Mother Teresa 112th Birth Anniversary: 18 की उम्र में छोड़ा था घर, ये था मदर टेरेसा का असली नाम

मदर टेरेसा का जन्मदिन 26 अगस्त को होता है। आइए उनकी 112 वीं सालगिरह पर जानें उनकी जिंदगी से जुड़े कुछ फैक्ट्स। 

 
Mother Teresa  Anniversary

मदर टेरेसा, एक आम महिला, एक नन या अब एक संत। आप उन्हें कैसे देखती हैं? मदर टेरेसा वो इंसान थीं जिन्हें उनके काम की वजह से सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में जाना जाता था। मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त 1910 को हुआ था। उनकी मृत्यु 5 सितंबर 1997 को कोलकाता में हुई थी। उन्होंने पूरा जीवन लोगों की सेवा में लगा दिया था। 2022 में मदर टेरेसा की 112वीं सालगिरह है और इस दिन हम आपको उनके बारे में कुछ खास बातें बताने जा रहे हैं।

दुनिया की कई महान हस्तियोंमें से एक मदर टेरेसा के जन्मदिन पर आज उनसे जुड़ी कुछ बातें करते हैं। उनके जीवन से जुड़े कई तथ्य लोगों को पता ही नहीं होते। लोगों को ये लगता है कि मदर टेरेसा भारत में ही पैदा हुई थीं। जबकि ऐसा नहीं है।

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1. जन्म हुआ था Macedonia में

मदर टेरेसा का जन्म Macedonia के Skopje शहर में हुआ था। वो अच्छी आर्थिक स्थिति वाले परिवार में पैदा हुई थीं। उनके परिवार के पास दो घर थे। उन्हें जन्म के एक दिन बात ही बैप्टाइज (ईसाई रस्म) किया गया था। इसलिए वो अपना जन्मदिन 27 अगस्त को मानती थीं।

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2. ये था असली नाम

मदर टेरेसा का असली नाम एग्नेस था। पूरा नाम था Agnes Gonxha Bojaxhiu, वो आल्बेनियन परिवार में पैदा हुई थीं। उन्हें बचपन से ही मिशनरी बहुत आकर्षित करते थे, 12 साल की उम्र से ही उन्हें पता था कि उनका मकसद क्या है।

3. 18 साल की उम्र में छोड़ा घर

मदर टेरेसा ने 18 साल की उम्र में घर छोड़ दिया था और सिर्फ घर ही नहीं देश भी छोड़ दिया था। वो Sisters of Loreto से जुड़ गई थीं और इसके लिए वो आयरलैंड गई थीं। इसके बाद वो जब तक जीं तब तक अपने घर वालों से नहीं मिलीं। आयरलैंड में ही उन्होंने अंग्रेजी सीखने के लिए मेहनत की और फिर दार्जीलिंग के लोरेटो कॉन्वेंट में आ गईं। 1931 को नन बनने की शपथ ली थी उन्होंने।

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4. इसलिए रखा था Teresa नाम

उन्होंने अपना नाम त्याग कर उन्होंने टेरेसा नाम चुना। वो अपने नाम से संत थेरेस ऑस्ट्रेलिया और टेरेसा ऑफ अविला को सम्मान देना चाहती थीं इसलिए उन्होंने टेरेसा नाम चुन लिया।

5. कोलकता में किया सबसे ज्यादा काम

कोलकता में सेंट मैरीज में इतिहास पढ़ाना शुरू कर दिया और वहां वो 15 सालों तक रहीं। उन्हें गरीबों की हालत देखकर बहुत दुख होता था। 1946 में दार्जिलिंग शहर की रिट्रीट के दौरान ही उन्होंने कहा कि उन्हें भगवान का संदेश मिला है कि इस देश में सबसे गरीब लोगों की मदद करनी है। उन्हें दो साल लग गए अपने इस काम को पूरा करने में। उन्होंने नर्सिंग का कोर्स किया। उसके बाद लोगों की मदद में जुट गईं।

6. भीख मांगकर भरा लोगों का पेट

मदर टेरेसा ने अपनी ड्रेस बदलकर साड़ी कर ली ताकि वो लोगों के बीच आसानी से रह पाएं। उन्हें पहले आसान जीवन जीने की आदत थी, लेकिन झोपड़ी में रहना पड़ा और भीख मांगकर उन्होंने लोगों का पेट भरा। उन्हें कई बार कॉन्वेंट वापस जाने का मन भी किया क्योंकि स्लम की जिंदगी काफी मुश्किल थी। पर वो टिकी रहीं और कोढ़, प्लेग आदि बीमारियों के मरीज़ों की भी मदद की। 1948 के दौर में भारत वैसे ही अच्छी हालत में नहीं था ऊपर से गरीबों को ऐसे हालात में कोई ठीक से नहीं रखता था।

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7. नोबेल पुरस्कार की रकम दान दे दी थी

मदर टेरेसा ने नोबेल पुरस्कार से मिली राशी दान दे दी थी। इतना ही नहीं, उन्होंने कहा था कि उनके लिए कुछ ज्यादा फंक्शन भी नहीं किया जाए। नोबेल पुरस्कार मिलने पर $192,000 (1,38,42,912 रुपए) का बजट एक बड़े जलसे के लिए होता है। उनका कहना था कि ये बजट भारत के गरीबों की मदद में लगा दिया जाए।

8. आल्बेनिया में एक एयरपोर्ट है इनके नाम

आल्बेनिया का अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट मदर टेरेसा के नाम बनाया गया है। इस एयरपोर्ट का नाम Aeroporti Nene Tereza है।

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