'All Humans Are Equal and Born Free,' यानि हर इंसान एक समान है और जन्म से स्वतंत्र है। यह लाइन आपने अपने स्कूल की किताबों में जरूर पढ़ी होगी। लेकिन क्या आपको पता है कि संयुक्त राष्ट्र संघ के Universal Declaration of Human Rights के आर्टिकल 1 के में इस वाक्य को 'All men are equal and born free' लिखा गया था? जी हां और इसे 'All men' से 'All Humans' करवाने वाली कोई और नहीं, बल्कि हंसा जीवराज मेहता ही थीं। वह हंसा ही थी, जिन्होंने जेंडर इश्यू के मुद्दे को उठाया।
#DYK? Indian reformist #HansaMehta is credited with rephrasing "All
— United Nations in India (@UNinIndia) April 3, 2019
men" to “All human beings are born free & equal" in the #UDHR. Without her contribution, we would likely be speaking of the Universal Declaration of the Rights of Man rather than of #HumanRights! #WednesdayWisdompic.twitter.com/PYwWEnsEgF
महिलाओं के समान अधिकार की बात की और उसके लिए लड़ी भी। 14 अगस्त 1947 की रात को जवाहर लाल नेहरू और राजेंद्र प्रसाद के साथ खड़े होकर आजादी की सुबह देखने का इंतजार करने वालों में एक हंसा मेहता भी थीं। उन्होंने राजेंद्र प्रसाद को तिरंगा झंडा सौंपते हुए कहा था, 'हमने भी आज़ादी की लड़ाई लड़ी, आजादी के लिए बलिदान दिए। आज हमने वो लक्ष्य प्राप्त कर लिया है। आजादी की ये निशानी (तिरंगा) देते हुए एक बार अपने आप को देश सेवा के लिए समर्पित करते हैं'।
उस समय संविधान में 389 सदस्य नियुक्त किए गए थे, जिसमें से 15 महिलाएं थी। उन महिलाओं में एक नाम हंसा मेहता का भी था। हंसा ने भरी सभा में कहा थी कि देश की हर महिला को बराबर का हक मिलना चाहिए, फिर चाहे वो किसी भी समुदाय से ताल्लुक क्यों ना रखती हो। ऐसी सशक्त महिला थीं हमारे देश की पहली महिला वाइस चांसलर हंसा जीवराज मेहता, आइए उनके बारे में और जानें।
सूरत में दर्शनशास्त्र के प्राध्यापक मनुभाई मेहता के घर 3 जुलाई, 1897 को हंसा मेहता का जन्म हुआ था। उनके नाना, नंदशंकर मेहता ने गुजराती का पहला उपन्यास 'करन घेलो' लिखा था। उन्हें बचपन से ही शिक्षित होने के लिए बड़ा प्रेरित किया गया था। अपनी ग्रेजुएशन पूरी करने के बाद वह पत्रकारिता की पढ़ाई करने के लिए इंग्लैंड गईं और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में पढ़ाई की।
इंग्लैंड में उनकी मुलाकात सरोजिनी नायडू और राजकुमारी अमृत कौर से हुई थी, जिसके बाद उनके अंदर देश प्रेम जागा। साल 1922 था, जब सरोजिनी नायडू ने हंसा को महात्मा गांधी से मिलवाया। महात्मा गांधी से मुलाकात ने हंसा पर गहरा प्रभाव छोड़ा। इस एक मुलाकात ने उनके जीवन में कई बड़े बदलाव ला दिए थे।
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बापू से मिलने के दौरान, हंसा जीवराज मेहता से मिली। जीवराज मेहता बापू के डॉक्टर थे। दोनों एक-दूसरे को पसंद करने लगे, लेकिन जात एक बड़ा मुद्दा थी। दरअसल हंसा एक नागर ब्राह्मण थी और जीवराज वैश्य। दोनों की शादी के लिए परिवार नहीं माना, लेकिन हंसा को इससे फर्क नहीं पड़ा और उन्होंने जीवराज मेहता से शादी कर ली। हंसा मेहता ने अपनी किताब 'इंडिय वुमेन' में उल्लेख किया है कि उनके आदर्श और महाराजा सयाजीराव III, बड़ौदा के गायकवाड़ इस अंतरजातीय विवाह के बारे में जानकर खुश थे। उन्होंने ही इस शादी के लिए हंसा के पिता को मनाया और खुद भी शादी की सभी रस्मों में शामिल हुए।
1 मई 1930 को हंसा ने बापू के कहने पर देश सेविका संघ की कमान संभाली। महिलाओं के गुट ने विदेशी कपड़ों, शराब की दुकानों को बंद करवाने के लिए सत्याग्रह आंदोलन किया। वह बॉम्बे कांग्रेस कमिटी की प्रमुख बन गईं। उन्हें लोग 'डिक्टेटर ऑफ़ बॉम्बे' कहते थे। आजादी के आंदोलन का जाना-माना चेहरा बनकर उभरी हंसा की गिरफ्तारी हुई और उन्हें 3 महीने की जेल हुई।
ब्रिटिश अधीन भारत में बंबई में 1936-37 में प्रोविंशियल इलेक्शन हुए, जिसमें उन्होंने बॉम्बे लेजिस्लेटिव काउंसिल का चुनाव लड़ा और जीत गईं। हंसा को पार्लियामेंट्री सेक्रेटरी ऑफ द एजुकेशन एंड हेल्थ डिपार्टमेंट का सेक्रेटरी बनाया गया। 1946 में हंसा जीवराज मेहता को ऑल इंडिया वूमेन कॉन्फ्रेंस का प्रमुख बनाया गया। इसके 18वें सेशन में उन्होंने इंडियन वुमेन चार्टर ऑफ राइट्स एंड ड्यूटीज बनाने का सुझाव दिया था।
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1949 में हंसा को बड़ौदा विश्वविद्यालय का वाइस चांसलर बनाया गया। उन्होंने यूनिवर्सिटी में होम साइंस, सोशल वर्क, फाइन आर्ट्स फैसिलिटी की स्थापना की, ताकि शिक्षा क्षेत्र में बदलाव हो। अपनी एक रिपोर्ट में उन्होंने लिखा था, 'चाहे महिलाओं को कितनी भी आजादी मिल जाए लेकिन पति और पत्नी के रोल अलग हैं। घर को सजाना-संवारना, संभालना महिलाओं के लिए हाई आर्ट है लेकिन बिना शिक्षा के ये कर पाना कई महिलाओं के लिए मुश्किल है।'
हंसा जीवराज मेहता ने अपने जीवनकाल में 15 किताबें लिखीं। उन्हें 1959 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। इसके बाद वर्ष 1964 में वह भारत की हाई कमिश्नर बनकर लंदन गई थी और 4 अप्रैल, 1995 को महिलाओं और पूरी मानव जाति के लिए लड़ने वाली हंसा ने दुनिया को अलविदा कह दिया था।
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Image Credit: livehistoryindia
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