पति के प्यार में बन गई थीं भारत की पहली महिला हाईकोर्ट जज, न्यायाधीश बनने से पहले जीता था चुनाव

हमेशा से महिलाओं ने अपने अधिकारों को पाने के लिए संघर्ष किया है और भारत में एक ऐसा दौर भी था, जब महिलाओं को कानून की पढ़ाई करने की अनुमति तक नहीं थी। उस समय देश में हाईकोर्ट की पहली महिला जज अन्ना चांडी बनी थीं।  
anna chandy became first indian female high court judge inspired by support of her husband

महिला दिवस उन महिलाओं की उपलब्धियों और योगदान का जश्न मनाने का अवसर है, जिन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में बदलाव लाया। भारतीय इतिहास में अन्ना चांडी एक ऐसी ही प्रेरणादायक महिला थीं, जिन्होंने चुनौतियों का सामना करते हुए देश की पहली महिला हाईकोर्ट जज बनने का गौरव प्राप्त किया। उनकी सफलता व्यक्तिगत नहीं थी, बल्कि भारत में लैंगिक समानता की दिशा में उनके द्वारा बड़ा गया एक कदम था। अन्ना चांडी के इस सफर में उनके पति ने हमेशा उनका साथ दिया, जिससे साबित होता है कि महिलाओं को सशक्त बनाने में पुरुषों की भागीदारी कितना महत्व रखती है।

आज हम इस आर्टिकल में देश में हाईकोर्ट की पहली महिला जज अन्ना चांडी के जीवन और उनको मुकाम हासिल करने में किन-किन बाधाओं का सामना करना पड़ा, इसके बारे में बताने वाले हैं।

अन्ना चांडी प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

4 मई 1905 को त्रावणकोर के त्रिवेंद्रम में अन्ना चांडी का जन्म एक सीरियन ईसाई परिवार में हुआ था। उस समय, केरल अन्य राज्यों की तुलना में थोड़ा प्रगतिशील माना जाता था, खासकर महिलाओं की शिक्षा के मामले में। हालांकि, जब अन्ना चांडी ने त्रिवेंद्रम के सरकारी लॉ कॉलेज में दाखिला लिया, तो उन्हें कई तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ा। उनका क्लास में मजाक उड़ाया जाता था, लेकिन अन्ना अपने इरादों की पक्की थीं और पढ़ाई में अच्छी थीं।

कानून की डिग्री हासिल करने वाली पहली महिला

First female high court judge in India

साल 1926 में अन्ना चांडी ने पोस्ट-ग्रेजुएशन पूरा कर लिया था और वह त्रावणकोर में कानून की डिग्री हासिल करने वाली पहली महिला बन गई थीं। साल 1929 में उन्होंने बैरिस्टर के रूप में अपने करियर की शुरुआत की थी। वह हमेशा से महिलाओं के अधिकारों और लैंगिक मुद्दों को लेकर मुखर रही थीं। बात साल 1928 की है, जब राज्य में एक बड़ा मुद्दा चर्चा का विषय बना हुआ था। मुद्दा था, क्या महिलाओं को सरकारी नौकरियों में आरक्षण मिलना चाहिए या नहीं? इस पर सबकी अलग-अलग राय थी।

इस विषय पर त्रिवेंद्रम में एक सभा का आयोजन किया गया था, जिसमें कई विद्वान और विचारकों ने भाग लिया था। उन्हीं में से एक थे टी.के. वेल्लु पिल्लई, जिन्होंने कहा था कि शादीशुदा महिलाओं को सरकारी नौकरियों में नहीं आना चाहिए। यह सुनकर, सभा में उपस्थित 24 साल की अन्ना चांडी चुप नहीं रह सकीं। वह मंच पर गईं और उन्होंने महिलाओं को सरकारी नौकरियों में आरक्षण देने के पक्ष में बोलना शुरू किया। उनके तर्क और तथ्य इतने मजबूत थे कि ऐसा लग रहा था जैसे वह कोर्ट में अपनी बात रख रही हों। इसके बाद, अन्ना चांडी एक वकील बनकर सामने आईं।

चुनाव लड़ी और जीती

साल 1931 में अन्ना चांडी ने त्रावणकोर में श्री मूलम पॉप्युलर एसेंबली के लिए चुनाव लड़ा, लेकिन उनके विरोधियों को महिला का चुनाव लड़ना रास नहीं आया। अन्ना पर कई तरह के आरोप लगाए और उनके कैरक्टर पर उंगलियां भी उठाईं। परिणामस्वरूप वह चुनाव हार गईं, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। अगली बार उन्होंने फिर से चुनाव लड़ा और इस बार जीत हासिल की।

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देश की पहली महिला हाईकोर्ट जज

Anna Chandy biography

चुनाव जीतने के बाद, अन्ना चांडी की तरफ त्रावणकोर सरकार का ध्यान आकर्षित हुआ। उन्होंने उनकी काबिलियत देखकर, 1937 में उन्हें मुंसिफ पद पर नियुक्त कर दिया। मुंसिफ पद अदालत में सबसे निचला न्यायाधीश पद होता है, लेकिन इस पर को संभालने वाली भारत की पहली महिला जज अन्ना चांडी थीं। साल 1948 में उन्हें जिला न्यायाधीश के पद पर पदोन्नत किया गया। इसके बाद, 9 फरवरी 1959 को वह केरल हाईकोर्ट की जज बनीं और देश की पहली महिला हाईकोर्ट जज बनने का गौरव प्राप्त किया। अन्ना चांडी ने 5 अप्रैल 1967 तक इस पद पर कार्य किया।

पति का सपना पूरा किया

रिटायरमेंट के 3 महीने बाद, उनके पति पी.एस. चांडी का निधन हो गया। चांडी ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि मैं हाईकोर्ट की जज बनूं, यह मेरे पति का सपना था। असल में, मेरी आत्मकथा भी उन्हीं की वजह से है। जब मैं हाईकोर्ट जज बनी, तो उसी दिन से वह मुझसे मेरी कहानी लिखने को कहने लगे थे। मैं काम की वजह और सेहत का बहाना करके हमेशा टालती रही। जब उन्होंने जोर दिया, तो मैंने उनसे कहा कि आपको मेरे बारे में लिखना चाहिए, क्योंकि आप एक शानदार लेखक हैं। अगर उन्होंने सच में मेरी आत्मकथा को लिखा होता, तो यह और भी दिलचस्प बनती।

अन्ना चांडी एक न्यायाधीश के रूप में हमेशा महिला अधिकारों को लेकर मुखर रहीं। उन्होंने हमेशा लैंगिक भेदभाव के खिलाफ अपनी आवाज को ऊंचा किया और न्याय व्यवस्था को अधिक समावेशी बनाने के लिए काम किया। उनके योगदान ने कई महिलाओं को कानून के क्षेत्र में करियर बनाने के लिए प्रेरित किया।

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Image Credit - wikipedia, social media


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