धारा 377 पर फैसला 6 सितंबर 2018 को सुनाया गया था। अब पूरे एक साल बाद इसे लेकर अभी भी लोगों के मन में संशय है। फैसला तो सुना दिया गया था और ये बात भी कह दी गई थी कि समलैंगिकता अब अपराध नहीं है, लेकिन उसे लेकर अभी तक कुछ भी साफ नहीं है। भारत के LGBTQ समुदाय के अधिकारों के लिए लड़ने वाले लोगों का चेहरा बनी अंजली गोपालन के अनुसार अभी आगे बहुत कुछ करना बाकी है। 17 साल से इसे लेकर लड़ाई जारी थी और 1 साल पहले उस लड़ाई का परिणाम दिखना शुरू हुआ है।
भारत के LGBTQ समुदाय के लिए अभी भी जंग जारी है। उन लोगों के लिए अभी भी जिंदगी बहुत मुश्किल है। ऐसे लोग अपनी पूरी जिंदगी पर्दे के पीछे गुजारने को मजबूर हैं। धारा 377 को लेकर अंजली गोपालन ने Herzindagi.com से खास बात चीत की।
सवाल: पिछले एक साल में इस फैसले के बाद क्या बदलाव आए हैं?
जवाब: देखिए आर्टिकल 377 सिर्फ थोड़ा सा बदला है। होमोसेक्शुएलिटी को अब अपराध नहीं माना जाएगा ऐसा वर्डिक्ट था। कोई भी अधिकार अभी लोगों को नहीं मिले हैं। लोगों के दिमाग में और जहन में बदलाव लाना आसान नहीं है उसके लिए काफी वक्त लगेगा। थोड़ा बहुत तो बदलाव आएगा, कम से कम हम ये तो नहीं कह पाएंगे कि ये भारतीय घटना नहीं है और ये सिर्फ विदेशी कल्चर है। इससे एक बात तो हुई है कि बस इसका जवाब मिल गया, लेकिन बदलाव के लिए लोगों के दिमाग में इसे बैठाना होगा। ये बिना अधिकारों के संभव नहीं है।
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सवाल: 1 साल तो हो गया, सरकार को अब और क्या करना चाहिए?
जवाब: मुझे लगता है कि जो अधिकार सभी तरह से बराबर मिलने चाहिए। किसी भी डेमोक्रेसी में आप किसी एक को उसके राइट्स दे रहे हैं और दूसरे को नहीं दे रहे ऐसा कैसे हो सकता है। अगर कोई समलैंगिक समुदाय से है तो उनको शादी करने का, संतान का, या ऐसे कई सारे अधिकार नहीं हैं। जब तक अधिकार मिलेंगे ही नहीं तो हम ये कैसे कह सकते हैं कि आप एक लोकतांत्रिक देश में रह रहे हैं। ये तो बिलकुल ही मुमकिन नहीं है।
सवाल: हमारे देश में जानवरों के लिए भी कोई अधिकार नहीं है, आर्टिकल 377 ही इस बारे में बात करती है, आपको क्या लगता है इसके बारे में सरकार को कुछ करना चाहिए?
जवाब: जब हम अधिकारों की बात करते हैं तो हम सिर्फ इंसानों की बात करते हैं, पर मेरा मानना ये है कि अधिकार तो सभी के होते हैं। ये बहुत जरूरी है कि हम जानवरों के अधिकारों को लेकर काम करें, क्योंकि जिस तरह से हम अपने समाज में जानवरों के साथ बर्ताव कर रहे हैं वो बहुत ही खराब है। हम ये भी चाहते थे कि आर्टिकल 377 कानून में कुछ हद तक रहे क्योंकि जानवरों के खिलाफ यौन अपराध का जिक्र इसी धारा में है।
हमारे देश में जानवरों के साथ सेक्स बहुत आम है और या तो लोग इसके बारे में जानते नहीं हैं और जानते हैं तो उसके बारे में बात नहीं करते। ये बहुत जरूरी है कि हम इसके बारे में बात करें और कड़े नियम भी बनाएं। देश में जानवरों के खिलाफ अपराध का जुर्माना सिर्फ 50 रुपए है और ऐसे में तो लोग उनके खिलाफ जुर्म करेंगे ही। और हमारे कल्चर की सोच जो है, जिस तरह से हम औरतों और बच्चों के साथ व्यवहार करते हैं वैसे ही जानवरों के साथ भी। जिसकी जुबान नहीं है उसे दबाकर रखिए बस यही हमारा समाज है।
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सवाल: हमारे पाठकों के साथ कुछ आप शेयर करना चाहेंगी जो आपको लगता है कि हमारे पाठकों को जाननी चाहिए?
जवाब: मैं जरूर शेयर करना चाहूंगी क्योंकि आप कह रही हैं कि आपकी ज्यादातर रीडर्स महिलाएं हैं तो मैं ये कहना चाहूंगी कि भारत में महिलाओं की सेक्शुएलिटी की बात ही नहीं होती। यहां तक कि समलैंगिकों के लिए भी मर्दों की बात होती है, महिलाओं की बात होती ही नहीं है। और जब बात आती है महिलाओं पर पड़ रहे प्रेशर की तो उन्हें शादी के लिए फोर्स किया जाता है। वो खुलकर अपनी सेक्शुएलिटी के बारे में बात ही नहीं कर पाती हैं। महिलाओं को शादी के बाद स्ट्रेस बहुत होता है अपनी सेक्शुएलिटी को लेकर। तो मुझे लगता है कि जो लोग कहीं न कहीं इस समुदाय से हैं वो या तो दूसरे लोगों से मिलें जो इससे गुजर चुके हैं और कहीं इसमें फंसे न रह जाएं कि सिर्फ हम ऐसे हैं।
जो लोग समलैंगिक होते हैं उनके लिए बहुत प्राकृतिक है समलैंगिक होना। पर लोगों के दबाव में उन्हें ये लगता है कि वो बहुत अलग हैं। समलैंगिकता को लेकर संशय नहीं हो सकता, लेकिन महिलाओं को इससे बहुत परेशानी होती है। अगर हमारे समाज में कोई महिला ये कहती है कि वो समलैंगिक है या उसे जीने के लिए किसी पुरुष की जरूरत नहीं वो खुश रहेगी तो बहुत विवाद होता है। सब महिलाओं को खुद को इंडिपेंडेट होना बहुत जरूरी है। अगर आप इंडिपेंडेट नहीं हो और दूसरों पर निर्भर रहती है तो उसके लिए बहुत मुश्किल हो जाता है स्टैंड लेना।
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