आंकड़ों के मुताबिक कंसीव करने की कोशिश करने वाले कुछ कपल्स में से केवल 30 प्रतिशत को पहले चक्र में सफलता मिलती है, 85 प्रतिशत को 12 महीने के भीतर और कुछ को संभवतः मेडिकल हस्तक्षेप के साथ भी कई साल लग जाते है। प्रेग्नेंसी के लिए चाहे जितना भी समय लगे लेकिन मां बनने वाली लगभग हर महिला को अपने बच्चे की अच्छी हेल्थ के लिए प्रेग्नेंसी के बारे में जानना और पढ़ना बहुत पसंद होता है। लेकिन अफसोस की बात यह है कि इंटरनेट पर कई गलत सूचनाएं हैं जो कभी-कभी आपके लिए हानिकारक भी हो सकती हैं।
आज हम आपको बहुत सारे ऐसे तथ्यों के बारे में बताने जा रहे हैं, जो गर्भवती अक्सर इंटरनेट पर पढ़ती है। इस आर्टिकल के माध्यम से यह भी बताया गया है कि इन्हें क्यों नहीं अपनाना चाहिए। इस बारे में हमने Cocoon फर्टिलिटी की आइवीएफ कंसलटेंट और इंडोस्कोपिक सर्जन Dr. Rajalaxmi Walavalkar से बात की तब उन्होंने हमें इसके बारे में विस्तार से बताया।
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तथ्य : इस तरीके से बच्चे के लिंग की पहचान करने के लिए बहुत सुविधाजनक होगा, लेकिन क्या आप जानती हैं कि यह उतना आसान है जितना की आपको लगता है। दो चीजें प्रेग्नेंट के पेट के शेप और साइज को प्रभावित करती है- पहली भ्रूण का आकार और गर्भ में इसकी स्थिति।
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तथ्य : हालांकि इस बात का कोई वैज्ञानिक सबूत नहीं है कि अच्छी तरह से किया गया अल्ट्रासाउंड मां या उसके अजन्मे बच्चे को नुकसान पहुंचा सकता है। लेकिन Dr. Rajalaxmi का कहना हैं कि अल्ट्रासाउंड दो तरीके का होता है एक जांच करने वाला और दूसरा ट्रीटमेंट वाला। प्रेग्नेंसी में अल्ट्रासाउंड हम बच्चे की जांच करने के लिए करते हैं इसलिए इस तरह के अल्ट्रासाउंड से मां या बच्चे की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ता है। जबकि दूसरे तरह के अल्ट्रासाउंड का इस्तेमाल हम ट्रीटमेंट के लिए करते हैं जैसे फाइब्रॉइड को गलाने के लिए करना। इसमें तेज रेडिएशन का इस्तेमाल किया जाता है।
तथ्य : बच्चा मस्कुलर यूटरस के अंदर गहराई में छिपा हुआ और संरक्षित होता है। एक प्रेग्नेंट महिला पेट के बल लेट या सो सकती है जब तक कि उसे आरामदायक लगता है। अगर उसे ठीक लगता है तो यह बच्चे को नुकसान नहीं पहुंचाएगा। Dr. Rajalaxmi का कहना हैं कि प्रेग्नेंट वूमेन को लेफ्ट हैंड पर सोना चाहिए क्योंकि इससे बच्चे को ब्लड की सप्लाई बेहतर तरीके से होती है।
तथ्य : आमतौर से बड़े हिप्स से चौड़ी कूल्हे की हड्डी का उल्लेख होता है-हिप्स का सबसे बड़ा और ऊपरी हिस्सा। लेकिन वास्तव में इसका बर्थ कैनाल के साइज से कुछ लेना नहीं होता है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि महिला के हिप्स बड़े है या छोटे।
