महिला दिवस उन महिलाओं की उपलब्धियों का जश्न मनाने का दिन है, जिन्होंने समाज की रूढ़िवादी सोच को तोड़कर नई राह बनाई। ऐसी ही एक महिला थीं कॉर्नेलिया सोराबजी(Cornelia Sorabji), जो भारत की पहली महिला वकील बनी थीं। एक समय ऐसा था जब वकील केवल पुरुष बना करते थे और महिलाओं को इस प्रोफेशन में जाने की अनुमति नहीं थी, लेकिन कॉर्नेलिया ने अपने साहस और दृढ़ संकल्प से इतिहास रच दिया। उन्होंने महिला अधिकारों पर काम ही नहीं किया, बल्कि महिलाओं के लिए न्यायपालिका के रास्ते भी खोल दिए।
वुमेन्स डे 2025 के मौके पर, हम कॉर्नेलिया सोराबजी के जीवन और उनके योगदान पर एक नजर डालते हैं और जानते हैं कि कैसे उन्होंने पुरुष प्रधान व्यवसाय को चुनौती देकर दुनिया की महिला वकीलों, कार्यकर्ताओं और पेशेवरों को प्रेरित किया।
कॉर्नेलिया सोराबजी का प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
भारत की पहली महिला वकील का जन्म 15 नवंबर 1866 को भारत के नासिक में एक पारसी-ईसाई परिवार में हुआ था। कॉर्नेलिया सोराबजी के पिता रेवरेंड सोराबजी एक मिशनरी थे और उनकी मां फ्रांसेस फोर्ड सोराबजी एक समाज सुधारक थीं, जिन्होंने महिलाओं की शिक्षा के लिए काम किए थे। अपनी मां से प्रेरित होकर, कॉर्नेलिया ने कम उम्र में ही महिलाओं के अधिकारों में गहरी रुचि दिखाना शुरू कर दिया था।
बचपन से ही कॉर्नेलिया पढ़ाई में अव्वल थीं और उन्होंने 1888 में बॉम्बे यूनिवर्सिटी से साहित्य में डिग्री प्राप्त करके, डिग्री पाने वाली पहली महिला का खिताब अपने नाम किया था। हालांकि, उनका सपना एक वकील बनने का था। उस समय, वकील का पेशा पुरुष प्रधान हुआ करता था और भारतीय महिलाओं को कानून की पढ़ाई करने की अनुमति नहीं थी। हालांकि, कॉर्नेलिया सोराबजी ने अपने दृढ़ संकल्प से ब्रिटेन में आगे की पढ़ाई करने के लिए स्कॉलरशिप पा ली थी।
इसे भी पढ़ें - Women's Day 2024: शिक्षक से लेकर राष्ट्रपति तक जानें भारत की प्रथम महिलाओं की सूची
कानूनी शिक्षा में बाधाओं को तोड़ना
कॉर्नेलिया सोराबजी 1889 में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय गई थी और वह ऑक्सफोर्ड में पढ़ने वाली पहली भारतीय महिला भी बनीं। यूनिवर्सिटी में कानून की पढ़ाई करने के बाद, उन्हें आखिरी परीक्षा में मर्दों के साथ बैठने की इजाजत नहीं दी गई थी और उन्होंने इसके खिलाफ आवाज उठाई थी। आखिरकार उन्हें अंतिम परीक्षा देने का मौका मिल गया और 1892 में ब्रिटेन में वह पहली महिला थीं, जिन्हें बैचलर ऑफ सिविल लॉ परीक्षा में बैठने की अनुमति मिली थी।
ऑक्सफोर्ड से पढ़ाई करने के बाद जब सोराबजी भारत लौटी, तो वह बैरिस्टर के तौर पर काम करना चाहती थीं। लेकिन, उस समय भारत और ब्रिटेन में महिलाओं को कानून की प्रैक्टिस करने का अधिकार नहीं था। उस समय, भारत में कई रियासतें हुआ करती थीं। कॉर्नेलिया ने ध्यान दिया कि भारत में पर्दा प्रथा का प्रचलन काफी था। परिवार की महिलाएं पुरुषों से पर्दे के पीछे से बात किया करती थीं और उन्हें बाहर के पुरुषों से बात करने की मनाही थी। कॉर्नेलिया ने पाया कि महिलाएं पुरुषों के अत्याचार के खिलाफ आवाज तक नहीं उठाती थीं और जिन्होंने आवाज उठाई थी उन्हें मार दिया गया था।
