Roopa Journey: बदलते समय के साथ लोगों ने भले ही अपनी सोच को बदल लिया है। लेकिन महिलाओं को लेकर अपने विचारों को नहीं बदल पाए हैं। इसलिए दुनियाभर में महिलाओं के खिलाफ हो रहे अपराध के आंकड़ा कम होता नजर नहीं आ रहे हैं। कभी घरेलू हिंसा की खबर सामने आती है तो कभी एसिड अटैक की इससे उस एक लड़की की जिंदगी पूरी तरह से खराब हो जाती है जो इस हिंसा का शिकार होती है।
हरजिंदगी के 'शक्ति रूपेण संस्थिता' अभियान के तहत हम आपके लिए ऐसी ही महिलाओं की कहानी लेकर आएंगे। आज हम आपको एसिड अटैक सर्वाइवर रूपा की इंस्पायरिंग स्टोरी के बारे में बताएंगे, ताकि आप भी इनके संघर्ष की दिल छू लेने वाली कहानी को जान सके।
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कहते हैं न जिंदगी के उतार चढ़ाव कभी खत्म नहीं होते हैं। ऐसी ही जर्नी रही रूपा की, मुजफ्फरनगर की रहने वाली रूपा जिनके जीवन में सबसे बड़ा दुख उस समय आया जब छोटी उम्र में उनकी मां का देहांत हो गया। इसके बाद उनके पिता ने दूसरी शादी की, ताकि बच्चों की अच्छे से परवरिश हो सके। लेकिन उनकी मां को ये नहीं पता था कि पिता के साथ दो बच्चे भी उनकी जिम्मेदारी का हिस्सा बनेंगे। इन सभी बातों से गुस्सा होकर उनकी सौतेली मां ने उनकी पढ़ाई तक छुड़वा दी और उन्हें काम करने के लिए मजबूर किया। एक दिन ऐसा आया जब उनकी मां ने उन्हें बहुत मारा। पिटाई की वजह से वो काफी जख्मी हो गई।
इसके बाद उनके मन से सिर्फ एक ही बात चल रही थी कि शायद कुछ गलत होने वाला है। उनका ये शक सच साबित हुआ और एक रात उनकी सौतेली मां ने उनके ऊपर एसिड डाल दिया। इससे उनका चेहरा पूरी तरह से खराब हो गया। वो बताती हैं कि इसके बाद भी वो नहीं रुकी जब मुझे मुजफ्फरनगर के एक अस्पताल में ले जाया गया तो वहां आकर उन्होंने जूस में जहर मिलाकर उसे पिलाने की कोशिश की ताकि मैं मर जाऊं। लेकिन कहते हैं न किसमत चाहे तो आपको दोबारा जीवनदान दे सकती है। ऐसा करने में वे ना कामयाब रही। फिर मुझे दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल लाया गया। वहां मेरा इलाज चला।
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एक ऐसी लड़की जो अपने चाचा जी के पास रहकर अपनी पढ़ाई कर रही थी, वो 8वीं क्लास के बाद दोबारा कभी भी अपनी पढ़ाई को पूरी नहीं कर पाई। एसिड अटैक के बाद उनका लगातार इलाज चला। सर्जरी हुई इसकी वजह से उन्हें दोबारा अपनी पढ़ाई पूरी करने का मौका नहीं मिला। रूपा कहती हैं कि अगर मुझे भी अच्छी शिक्षा प्राप्त हुई होती तो अपने देश के लिए हम भी कुछ अच्छा कर पाते। लेकिन शायद जीवन में इस तरह का संघर्ष लिखा था। लेकिन आज मैं एक ऐसा कार्य कर रही हूं जिसकी वजह से हर कोई मेरे ऊपर गर्व करेगा।
जब सफदरजंग अस्पताल में रूपा का इलाज चल रहा था तभी उनकी मुलाकात एक एसिड अटैक सर्वाइवर से हुई। उन्होंने छांव फाउंडेशन के बारे में बताया। यह संस्था एसिड अटैक सर्वाइवर्स के लिए कार्य करती है। इसके बाद रूपा ने एनजीओ से संपर्क किया ये बात साल 2013 की है, जहां पर उनकी मुलाकात छांव फाउंडेशन के फाउंडर आलोक दीक्षित से हुई। अपनी बातचीत में उन्होंने कई बार इनका जिक्र किया और कहा कि आलोक भाई ने हमारा काफी सपोर्ट किया। इलाज में मदद की साथ ही एक हिम्मत हमारे अंदर उजागर की और आत्मनिर्भर बनने की शक्ति दी।