तथ्य : गर्भवती होने का मतलब यह नहीं है कि आपको रानिंग नहीं करनी चाहिए। अगर एक महिला की प्रेग्नेंसी में कोई भी समस्या नहीं है तो शुरुअात की त्रिमाही के दौरान उसके लिए रानिंग करना सेफ और हेल्दी रहता है। बेशक, आपको रानिंग से बचना चाहिए अगर आपको ब्लड प्रेशर, एक से अधिक गर्भावस्था जैसी जटिलताएं हैं।
तथ्य : अपने हाथों को ऊपर उठाने से आपके बच्चे की गर्दन के चारों ओर घूमने वाली गर्भनाल का कारण नहीं हो सकता है- यह निश्चित रूप से एक मिथ है। सच्चाई यह है कि आपके मूवमेंट का नाभिक कॉर्ड पर असर नहीं हो सकता है। इसके अलावा, कई बच्चे गर्दन के चारों ओर लिपटे गर्भनाल के साथ पैदा होते हैं, और चिकित्सक आमतौर पर इसे हटा देते हैं।
तथ्य : प्रेग्नेंसी के दौरान अक्सर महिलाएं दो लोगों के हिसाब खाने लगती हैं। वे अपने भोजन में कैलोरी की मात्रा बढ़ा देती हैं। लेकिन Dr. Rajalaxmi का कहना हैं कि इस समय गर्भवती को केवल 250 अतिरिक्त कैलोरी की आवश्यकता होती है। अगर आप 1500 कैलोरी लेती है तो हर तिमाही के दौरान इसे बढ़ाना चाहिए यानि 1500 से 1750 और 1750 से 2000 लेना है। इसके अलावा आपको हर तरह का पौष्टिक और बैलेंस डाइट लेनी चाहिए। उनका यह भी कहना हैं कि हर महिला को उनकी हाइट और वेट के हिसाब से कैलोरी की जरूरत होती है।
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तथ्य : मॉर्निंग सिकनेस प्रेग्नेंसी के सबसे आम लक्षणों में से एक है। 80% से अधिक गर्भवती महिलाओं को इस समस्या का अनुभव होता है, लेकिन केवल 2% को यह समस्या सुबह के समय होती है। इसके नाम के बावजूद, यह दिन में किसी भी समय हो सकती है। कुछ एक्सपर्ट ने यह भी कहा है कि यह ''ऑल-डे-सिकनेस'' है। अधिकांश मामलों में, यह पहली तिमाही के बाद दूर हो जाती है लेकिन 20 प्रतिशत महिलाओं को डिलीवरी तक इसका अनुभव होता है। Dr. Rajalaxmi का कहना हैं कि प्रेग्नेंसी के दौरान एचसीजी बढ़ जाने से सिकनेस किसी भी समय हो सकती है। यह प्लेसेंटा में बनने वाली कोशिकाओं द्वारा उत्पादित होता है, जो निषेचन के बाद अंडे को पोषित करता है और गर्भाशय की दीवार से जुड़ने में हेल्प करता है।
तथ्य : हर कोई सोचता है कि एक महिला के जीवन में प्रेग्नेंसी सबसे खुशी का समय है, लेकिन कई प्रेग्नेंट को तनाव, भ्रम, भय और अन्य दुखी भावनाओं का अनुभव होता है। 14% -23% महिलाएं प्रेग्नेंसी के दौरान डिप्रेशन के कुछ लक्षणों के साथ भी संघर्ष करती हैं। यह इसलिए होता है क्योंकि हार्मोन परिवर्तन ब्रेन और उसके केमिकल को प्रभावित कर सकते हैं। डिप्रेशन का इलाज किया जाना चाहिए, क्योंकि इससे मां और बच्चे को जोखिम हो सकता है। और उसके रसायनों को प्रभावित कर सकते हैं। अवसाद का इलाज किया जाना चाहिए, या उसके माता और बच्चे को संभावित जोखिम हो सकते हैं।
अगर आप भी मां बनने वाली हैं तो प्रेग्नेंसी से जुड़े इन मिथ पर ना करें भरोसा।
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