सुसाइड के नाम तनाव और निराशा झलकने लगते हैं। लाइफ में हर मोड़ पर एक नई तरह के चैलेंज का सामना करना पड़ता है, लेकिन बहुत सी महिलाएं इन परेशानियों का सामना करते हुए तनाव का शिकार हो जाती हैं और डिप्रेशन में आ जाती हैं। यही वो पल होते हैं जब खुद का सबसे ज्यादा खयाल रखने की जरूरत होती है, क्योंकि इन्हीं क्षणों में खुद को नहीं संभाल पाने की वजह से लोगों के मन में सुसाइड का खयाल आने लगता है।
देश के ऐसे कितने ही सेलेब्रिटिज हैं, जिन्होंने डिप्रेशन में आकर सुसाइड करने जैसा एक्सट्रीम कदम उठाया। घर-घर में फेमस हुई प्रत्यूषा बनर्जी ने अपनी लव लाइफ में नाकाम रहने पर सुसाइड कर लिया। वहीं उनका शव उनके कमरे से पंखे से लटका पाया गया। इसी तरह बॉलीवुड एक्ट्रेस जिया खान, जिन्होंने अमिताभ बच्चन के साथ निशब्द और आमिर खान के साथ गजनी जैसी फिल्में की थीं, ने अपनी प्रोफेशनल लाइफ से हताश होकर सुसाइड कर लिया था। पूर्व मिस इंडिया और टीवी एक्ट्रेस नफीसा जोसेफ की बात करें तो उनका सुसाइड करना भी काफी ज्यादा हैरान करने वाला था। उनकी जल्द ही शादी होने वाली थी, लेकिन जब उन्हें पता चला कि उनके मंगेतर ने अपनी पहली पत्नी को तलाक नहीं दिया है तो उन्होंने हताशा में आकर यह कदम उठा लिया। दक्षिण की एक बड़ी एक्ट्रेस सिल्क स्मिता, जिनके किरदार में विद्या बालन फिल्म डर्टी पिक्चर्स में नजर आई थीं, अपने समय में काफी चर्चित और कामयाब रही थीं, लेकिन अपने बाद में लगातार मिल रही नाकामी मिलने पर उन्होंने सुसाइड कर लिया। इस बात का जिक्र उन्होंने अपने सुसाइड नोट में किया था। पॉपुलर सुपरमॉडल और टीवी एक्ट्रेस कुलजीत रंधावा ने भी फांसी लगाकर अपनी जान ले ली थी और अपने सुसाइड लेटर में उन्होंने कहा था कि वह लाइफ के प्रेशर्स से लड़ने में सक्षम नहीं हैं।
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महिलाएं ऊर्जा का भंडार हैं और वे अपना घर और ऑफिस दोनों जगहें साथ-साथ मैनेज करने में सक्षम हैं। लेकिन इसके लिए उन्हें खुद को मोटिवेटेड रखना बहुत जरूरी है। World Suicide Prevention Day के मौके पर सुसाइड रोकना और इस बारे में जागरूक होना बहुत जरूरी है। हर साल इसी उद्देश्य से 10 सितंबर को Suicide Prevention से जुड़े कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
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विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक आंकड़ें के अनुसार 8 लाख लोग हर साल सुसाइड कर लेते हैं, यानि हर 40 सेकेंड में एक व्यक्ति सुसाइड कर लेता है। इससे 25 गुना लोग सुसाइड करने की कोशिश करते हैं।
अगर आप घर की किसी समस्या की वजह से लगातार परेशान चल रही हैं या घर का कोई भी सदस्य किसी वजह से पिछले कुछ दिनों से चुपचाप और उदास रहने लगा तो इस बारे में किसी करीबी से बात करना बहुत जरूरी है। अगर ऐसा लगता है कि आपकी समस्या का कोई हल नहीं है और सुसाइड का खयाल मन में आ रहा है तो हेल्पलाइन या किसी अनुभवी साइकोलॉजिस्ट से बात करनी चाहिए। साथ ही ऐसे समय में परिवार और दोस्तों के साथ रहना बहुत जरूरी है। प्यार, अपनापन और करीबी लोगों का स्नेह मिलने पर नेगेटिव विचारों पर काबू पाने में मदद मिलती है।
वरिष्ठ मनोचिकित्सक सबिहा अहमद का कहना है, '1 मिनट में ही अपनी अपना नजरिया नहीं बदला जा सकता। पुरुषों की तुलना में महिलाओं को कुदरत ने बड़ी जिम्मेदारी दी है। वे संतान पैदा करती हैं और उनकी देखरेख की जिम्मेदारी भी मां ही उठाती है। घर-परिवार की देखरेख के साथ अपना खयाल रखने का काम महिलाएं बखूबी कर सकती हैं। इस बात के स्पष्ट होने पर मन में आत्म हत्या के विचार कभी नहीं आएंगे। जिन लोगों में सुसाइड का खयाल आता है, वे खुद को यूजलेस समझने लगते हैं। वे सोचते हैं कि उनका कोई योगदान नहीं रहा। अपने जीवन का मकसद खोजना बहुत जरूरी है क्योंकि यही आपको आगे बढ़ने और खुद को ग्रो करने में मदद करता है। मशहूर शायर जौक ने कहा था, 'ना तो मैं अपनी मर्जी से आया हूं और ना जाऊंगा। मैं तो अल्लाह की मर्जी से आया हूं और जब उसकी मर्जी होगी तभी जाऊंगा।' महिलाओं को ही नहीं, बल्कि हर किसी को अपने जीने का महत्व समझना चाहिए।'
कई बार महिलाओं को ऐसा लगने लगता है कि वे एक भंवर में फंस गई हैं और उस स्थिति से बाहर आने का कोई रास्ता नहीं है। अपनी परेशानी में वे किसे से खुलकर कुछ कहने में भी संकोच करती हैं। सबिहा अहमद बताती हैं, कि अगर ऐसा खयाल आए तो समझ लीजिए कि आपकी बॉडी पूरा न्यूट्रिशन नहीं ले रही। बचपन से ही शरीर को स्वस्थ रखना बहुत जरूरी है। और सबसे बड़ी बात यह कि मुश्किल पलों में कभी अकेले नहीं रहना चाहिए। कोई ऐसा होना चाहिए कि जिससे आप अपनी परेशानी शेयर कर सकें। महिलाएं पर्याप्त मात्रा में न्यूट्रिशन नहीं लेतीं, शरीर से कमजोर हो जाती हैं, इसीलिए वे चिड़चिड़ी हो जाती हैं और गुस्से में जो खाना वे खाती हैं, उससे भी उन्हें न्यूट्रिशन नहीं मिल पाता। बच्चों में भी आक्रामता इसीलिए बढ़ रही है, क्योंकि उन्हें अपनी वैल्यू पता नहीं है। ज्यादातर प्रॉब्लम इसी बात से होती हैं कि किसी व्यक्ति ने मुझे ऐसा क्यों बोल दिया। मेरे ये अधिकार हैं, मैं ऐसा करूंगी, वैसा करूंगी। जरूरत इस बात की है कि अपने अधिकारों को समझने के साथ-साथ अपनी जिम्मेदारियां भी समझें और अपने भीतर धैर्य पैदा करें। तभी महिलाएं स्वस्थ जीवन जी सकती हैं।
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