कानूनी पेशे में चुनौतियाँ
ये सब देखकर कॉर्नेलिया ने इन महिलाओं की मदद करने की ठान ली थी और उन्होंने सरकार से अपील की थी कि उन्हें महिलाओं पर हो रहे जुल्म को रोकने के लिए सरकार का कानूनी सलाहकार बनाया जाए। हालांकि,सरकार ने उनकी मांग को ठुकरा दिया लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। कॉर्नेलिया ने करीब 20 सालों तक कानूनी सलाहकार के रूप में प्रो-बोनो (बिना किसी शुल्क के) काम किया। सोराबजी ने महिला अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी और करीब 600 से ज्यादा महिलाओं को इंसाफ दिलाया। उनके काम ने सबका ध्यान अपनी तरफ खींचा और आखिरकार, भारत में ब्रिटिश सरकार के कानूनी सलाहकार के रूप में उन्हें नियुक्त किया गया।
जहर खिलाकर मारने की कोशिश
कॉर्नेलिया के कामों से कई रियासतें उन्हें अपना दुश्मन समझने लगी थीं और उन पर कई बार जानलेवा हमले भी हुए थे। एक बार शाही परिवार ने उन्हें खाने पर इनवाइट किया था और उनके कमरे में ब्रेकफास्ट भिजवाया था। कॉर्नेलिया बहुत बुद्धिमान थीं, इसलिए उन्हें खाने की महक से ही शक हो गया था। बाद में जब खाने की जांच की गई थी, तो पता चला कि उसमें जहर मिला हुआ था। हालांकि, 1923 में लीगल प्रैक्टिशनर्स अधिनियम के पारित होने के बाद ही महिलाओं को भारत में वकील बनने की अनुमति दे दी गई थी।
इसे भी पढ़ें - International Women's Day 2025: महिला दिवस पहली बार कब और क्यों मनाया गया था? जानें किसने की थी इसकी शुरुआत...इस साल क्या है थीम
भारत की पहली महिला वकील
इसके बाद, कॉर्नेलिया सोराबजी भारत में लॉ प्रैक्टिस करने वाली पहली महिला बनी थीं। उन्हें कलकत्ता हाईकोर्ट में नियुक्त किया गया था, जहां उन्होंने महिलाओं और वंचित समुदायों की तरफ से कई मामले लड़े थे। हालांकि, उनकी यात्रा काफी कठिन रही थी और लॉ सेक्टर में उन्हें पुरुष वकीलों से भेदभाव और पक्षपात का सामना करना पड़ा था। साल 1929 में सोराबजी ने कानूनी करियर से रिटायमेंट ले लिया था, लेकिन सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में काम करती रही थीं।
06 जुलाई 1954 को उनका निधन हो गया था और वे अपने पीछे एक विरासत को छोड़ गईं, जिसे आज महिलाएं आगे बढ़ा रही हैं।
अगर हमारी स्टोरीज से जुड़े आपके कुछ सवाल हैं, तो आप हमें आर्टिकल के ऊपर दिए कमेंट बॉक्स में बताएं। हम आप तक सही जानकारी पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे। अगर आपको यह स्टोरी अच्छी लगी है, तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़ी रहें हरजिंदगी से।
Image Credit - jagran, wikipedia
HerZindagi ऐप के साथ पाएं हेल्थ, फिटनेस और ब्यूटी से जुड़ी हर जानकारी, सीधे आपके फोन पर! आज ही डाउनलोड करें और बनाएं अपनी जिंदगी को और बेहतर!
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों