(Dr.Meenakshi Pahuja Inspirational Journey) नारी में धैर्य, सहनशीलता, प्रेम और ममता जैसे गुण मौजूद हैं। जब भी कोई नारी किसी भी चीज को करने की ठान लेती हैं, तो उसे करके ही दिखाती हैं। वह कठिन से कठिन परिस्थितियों में अपने शक्ति का परिचय देती हुई नजर आती है।
नारी पानी की तरह होती हैं, हर सांचे में ढल जाती हैं। हर दिन महिला मेहनत करके आगे बढ़ रही हैं और अपने जीवन के बदलाव की कहानी लिखते हुए देश का नाम रोशन कर रहीं हैं।
हरजिंदगी के 'शक्ति रूपेण संस्थिता' अभियान के तहत हम आपके लिए ऐसी ही महिलाओं की कहानी लेकर आएंगे। आज हम भारत की पहली महिला मैराथन स्वीमर, सोशल एक्टिविस्ट और वर्तमान में लेडी श्रीराम कॉलेज (दिल्ली विश्वविद्यालय) में एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत डॉ. मीनाक्षी पाहुजा के बारे में जानेंगे। जिन्हें 2018 में भारत के राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविंद द्वारा नारी शक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। इन्हें 'भारत की जलपरी' कहा जाता है।
कुछ लोगों ने मीनाक्षी को उनके अधिक वजन की वजह से ट्रोल भी किया, लेकिन इन सबके बीच माता-पिता ने हर परिस्थिति में उनका साथ दिया और जीवन रूपी समंदर में उन्हें तैरना भी सिखाया।
आइए जानते हैं कि डॉ. मीनाक्षी पाहुजा ने मध्यम वर्गीय परिवार में होने से लेकर पहली महिला मैराथन स्वीमर बनने तक का सफर कैसे तय किया।
कौन हैं डॉ. मीनाक्षी पाहुजा?
डॉ. मीनाक्षी पाहुजा भारत की पहली महिला मैराथन स्वीमर हैं। जिन्हें पूरा विश्व 'भारत की जलपरी' कहता है। इनकी प्रारंभिक शिक्षा दिल्ली के मॉडर्न स्कूल से हुई, जहां से इनका नाता जल से जुड़ा और तभी से जलपरी बनने का सफर तय हुआ। मीनाक्षी के कोच की भूमिका किसी और ने नहीं, बल्कि उनके स्वर्गीय पिताजी ने निभाई।
डॉ. मीनाक्षी पाहुजा वर्तमान में लेडी श्रीराम कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं। उनका सपना है कि वह देश के सुनहरे भविष्य के लिए अपना योगदान दें।
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भारत की पहली महिला मैराथन स्वीमर बनने का सफर
- डॉ. मीनाक्षी पाहुजा की प्रारंभिक शिक्षा दिल्ली के मॉर्डन स्कूल से हुई। वहीं से इनका नाता पानी से जुड़ गया और तभी से जलपरी बनने का सफर शुरू हुआ। डॉ. मीनाक्षी पाहुजा के कोच कोई और नहीं, बल्कि उनके स्वर्गीय पिताजी थे। जो मॉर्डन स्कूल में अध्यापक थे। वहीं से उन्हें स्विंमिंग में प्रेरणा मिली।
- मीनाक्षी जी ने पांच साल की उम्र से ही स्वीमिंग सीखना शुरू कर दिया था और 9 साल की उम्र में ही जूनियर चैंपियन बनने के साथ-साथ तीन बार राष्ट्रीय चैंपियन भी रहीं।
- डॉ मीनाक्षी पाहुजा 11 साल की उम्र तक नेशनल मेडलिस्ट भी रहीं है और उसके बाद 2013, 2016 और 2018 में तीन बार लिम्का बुक रिकॉर्ड धारक भी बनीं।
- इतना ही नहीं उनका जन्म केवल पूल की तैराकी करने के लिए नहीं हुआ था। उन्होंने साल 2006 में समुद्र में तैरना शुरू किया और वहीं से मैराथन स्विंमिंग (स्विमिंग के फायदे) का एक बड़ा सपना देखा। इसके लिए उन्होंने कड़े अभ्यास और प्रयास किए।
- मीनाक्षी के लिए यह किसी चुनौती से कम नही था, क्योंकि समुद्र (समुद्र में खोजी गई चीजें) में जीव आपको कोई हानि न पहुंचाएं। इसका अनुमान भी नहीं लगाया जा सकता है।
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- साल 2006 में ही डॉ. पाहुजा ने पश्चिम बंगाल की भागीरथी नदी में पहली बार 19 किलोमीटर का सफर तय किया था।
- साल 2016 में फ्लोरिडा में भाग लेने वाली पहली भारतीय महिला बनीं।
- साल 2017 को मिन्स्क में आयोजित मैराथन में ठंडे पानी में तैरकर भारत के लिए स्वर्ण पदक जीता।
साल 2018 को जर्मनी की चौड़ी क्रॉसिंग कॉन्स्टेंस झील में सफलता हासिल की और इसी के साथ साल 2018 में भारत के राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविंद द्वारा नारी शक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।
डॉ. मीनाक्षी पाहुजा हैं दिल्ली विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर
वर्तमान में डॉ.मीनाक्षी पाहुजा दिल्ली विश्वविद्यालय के लेडी श्रीराम कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं। डॉ. मीनाक्षी पाहुजा देश का गौरव है, जिन्होंने खेल जगत में देश की पहचान को एक नया मुकाम दिया है। इतना ही नहीं मीनाक्षी जी स्विमंग और अध्यापन के साथ-साथ बहुत सोशल एक्टिविस्ट भी हैं। जो अंडर प्रिविलेज्ड बच्चों के अच्छे भविष्य के लिए पूरी लगन के साथ काम कर रहीं हैं।
डॉ. मीनाक्षी पाहुजा शिक्षा के साथ-साथ स्पोर्ट्स को देती हैं बढ़ावा
डॉ. मीनाक्षी पाहुजा कई NGOs के साथ भी जुड़ी हुई हैं। जो बच्चों को शिक्षा के साथ-साथ स्पोर्ट्स के लिए प्रेरित कर रही हैं और जितनी हो सके, उतनी मदद भी करती हैं। साथ ही विकलांग बच्चों के लिए बेहतर स्कूल सुविधाओं को भी बढ़ावा देती हैं। इनके काम के कारण इन्हें कई अवॉर्ड से भी नवाजा गया है।
हरजिंदगी के 'शक्ति रूपेण संस्थिता' अभियान के तहत हम आपके लिए ऐसी ही महिलाओं की कहानी लेकर आएंगे, जो पितृसत्तामक सोच के खिलाफ लड़ रही हैं।
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