आगे बढ़ने को लेकर काम करती थीं।

उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी में 18 स्कूल बनाए। पहला स्कूल भिडेवाडा, पुने में शुरू किया। इतना ही नहीं ज्योतिराव फुले के साथ मिलकर उन्होंने ऐसी विधवाओं के लिए सुरक्षित एक घर बनाया जिन्हें उनके परिवार वाले निकाल देते थे और उनकेसाथ यौन शोषण भी किया जाता था।

ऐसे हुई थी सावित्रीबाई की मृत्यु-

सावित्रीबाई फुले की मृत्यु 1897 में प्लेग से हुई थी। वो इसी दौरान मरीज़ों का ध्यान रख रही थीं और उसी इन्फेक्शन की चपेट में आ गईं। महाराष्ट्र सरकार ने तो पुणे की यूनिवर्सिटी को भी सावित्रीबाई फुले के नाम पर रख दिया है।

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सावित्रीबाई फुले के बारे में कुछ अहम तथ्य-

- सावित्रीबाई फुले ने सबसे पहले घर में शिक्षा ली और उसके बाद अहमदनगर के Ms. Farar's Institution में पढ़ाई की और उसके बाद Ms. Mitchell's school पुणे में पढ़ीं। इसके बाद ही वो शिक्षक के तौर पर लड़कियों को पढ़ाने लगीं।

- उनके पहले स्कूल में अलग-अलग जातियों की सिर्फ 8 लड़कियां पढ़ने आती थीं। उस समय लड़कियों का भविष्य बनाना, उन्हें पढ़ाना एक पाप समझा जाता था।

- स्कूल जाते समय सावित्रीबाई फुले को कई रूढ़िवादी लोगों के ताने सुनने पड़ते थे, उन्हें पत्थर मारे जाते थे, मिट्टी फेंकी जाती थी, सड़ी गली सब्जियां उनपर फेंकी जाती थी, कई बार उन पर गोबर भी फेंका गया था, लेकिन वो कभी अपने पथ से हिलीं नहीं।

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- 1848 में पहला स्कूल लड़कियों के लिए बनाया और उसी साल ज्यादा उम्र की महिलाओं को पढ़ाने का जिम्मा उठाया। उनकी शिक्षा सिर्फ शाब्दिक ज्ञान की नहीं रहती थी बल्कि वो महिलाओं के पूरे विकास पर ध्यान देती थीं।

- 1849-50 के बीच में उनके स्कूल में पढ़ने वाली लड़कियों की संख्या 25 से 70 हो गई और 1851 तक उन्होंने तीन स्कूल खोल लिए जिसमें 150 लड़कियां पढ़ती थीं।

- लड़कियों को स्कूल छोड़ने से रोकने के लिए सावित्रीबाई उन्हें भत्ता भी देती थीं।

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सावित्रीबाई फुले को नमन जिन्होंने अपने कदम से भारत के लोगों को आगे बढ़ने का मौका दिया। आपको उनके बारे में जानकर कैसा लगा? यह हमें इस आर्टिकल के कमेंट सेक्शन में जरूर बताएं।

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