आज हर भारतवासी का सीना गर्व से चौड़ा हो गया है, क्योंकि भारतीय महिला हॉकी टीम ने इतिहास रचते हुए टोक्यो ओलंपिक के सेमीफाइनल में जगह बना ली है। उससे भी बड़ी बात यह है कि पूरे 41 साल में टीम ने पहली बार यह कारनामा कर दिखाया है। भारतीय महिला टीम के शानदार प्रदर्शन ने देशवासियों को 'चक दे' मोमेंट याद दिला दिया है। सोशल मीडिया पर बस चक दे इंडिया के नारे लग रहे हैं। इस असंभव-सी सफलता को मुमकिन बनाया है देश की 16 धाकड़ बेटियों ने। इन्होंने ऑस्ट्रेलिया, साउथ अफ्रीका, आयरलैंड जैसी टीमों को हराया। हालांकि यहां तक पहुंचना हर किसी के लिए आसान नहीं था। कड़े संघर्ष और तमाम बाधाओं के बाद वे यहां तक पहुंची हैं। किसी के परिवार ने मोटरसाइकिल बेच कर बेटी को यहां तक पहुंचाया, तो किसी लकवे के बाद भी हार नहीं मानी। तो चलिए जानते हैं रियल लाइफ की इन चक दे गर्ल्स के बारे में...
सविता पूनिया, गोलकीपर
सविता पूनिया को 'वॉल ऑफ द टीम' कहा जा रहा है। हरियाणा के सिरसा जिले की रहने वाली सविता पूनिया को उनके दादा ने हॉकी खेलने के लिए प्रेरित किया था। जब सविता 9वीं कक्षा में थी, वह तब हिसार कोचिंग के लिए आई थीं। यहां पर एक प्रैक्टिस मैच में सविता को गोलकीपर बनाया था। जब उनके कोच आजाद सिंह मलिक ने उस मैच में सविता का रिएक्शन टाइम देखा तो उनको लगा कि सविता को गोलकीपर के तौर पर ही तराशा जाना चाहिए। उस मैच से लेकर अब तक सविता लगातार अपने खेल में सुधार करती रही हैं।
दीप ग्रेस एक्का, डिफेंडर
डिफेंडर दीप ग्रेस एक्का ओडिशा के सुंदरगढ़ जिले की रहने वाली हैं। उनके परिवार में उनके बड़े भाई दिनेश भी हॉकी से ताल्लुक रखते हैं। उनके बड़े भाई भारत के पूर्व गोलकीपर हैं। उनके नक्शेकदम पर चलते हुए दीप ने भी हॉकी को चुना। हालांकि वह एक गोलकीपर बनना चाहती थी, लेकिन उनके भाई ने उन्हें डिफेंडर के रूप में खेलने के लिए प्रेरित किया। दीप के परिवार वालों ने उनका सपोर्ट किया और वह 2017 में एशिया कप जीतने वाली टीम का हिस्सा बनीं। यह उनका दूसरा ओलंपिक है।
निक्की प्रधान, डिफेंडर
झारखंड के खूंटी जिले की बेटी ओलंपिक में झंडे गाड़ रही है। निक्की झारखंड की पहली महिला हॉकी खिलाड़ी हैं, जिन्होंने ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया। नक्सलियों के गढ़ माने जाने वाले इलाके की रहने वाली प्रधान ने दावा किया कि अपने माता-पिता से मिलने के लिए वापस जाते समय वह डर जाती हैं। बड़ी होने के दौरान आर्थिक परेशानियों से जूझ रही उसकी बड़ी बहन, जो हॉकी भी खेलती थी, हॉकी स्टिक खरीदने के लिए एक मजदूर के रूप में काम करती थी।
गुरजीत कौर, डिफेंडर
अमृतसर के गांव मियादी कलां से ताल्लुक रखने वाली गुरजीत कौर ने ऑस्ट्रेलिया से जीत दिलाने में मुख्य भूमिका निभाई थी। भारत ने ऑस्ट्रेलिया को क्वार्टर फाइनल में 1-0 से हराया। भारत के लिए इकलौता गोल गुरजीत कौर ने किया था। गुरजीत टीम में डिफेंडर और ड्रैग फ्लिक स्पेशलिस्ट की भूमिका निभाती हैं। गुरजीत और उनकी बहन प्रदीप ने शुरुआती शिक्षा गांव के निजी स्कूल से ली और फिर बाद में उनका दाखिला तरनतारन के कैरों गांव में स्थित बोर्डिंग स्कूल में करा दिया गया। गुरजीत का हॉकी का सपना वहीं से शुरू हुआ। हालांकि, गुरजीत को हॉकी खिलाड़ी बनाना उनके परिवार के लिए आसान नहीं था। उनके लिए हॉकी किट खरीदने के लिए उनके पिता ने मोटरसाइकिल तक बेच दी थी।
उदिता दुहन, डिफेंडर
हिसार, हरियाणा की उदिता दुहन अपने पिता के नक्शेकदम पर चलते हुए हैंडबॉल खेल रही थीं। हॉकी तो शायद कभी उनके दिमाग में आया ही नहीं। एक दिन उनके स्कूल के हैंडबॉल कोच ने प्रैक्टिस के लिए आना बंद कर दिया। मां के कहने पर उदिता ने हॉकी स्टिक उठाई और आज वह भारतीय हॉकी टीम का हिस्सा हैं। साल 2016 में उन्होंने जूनियर टीम के लिए डेब्यू किया। 2016 में उन्हें अंडर-18 एशियाई कप में कांस्य पदक जीतने वाली टीम का कप्तान बनाया गया था।
