World Stroke Day हर साल 29 अक्टूबर को मनाया जाता है। स्ट्रोक दुनिया में मौतों और विकलांगता के प्रमुख कारणों में से एक है। World Stroke Organization के अनुसार हर साल स्ट्रोक के चलते 65 लाख मौतें होती हैं। 6 में से 1 व्यक्ति के स्ट्रोक का सामना करने की आशंका है। प्रत्येक 4 मिनट में एक व्यक्ति को स्ट्रोक होता है, फिलहाल एक अनुमान के मुताबिक 2.6 करोड़ लोग स्ट्रोक से पीडि़त हैं।
आंकड़े बताते हैं कि दुनिया भर में हर साल हर तीन में से एक महिला की मौत हृदय रोग और आघात के चलते होती है, यानि हर 80 सेकेंड में लगभग एक महिला की जान चली जाती है। इसके अतिरिक्त, लगभग 90 फीसदी महिलाओं में हृदय रोग या स्ट्रोक के लिए एक या इससे अधिक रिस्क फैक्टर यानि जोखिम वाले कारक हैं। पुरुषों की तुलना में महिलाओं में स्ट्रोक का खतरा ज्यादा होता है। पुरुषों में हर छह में से एक पुरुष को स्ट्रोक होता है, जबकि महिलाओं में पांच में से एक को स्ट्रोक का खतरा रहता है। यानि 60 प्रतिशत महिलाओं को स्ट्रोक का खतरा रहता है। महिलाओं के साथ प्रेगनेंसी की वजह से भी खतरा रहता है। इसके अलावा महिलाएं स्मोकिंग और अल्कोहल ज्यादा लेने लगी हैं। लाइफस्टाइल भी बदल गई है जिसमें एक्सरसाइज की कोई जगह नहीं है।
Fortis Memorial Research Institute, डायरेक्टर एवं एचओडी, न्यूरोलॉजी, Dr Praveen Gupta ने हमें स्ट्रोक, उसके लक्षणों और जोखिमों के कारकों को समझने के लिए कुछ ऐसी जानकारियां शेयर की है, आइए जानें क्या है वह जानकारी?
स्ट्रोक तब होता है जब ब्रेन के किसी हिस्से में ब्लड की सप्लाई बंद हो जाती है। ब्लड के बिना ब्रेन सेल्स damaged और die हो जाते हैं। स्ट्रोक की गंभीरता इस बात पर निर्भर करती है कि ब्रेन का कौन सा हिस्सा प्रभावित है और ग्रस्त व्यक्ति को कितनी जल्दी उपचार मिलता है। स्ट्रोक किसी की भी चलने-फिरने, बोलने, सोचने और महसूस करने और analyse करने की शक्ति को प्रभावित कर सकता है।
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स्ट्रोक मरीज को ’’गोल्डन पीरियड’’ यानि पहले तीन से साढ़े चार घंटों में हॉस्पिटल तक पहुंचाना जरूरी है और यह जितना जल्दी हो उतना ही अच्छा है। ऐसा इसलिए है क्योंकि क्लॉट को खत्म करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली दवाएं बेहतर ढंग से पहले तीन घंटों में काम करती हैं और पहले साढ़े चार घंटों के बाद उसे ठीक करना मुश्किल होता जाता है। ब्लड सर्कुलेशन को बहाल न कर पाने के साथ बीतते हर मिनट के साथ करीब 2 करोड़ अतिरिक्त नर्वस सेल्स मरते जाते हैं। इसलिए यह बहुत जरूरी है कि मरीज को जितनी जल्दी संभव हो एक अच्छे स्ट्रोक सेंटर तक पहुंचाया जाएं।
फिजियोथेरेपी: अगर स्ट्रोक से ब्रेन के उस हिस्से को नुकसान पहुंचता है जो व्यक्ति के चलने-फिरने की शक्ति को कंट्रोल करता है तो उसे कमजोरी या शरीर के एक हिस्से में लकवा, चलने-फिरने में समस्या और रोजाना के कामकाज करने में परेशानी का सामना करना पड़ता है। फिजियोथेरेपी सुधार की प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। फिजियोथेरेपी का पूरा ध्यान हाथों और पैरों को फिर चलाने और जितना संभव हो सके उनको मजबूत करने पर होता है।
Behavioural ट्रीटमेंट: स्ट्रोक के मरीज को स्ट्रेस जैसी व्यवहारात्मक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। यह सुनिश्चित करना बेहद जरूरी है कि वे उत्साहित और समर्थन महसूस करें। उन्हें एक सपोर्ट ग्रुप का हिस्सा बनाना उनकी भावनाओं को कंट्रोल करने का अच्छा तरीका है। एक जैसी समस्या का सामना कर रहे लोगों से बातचीत करना बहुत जरूरी और प्रभावी है।
मेडिकल हेल्प: यह ध्यान देना बेहद जरूरी हैं कि मरीज की चिकित्सकीय देखभाल प्रभावी ढंग से की जा रही है या नहीं। दवाओं, स्ट्रोक के अन्य प्रभावों और व्यवहारात्मक बदलावों पर नजर रखना बेहद जरूरी है।
अगर स्ट्रोक पर गौर नहीं किया गया तो यह भारत में एक महामारी की शुरूआत हो सकती है। खराब जीवनशैली का चयन और जागरूकता की कमी बढ़ती संख्या में योगदान देने वाले प्रमुख कारक हैं।
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