POSITIVE INDIA: बराबरी वाली एक शादी जो बन गई मिसाल, दूल्हे के पीछे नहीं साथ चलकर दुल्हन ने लिए फेरे

बराबरी वाली एक शादी, जहां दूल्हा और दुल्हन साथ में फेरे ले रहे थे, दुल्हन को सिंदूर लगाया गया तो दूल्हे को टीका भी लगाया गया। 

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आज हम सभी एक ऐसे दौर में आ गए हैं जहां समाज में रहकर नहीं समाज से अलग होकर कोरोना वायरस से लड़ा जा सकता है। हालांकि, ये काम थोड़ा मुश्किल है। अकेलापन जो कई निगेटिव बातें दिमाग में लाता है वो कई मामलों में नुकसानदेह हो सकता है। पर ऐसे समय में जब आधी दुनिया घर के अंदर है तब निगेटिव सोच से लड़ने के लिए क्यों न कुछ पॉजिटिव पढ़ा जाए। HerZindagi और जागरण न्यू मीडिया ने नेगेटिव माहौल को पॉजिटिव बनाने के लिए #PositiveIndia मुहीम छेड़ी है। ऐसे में शादी-ब्याह से जुड़ी एक ऐसी पॉजिटिव कहानी हम आपको बताने जा रहे हैं जो दिल को खुश कर देगी।

शादी और शादी से जुड़े रीति-रिवाज भारतीय मान्यताओं के अनुसार बहुत जरूरी होते हैं। ये रीति-रिवाज इंसानों के लिए बनाए गए हैं लेकिन ये भी समझने वाली बात है कि इन्हें इंसानों ने ही बनाया है। नए जमाने में अब नए रीति-रिवाज में चल रहे हैं। शादी को लेकर अब पुरानी बंदिशें तोड़ी जा रही हैं। कहीं पर तो लड़कियों का कन्यादान नहीं किया जा रहा है क्योंकि उन्हें लगता है कि कन्या का दान करने की जरूरत नहीं तो कहीं पर शादी में किताबें दान दी जा रही हैं। पुराने जमाने से हमारे लिए जो भी रीति रिवाज बनाए गए हैं उन्हें मानना तो ठीक, लेकिन अगर कोई नई पहल करे तो ये सबसे ज्यादा अच्छी बात हो सकती है।

याग्निक और कमला की शादी भी कुछ ऐसी ही है जहां रीति-रिवाज़ों को बराबरी के स्तर पर आंका गया है। उन्होंने अपनी शादी से नया बेंचमार्क स्थापित किया है।

फेरों के लिए एक साथ चले-

हमेशा फेरों के वक्त लड़की को पीछे और लड़के को आगे रहना होता है। लेकिन इस शादी में कुछ अलग हुआ। यहां पवित्र अग्नि के आस-पास फेरे साथ में लिए गए। फेरे जो शादी के वचन के बारे में बताते हैं वो साथ में ही लिए गए। इस जोड़े ने एक साथ अग्नि के आस-पास फेरे लगाए और पुजारी के मंत्रों के बीच अपने वचन लिए।

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यहां दूल्हे ने पहल नहीं की बल्कि दुल्हन और दूल्हे ने साथ में 7 जन्मों का बंधन बांधा। ये सब शुरू हुआ जब कमला और याग्निक ने सोचा कि वो रस्मों को समझेंगे। दूल्हा और दुल्हन दोनों ही ये नहीं चाहते थे कि वो सिर्फ शादी के रीति-रिवाज निभाएं, मंत्र सुनें, लेकिन इन्हें समझें नहीं। क्योंकि ये तेलुगु और पंजाबी शादी थी तो ये जोड़ा ये भी चाहता था कि दोनों ही संस्कृतियों के सबसे अच्छे रिवाज मिलाकर ये शादी की जाए। ताकि दोनों ही परिवार इसकी अहमियत समझ पाएं।

पंजाबी ट्रेडिशन के हिसाब से चार फेरे होते हैं जहां दूल्हा आगे रहता है, लेकिन ऐसा करने की जगह इस जोड़े ने एक साथ अग्नि के फेरे लगाने की सोची। एक दूसरे का हाथ पकड़ कर बराबरी की हिस्सेदारी रखते हुए, जिंदगी के हर सुख और दुख का बराबरी से साथ देते हुए एक दूसरे का साथ निभाने का वादा किया। हुई ना ये एक खूबसूरत रिश्ते की शुरुआत?