वह कहती हैं कि, मुझे भी नहीं पता था कि एसिड अटैक और भी लोगों पर हो रहा है। साल 2013 से पहले ऐसा ही लगता था कि मैं ही ऐसी लड़की हूं जिसके साथ इस तरह की घटना हुई है। लेकिन जब छांव फाउंडेशन के साथ मिलकर मैंने काम किया तो पता चला कि मेरे जैसी और भी लड़कियां हैं जो इस परेशानी का सामना कर रही हैं। ऐसे में हमें उनका सपोर्ट करना चाहिए। फिर मैंने फाउंडेशन के साथ मिलकर उन लड़कियों की मदद की जो घर बैठे पढ़ाई कर रही हैं या फिर जो अपना ट्रीटमेंट कराने के लिए घर से नहीं निकल पाती हैं।
उनके लिए हम घर-घर जाकर मेडिकल किट और जरूरत का सारा सामान पहुंचाते हैं। लॉकडाउन के समय भी हमने साथियों के साथ मिलकर काफी सारे काम किए। आइडल सेवियर अवार्ड्स से हमारी संस्था को सम्मानित भी किया गया, तो अच्छा लगता है कि अब मैं भी खुद अपनी पहचान बनाने के साथ-साथ लोगों को हिम्मत देने का काम कर रही हूं।
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रूपा ने बताया मुझे लेकर लोगों की सोच में तो बदलाव आया ही है इस फाउंडेशन से जुड़ने के बाद और समाज में अपनी नई पहचान बनाने के बाद मैंने खुद भी अपने अंदर काफी बदलाव देखे हैं। वरना लोग हमेशा यही कहते थे कि, इसने खुद अपने आपको आग लगाई होगी या फिर किसी लड़के का चक्कर रहा होगा। लेकिन जब मैंने इन सभी सवालों का जवाब खुलकर दिया तो लोगों को पता चला कि इस घटना के पीछे मेरे परिवार के सदस्य का हाथ है। इस बात के सामने आने के बाद लोगों का मेरे प्रति नजरिया बदला सपोर्ट मिला। साथ ही अब जब भी कहीं एसिड अटैक होता है तो सबसे पहले हमें बताया जाता है ताकि हम उस महिला की मदद कर सके।
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छांव फाउंडेशन ने शीरोज कैफे की शुरुआत साल 2014 में की थी। इसका सबसे पहला आउटलेट आगरा में खोला गया था। इसके बाद लखनऊ और नोएडा में इसकी शुरुआत हुई। आजकल मैं नोएडा वाले कैफे में काम करती हूं। इन सभी कैफे में काम करने वाली लड़कियों की संख्या अब 35 हो गई है। ये सारी लड़कियां एसिड अटैक पीड़िता हैं, जो इस कैफे में काम करके अपने परिवार का पालन पोषण कर रही हैं या फिर अपनी पढ़ाई पूरी कर रही हैं। कई सारी ऐसी महिलाएं हैं जो इन पैसों से अपनी जैसी महिलाओं की मदद भी कर रही हैं। वह खुद से आज भी किसी भी कार्य को करने में सक्षम हैं जितनी पहले हुआ करती थी।
कई परिवार एसिड अटैक सर्वाइवर्स को आज भी घर से बाहर तक नहीं निकलने देते हैं। समाज उनपर कई तरह के सवाल उठाता है। रूपा ने इन्हीं बेड़ियों को तोड़कर आगे बढ़ने की राह को चुना। आज वो खुद अपने पैरों पर खड़ी हैं और समाज के साथ कंधे से कंधा मिलाकर अपने सपनों को पूरा कर रही हैं।
हरजिंदगी के 'शक्ति रूपेण संस्थिता' अभियान के तहत हम आपके लिए ऐसी ही महिलाओं की कहानी लेकर आएंगे, जिन्होंने एसिड अटैक के कारण जिंदगी में कई सारे संघर्षों का सामना किया और आज वो ऐसी ही महिलाओं के लिए सहारा बन रही हैं।
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