निशा, मिडफील्डर
निशा वारसी पहली बार ओलंपिक में भाग ले रही हैं। उन्हें यहां तक पहुंचने के लिए कई मुश्किलों से जूझना पड़ा। उनके पिता सोहराब अहमद एक दर्जी थे। साल 2015 में उन्हें लकवा मार गया था, जिस वजह से उन्हें काम छोड़ना पड़ा। निशा ने अपनी ट्रेनिंग कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड जीतने वाली टीम का हिस्सा रही रानी सिवाच की अकादमी से हैं। लकवा मारने के बाद, उनकी कोच ने निशा का साथ दिया। उन्होंने उनके माता-पिता को समझाया। 2018 में निशा को भारतीय टीम के कैंप के लिए चुना गया। उन्होंने अपना इंटरनेशनल डेब्यू 2019 में हिरोशिमा में FIH फाइनल्स में किया। तब से वह नौ बार भारत का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं।
नेहा गोयल, मिडफील्डर
हरियाणा के सोनीपत की रहने वाली भारतीय मिडफील्डर नेहा गोयल के पिता के पास कमाई का साधन नहीं था। एक दोस्त ने सलाह दी कि हॉकी खेलने से अच्छे जूते और कपड़े मिलेंगे। वह छठी कक्षा में थीं, तभी से हॉकी स्टिक थाम ली। जिला स्तर का मुकाबला जीतने के बाद उन्हें दो हजार रुपए का इनाम मिला। बेटी को आगे बढ़ाने के लिए मां सावित्री फैक्ट्री में काम करने लगीं। उन्होंने 18 साल की उम्र में राष्ट्रीय टीम के लिए पदार्पण किया। 2018 से, गोयल ने एशियाई खेलों में रजत पदक जीता है और उन्हें हॉकी इंडिया मिडफील्डर ऑफ द ईयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।
सुशीला चानू, मिडफील्डर
टीम में सबसे वरिष्ठ खिलाड़ियों में से एक, सुशीला रानी रामपाल के साथ पिछले एक दशक में भारत की सबसे प्रभावशाली खिलाड़ियों में से एक रही है। भारत की ओर से ब्राजील के रियो डि जेनेरियो में आयोजित किये गए 2016 ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में प्रतिनिधित्व किया। यह सुशीला चानू का दूसरा ओलंपिक है।
मोनिका, मिडफील्डर
सोनीपत जिले के गामड़ी गांव की मोनिका मलिक को बचपन से ही पिता तकदीर सिंह ने खेलों के लिए प्रोत्साहित किया था। मोनिका ने 8वीं कक्षा के दौरान ही हॉकी खेलना शुरू कर दिया था। हालांकि, उनके पिता उन्हें पहलवान बनाना चाहते थे। बेटी की हॉकी में रुचि देखकर उन्होंने फिर अपना मन बदल लिया। मोनिका अब टीम की स्टार मिडफील्डर हैं। हॉकी के मैदान पर, राष्ट्रीय टीम की रीढ़ ने 2018 में एशिया कप, 2014 और 2018 एशियाई खेलों में कांस्य और रजत पदक जीता है।
नवजोत कौर, मिडफील्डर
नवजोत कौर के पिता एक मैकेनिक थे और चाहते थे कि उनके बच्चों में से एक तो किसी खेल को अपनाएं और उन्होंने नवजोत को हॉकी खेलने के लिए प्रेरित किया। नवजोत उन्होंने 2003 में संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान स्कूल में प्रशिक्षण शुरू किया। अंडर-19 स्तर पर अपने पहले टूर्नामेंट में ही उन्होंने शीर्ष स्थान प्राप्त किया। उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए हॉकी के 100 से अधिक अंतरराष्ट्रीय मैचों में हिस्सा लिया है। वह उस टीम में भी थीं जिसने 2016 के रियो खेलों और 2018 में विश्व कप के क्वार्टर फाइनल में जगह बनाई थी।
सलीमा टेटे, मिडफील्डर
सलीमा टेटे की हॉकी यात्रा उसी तरह शुरू हुई जैसे भारत में अधिकांश लोगों को खेल से प्यार हो जाता है - एक धूल भरे मैदान में जहां पत्थरों को हटाने की जरूरत होती है और अस्थायी गोल पोस्ट का निर्माण किया जाना था। उनका जन्म नक्सलियों के गढ़ में हुआ था, जो हॉकी का अड्डा भी है। उन्होंने परिवार के खेत में काम किया, पैसे कमाए और अपने लिए एक हॉकी स्टिक खरीदी। ओलंपिक से पहले, उन्होंने सीनियर राष्ट्रीय टीम के लिए 29 कैप जीते थे।
