सरपंच का नाम सुनते ही सबसे पहले हमारे दिमाग में एक बुजुर्ग सफेद बालों वाले आदमी की छवि उभरती है, जिसके सिर पर पगड़ी, हाथों में डंडा और बड़ी मूंछें हों। पूरा गांव उससे डरता हो और सम्मान भी करता हो। शायद ही कभी आपके दिमाग में किसी महिला की इमेज सरपंच के नाम पर आई होगी? लेकिन, बदलते समय के साथ भारत के गांवों में बहुत-सी महिला सरपंच नियुक्त की गईं, जिन्होंने पारंपरिक मानदंडों को तोड़ते हुए विकास को बढ़ावा दिया। भारत की महिला सरपंचों ने अपने गांवों में परिवर्तनकारी बदलाव भी किए।
आज हम आपको उन 8 महिला सरपंच नेताओं के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्होंने ग्रामीण भारत में महत्वपूर्ण सामाजिक और बुनियादी ढांचे में बदलाव लाने में अहम भूमिका निभाई।
1. छवि राजावत (राजस्थान)
छवि राजावत ने भारत की सबसे कम उम्र की महिला सरपंच होने का गौरव पाया है। राजस्थान के जयपुर में जन्मीं छवि ने राजस्थान के टोंक जिले के सोडा गांव की सरपंच बनने के लिए अपना कॉर्पोरेट करियर तक छोड़ दिया। उन्होंने अपने गांव में पानी, सौर ऊर्जा, पक्की सड़कें, शौचालय और बैंक लाने में अहम रोल अदा किया। छवि को पहचान साल 2011 में संयुक्त राष्ट्र के सूचना-गरीबी विश्व सम्मेलन में दिए गए संबोधन से मिली।
2. सुषमा भादू (हरियाणा)
हरियाणा के सिरसा जिले के ढाणी मियां खान गांव की सरपंच हैं सुषमा भादू, जिन्होंने पितृसत्तात्मक समाज में पर्दा प्रथा को खत्म करके और महिलाओं को सशक्त बनाया। सुषमा ने हर घर शौचालय, घरेलू हिंसा और दहेज प्रथा जैसे मुद्दों पर आवाज उठाई। उन्होंने गांव में महिलाओं और लड़कियों के लिए स्कूल और प्रशिक्षण केंद्र की व्यवस्था की।
3. मीना बेन (गुजरात)
गुजरात के व्यारा जिले की सरपंच और महिला पंचायत बोर्ड की प्रमुख मीना बेन ने अपने गांव में महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए। उनके गांव में महिलाओं को घर से बाहर निकलने और पुरुषों से बात करने तक की अनुमति नहीं थी, लेकिन मीना ने अपने गांव में महत्वपूर्ण बदलाव लाया। उन्होंने गांव में महिलाओं के लिए स्वयं सहायता समूहों का गठन किया और गांव में स्कूल, स्वास्थ्य सेवा केंद्र और शौचालय की व्यवस्था करवाई।
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4. वंदना बहादुर मैदा (मध्य प्रदेश)
मध्य प्रदेश के खानखंडवी गांव की सरपंच वंदना बहादुर मैदा का काम संयुक्त राष्ट्र कैलेंडर 2013 में शामिल किया गया था। उन्होंने लैंगिक समानता और महिलाओं के उत्थान के लिए बहुत काम किया। उन्होंने गांव की महिलाओं को वित्तीय रूप से स्वतंत्र करने के लिए स्वयं सहायता समूह का गठन किया। वंदना ने गांव में स्वास्थ्य शिविर कार्यक्रमों का आयोजन किया। उन्होंने गांव में बिजली, पानी और सड़कों की सुविधा प्रदान की।
5. आरती देवी (ओडिशा)
ओडिशा के गंजम जिले की पूर्व सरपंच आरती देवी महिला सशक्तिकरण की प्रतीक हैं। एक सफल बैंकर से सरपंच बनने तक का सफर शहरी और ग्रामीण भारत के बीच खाई को भरने की उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है। 29 साल की उम्र में आरती को सरपंच नियुक्त किया गया था। आरती ने इंटरनेशनल विजटर्स लीडरशिप प्रोग्राम में हिस्सा लिया था और वहां पर सराहना पाई थी।
6. अत्रम पद्मा बाई (तेलंगाना)
गोंड आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखने वाली अत्रम पद्मा बाई तेलंगाना के 8 आदिवासी गांवों की परिषद की प्रमुख हैं। उन्होंने 2013 में, एक NGO से लोन लेकर खेती के औजारों को किराए पर देने के लिए एक सेंटर बनाया। उनका मानना था कि गरीब किसान अपनी फसलों को काटने के लिए महंगे औजार नहीं खरीद सकते हैं। इसलिए, उन्हें किराए पर औजार उपलब्ध कराए जाएं। पद्मा ने गांव में आदिवासी बच्चों के लिए स्कूल और वृद्धजनों को साक्षर करने के लिए वयस्क साक्षरता कार्यक्रम आयोजित किए।
7. भक्ति शर्मा (मध्य प्रदेश)
अमेरिका से पढ़कर आई, भक्ति शर्मा ने साल 2016 में ग्राम परिषद का चुनाव लड़ा और भोपाल के बरखेड़ी अब्दुल्ला गांव की सरपंच बनीं। उन्हें देश की 100 सबसे प्रतिभाशाली महिलाओं में जगह भी मिली। पॉलिटिकल साइंस में ग्रेजुएट, भक्ति ने अपने गांव का डिजिटलीकरण करने के लिए ई-गवर्नेंस पहल की शुरुआत की। उन्होंने अपने गांववालों को डिजिटल साक्षर बनाने के लिए ट्रेनिंग सेंटर भी खोले, ताकि उन तक ऑनलाइन सरकारी योजनाएं और सेवाएं पहुंच सके।
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8. राधा देवी (राजस्थान)
ग्रामीण विकास और महिला सशक्तिकरण के प्रति अपने अथक प्रयास की वजह से राधा देवी ने राजस्थान के मुरतक गांव में सकरात्मक बदलाव लाए। मुरतक गांव की सरपंच राधा देवी खुद 5वीं तक शिक्षित हैं, लेकिन वह सुनिश्चित करती हैं कि उनके गांव की महिलाएं और लड़कियां शिक्षित बनें। राधा को स्थानीय मीडिया और सरकारी मंचों से उनके सतत प्रयास की वजह से काफी सराहना भी मिली है।
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