Herzindagi ने कमला से बात की और उन्होंने अपनी शादी का एक्सपीरियंस हमारे साथ शेयर किया।

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यहां सबसे अहम बात ये है कि कमला और याग्निक ने फेरों वाली रस्म का मतलब समझा। उन दोनों ने ये बात समझी की यहां दो लोग एक दूसरे के साथ जिंदगी भर का साथ निभा रहे हैं और ऐसे में उन्हें साथ ही तो चलना चाहिए। इसके बारे में बात करते हुए कमला ने कहा, 'हम दोनों ने इस रस्म का मतलब समझने की कोशिश की। हमारा परिवार और पंडित सभी ने ये समझा और सभी इस बात के लिए मान गए कि हम साथ-साथ चलेंगे। तो बस हमारी शादी में वही हुआ जो हमने प्लान किया था।'

इस जोड़े ने अपनी शादी की रस्मों को हिंदी में ट्रांसलेट भी करवाया ताकि गेस्ट हर रस्म का मतलब समझ सकें। कमला और याग्निक की शादी गोवा के एक रिजॉर्ट में हुई थी और शादी के रीति-रिवाज और जश्न तीन दिनों तक चलते रहे थे। इस शादी को बराबरी का बनाने के लिए दोनों ही पक्षों ने मेहनत की थी और वो सफल भी रहे।

हिंदुस्तान में शादी के मायने कुछ और ही हैं और कई सारी रस्मों और कायदों को निभा कर शादी को पूरा किया जाता है, हममे से कई लोग ये सोच भी नहीं पाते कि हम किसी रस्म को बदलें, लेकिन इस जोड़े ने रस्मों के साथ बराबरी के बारे में भी सोचा।

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ऐसे ही कन्यादान को भारत में महादान कहा जाता है। कन्यादान की रस्म हर शादी में निभाई जाती है जिसका मतलब होता है कि कन्या को किसी और को दान किया जा रहा है। पर यहां दुल्हन के परिवार ने इस रस्म को पूरी तरह से नकार दिया और शादी में कन्यादान नहीं हुआ।

इसके बारे में दुल्हन ने कहा, 'हम चाहते थे कि शादी में ऐसी रस्में हों जो एक बराबर हों। हमने कुछ जंग जीतीं और कुछ हारीं। हमने कन्यादान की रस्म नहीं की और न ही वो रस्म की जहां दुल्हन के माता-पिता दूल्हे के पैर धोते हैं।'

इस जोड़े ने लड़की वालों को कमतर दिखाने वाली कोई भी रस्म नहीं की है। सदियों से दुल्हन के माता-पिता दूल्हे के पैर धोते हैं। ऐसा कहीं भी नहीं देखा गया कि दूल्हे के माता-पिता दुल्हन के पैर धो रहे हों। ऐसे में क्या वाकई ये कहा जा सकता है कि शादी में रस्में बराबरी की होती हैं? यकीनन इस जोड़े ने एक बहुत अच्छी पहल की है जहां इस तरह के रीति-रिवाजों को दरकिनार कर दिया गया है।

भारत में अक्सर महिलाओं को सिखाया जाता है कि वो शांत रहें और पैसे के मामले में ज्यादा दखल न दें। हालांकि, इस शादी में ऐसा नहीं था। यहां पर कमला को किसी भी ऐसे मामले से दूर नहीं रखा गया था। कमला और याग्निक हर मामले में बराबर थे।

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शादी की शॉपिंग में भी याग्निक ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। कमला का कहना है, 'साफ तौर पर हमें इस बात को जनरलाइज नहीं करना चाहिए कि पुरुष शॉपिंग पर नहीं जा सकते। याग्निक नेब्लाउज डिजाइनके लिए बॉर्डर खरीदते समय भी मेरा साथ दिया।'

सिंदूर पर भी बराबरी का हक-

जहां एक ओर दोनों पक्षों ने बराबरी का फैसला लिया था वहां शादी का सिंदूर सिर्फ लड़की के हिस्से क्यों आता। कमला और याग्निक ने इस रस्म को भी बराबरी का बनाया। कमला ने कहा, 'याग्निक ने अपने माथे पर टीका लगवाने का फैसला लिया। शादी दोनों की हो रही है तो फिर सिर्फ मैं ही क्यों शादी के निशान रखूं।'

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बराबरी की हर बात-

हम लोग इस वक्त किसी और दौर में जी रहे हैं। कई रस्में ऐसी हैं जिन्हें बदलना जरूरी है, लेकिन शुरुआत कहीं से तो करनी होगी ना। कमला श्रीपदा ने कहा, 'आप अभी भी कुछ प्राचीन चीज़ों को करते होंगे, लेकिन कम से कम हम इसे खुले विचारों से देख तो रहे हैं। अगर आप बराबरी की बात करना शुरू कर रहे हैं तो कम से कम लोग इस बारे में सोचेंगे तो सही। ये रिवाज बहुत पुराने हैं और ये अगर आप हर किसी रिवाज को बदल नहीं रहे तो आप कम से कम कुछ अलग करने की कोशिश तो कर सकते हैं।'

यकीनन इक्कीसवीं सदी में जिस तरह हम महिला सशक्तिकरण की बात कर रहे हैं वहां आंख बंद कर महिलाओं को कमतर दिखाने वाले रीति-रिवाजों को मानना कहीं न कहीं लड़की को नीचा दिखाने जैसा है। इंसान बदलाव से डरता है, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि हर गलत चीज़ को आंख बंद कर माना जाए।

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