रानी रामपाल, फॉर्वर्ड
भारतीय महिला हॉकी टीम की कप्तान रानी रामपाल हरियाणा के कुरुक्षेत्र के शाहाबाद कस्बे की रहने वाली हैं। उनके रामपाल पिता तांगा चलाया करते थे। रानी के घर के सामने ही लड़कियों की हॉकी की एकेडमी थी। रानी जब एकेडमी में दाखिले के लिए गईं तो कोच बलदेव सिंह ने साफ मना कर दिया था, लेकिन उनके बार-बार जिद्द करने पर आखिर उन्हें ट्रेनिंग मिल ही गई। उन्होंने टीम को जूनियर विश्व कप पदक, एशियाई कप जीतने में भी मदद की है, और यह एक प्रमुख कारण था कि भारत पहली बार बैक-टू-बैक ओलंपिक के लिए क्वालीफाई कर सका।
नवनीत कौर, फॉर्वर्ड
वह टीम में आठ खिलाड़ियों में से एक हैं जिन्होंने रियो ओलंपिक में भी भाग लिया था। नवनीत कौर ने 2013 में जूनियर वर्ल्ड कप में ब्रॉन्ज मेडल जीता था। इसके बाद 2017 में एशियन कप में गोल्ड मेडल, 2018 में एशियन गेम्स में सिल्वर, 2018 में ही कॉमनवेल्थ गेम्स में चौथा स्थान पाया। 2018 में ही सीनियर वर्ल्ड कप, 2019 में ओलंपिक और 2021 में टोक्यो ओलिंपिक क्वालिफाई किया।
लालरेम्सियामी, फॉर्वर्ड
जब लालरेम्सियामी को पहली बार 16 साल की उम्र में चुना गया था, तो सियामी अंग्रेजी या हिंदी नहीं बोल सकती थी। उन्होंने ओलंपिक में जगह बनाने वाली मिजोरम की पहली महिला खिलाड़ी बनकर इतिहास रच दिया। जून 2019 में जब वे टीम के साथ थीं तभी उनके पिता की मृत्यु हो गई। इसके बावजूद उन्होंने टीम के साथ रहने का फैसला किया और FIH महिला हॉकी सीरीज में हिस्सा लिया।
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वंदना कटारिया, फॉर्वर्ड
साउथ अफ्रीका के खिलाफ पूल मैच में हैट्रिक जमाने वाली फॉरवर्ड वंदना कटारिया हरिद्वार के रोशनाबाद की रहने वाली हैं। वंदना के परिवार में ज्यादातर लोग नहीं चाहते थे कि वे हॉकी खेलें, लेकिन पिता नाहर सिंह चाहते थे कि बेटी आगे बढ़े। वंदना जब ओलंपिक की ट्रेनिंग के लिए बेंगलुरु में थीं तभी उनके पिता का निधन हो गया। कोरोना के कारण वे उनके अंतिम संस्कार में भी नहीं पहुंच सकीं। अब परिवार का कहना है कि वंदना खेल के मैदान पर पिता की आखिरी ख्वाहिश पूरा करने के लिए खेल रही हैं।
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शर्मिला, फॉर्वर्ड
शर्मिला ने 2019 में ओलंपिक टेस्ट इवेंट में टोक्यो में अंतरराष्ट्रीय स्तर से डेब्यू किया था। जब वह चौथी क्लास में थीं तभी कोच प्रवीण सिहाग से मुलाकात हुई। वह हॉकी, वॉलीबॉल और फुटबॉल में इस्तेमाल की जाने वाली गेंदों से आकर्षित थी, और वह जिस खेल को आगे बढ़ाना चाहती थी उसे चुनने में कुछ समय लगा। प्रवीण सिहाग ने शर्मिला देवी की हर स्तर पर मदद की और इंटरनेशनल लेवल का खिलाड़ी बनाया।
गोल्ड मेडल से दो कदम दूर भारतीय महिला टीम
भारतीय महिला हॉकी टीम अपने ओलंपिक गोल्ड मेडल से बस दो कदम दूर है। हालांकि इससे पहले उन्हें सेमीफाइनल के अपने मुकाबले में अर्जेंटीना की टीम को हराना होगा। यहां तक पहुंचने के लिए टीम ने तीन बार की चैंपियन ऑस्ट्रेलिया की टीम को 1-0 से शिकस्त किया था। दोपहर 3:30 बजे उनकी भिड़ंत अर्जेंटीना से होगी।
भारतवासियों की निगाहें अपनी लाडली बेटियों पर टिकी है। हमें उम्मीद है कि उनका खेल शानदार होगा। महिला हॉकी टीम को हमारी ओर से ढेरों बधाई। उम्मीद है भारतीय महिला हॉकी टीम के बारे में जानकर आपको अच्छा लगा होगा। ऐसे ही अन्य खबरों के लिए जुड़े रहें हरजिंदगी के साथ।
Image Credit: www.instagram.com & bridge.in
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