जानिए क्या होती है जीरो एफआईआर और कैसे दर्ज कराएं इसे

अगर आप जीरो एफआईआर के बारे में विस्तार से जानना चाहती हैं तो अंत तक पढ़ें यह लेख।

Zero FIR importance

जब भी देश में कहीं किसी व्यक्ति के साथ कोई घटना या दुर्घटना होती है तो वह सबसे पहले पुलिस स्टेशन जाकर रिपोर्ट करता है। जिसे एफआईआर कहा जाता है। यह एक लिखित दस्तावेज होता है, जिसके आधार पर पुलिस एक्शन लेती है। हालांकि, कई मामलों में पुलिस खुद ही संज्ञान लेती है तो कभी उन्हें घटना के विषय में परिचित करवाना पड़ता है, जिसे एफआईआर यानी फर्स्ट इनफॉर्मेशन रिपोर्ट कहा जाता है।

आमतौर पर यह देखने में आता है कि अधिकतर थानाध्यक्ष या पुलिस चौकी में अधिकारी इसलिए भी रिपोर्ट लिखने से मना कर देते हैं, क्योंकि घटित हुआ अपराध उनके थाना क्षेत्र का नहीं है। ऐसे में आम व्यक्ति को बहुत अधिक परेशानी उठानी पड़ती है। इतना ही नहीं, कभी-कभी देर से शिकायत लिखने के कारण भी पीड़ित को इंसाफ नहीं मिल पाता है। आम व्यक्ति की इन्हीं कठिनाइयों को दूर करने के लिए जीरो एफआईआर का प्रावधान किया गया। तो चलिए आज इस लेख में हम जीरो एफआईआर के बारे में विस्तारपूर्वक जानेंगे-

जीरो एफआईआर क्या है?

What Is Zero FIR

जीरो एफआईआर सामान्य एफआईआर की तरह ही होती है। हालांकि, इसका एक सबसे बड़ा लाभ यह है कि इसमें किसी भी तरह के अधिकार क्षेत्र की अड़चनें पैदा नहीं होती हैं। आमतौर पर, जब किसी भी थाने में पुलिस एफआईआर तभी लिखती है, जब अपराध उसे थानाक्षेत्र के अंतर्गत हुआ हो। लेकिन जीरो एफआईआर में ऐसा नहीं होता है। इसमें पीड़ित व्यक्ति या उस व्यक्ति का कोई जानकार, रिश्तेदार या कोई चश्मदीद भी किसी भी थाने में एफआईआर दर्ज करवा सकता है। इसे ही जीरो एफआईआर कहा जाता है। जीरो एफआईआर के आधार पर पुलिस अपनी कार्यवाही या जांच शुरू कर देती है। बाद में, वह केस संबंधित क्षेत्र के थाने में ट्रांसफर करवा दिया जाता है।

जीरो एफआईआर की जरूरत क्यों महसूस हुई?

देश में हर दिन बढ़ रहे आपराधिक मामलों को देखते हुए नियम-कानूनों में सुधार की सख्त जरूरत महसूस की गई। खासतौर से, साल 2012 में दिल्ली में हुए निर्भया गैंगरेप ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था। जिसके बाद कानूनों में सुधार करने के लिए जस्टिस वर्मा कमेटी गठित की गई थी। इस कमेटी ने महिलाओं के प्रति होने वाले आपराधिक मामलों को कम करने और पुलिस को अधिक सशक्त बनाने के लिए कई कड़े कानून बनाएं। साथ ही, कुछ पुराने कानूनों में भी संशोधन किया था। इसी कमेटी ने ही जीरो एफआईआर का सुझाव दिया था। जीरो एफआईआर के बाद पुलिस ऑफिसर को अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर भी एक्‍शन लेने की छूट मिलती है।

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जीरो एफआईआर के फायदे

know the detail about zero FIR

  • जीरो एफआईआर के कई फायदे हैं। जैसे-
  • बिना देरी किए पुलिस को घटना की जानकारी मिलना।
  • जीरो एफआईआर दर्ज होने के बाद पुलिस को एक्शन लेना ही पड़ता है, भले ही मामला उसके अधिकारक्षेत्र का ना हो।
  • समय पर कार्यवाही के जरिए कई महत्वपूर्ण साक्ष्यों व सबूतों को नष्ट होने से बचाया जा सकता है।
  • पीड़ित व्यक्ति को इंसाफ पाने के लिए दर-दर भटकना नहीं पड़ता। वह जहां पर भी है, वहीं से न्याय के लिए गुहार लगा सकता है।

किन स्थितियों में दर्ज की जाती है जीरो एफआईआर

आमतौर पर, अपराधों को दो श्रेणी में बांटा जाता है-कॉग्नीजेबल और नॉन-कॉग्नीजेबल। कॉग्नीजेबल अपराध बेहद ही संगीन होते हैं। इनमें रेप, हत्या, जानलेवा हमला आदि को शामिल किया जाता है। इस तरह के अपराधों की तुरंत रिपोर्ट करना जरूरी होता है, ताकि जल्द से जल्द कार्यवाही शुरू की जा सके। इस तरह के मामलों की जीरो एफआईआर दर्ज करवाई जा सकती हैं। जीरो एफआईआर अधिक रेप केस में दर्ज होती हैं, ताकि पीड़िता की तुरंत मेडिकल जांच की जा सके। वहीं, नॉन-कॉग्नीजेबल अपराधों गंभीर अपराधों की श्रेणी में नहीं आते, जैसे मारपीट या लड़ाई-झगड़ा आदि। इस तरह के मामलों में सीधे एफआईआर दर्ज नहीं की जाती है बल्कि इन्‍हें पहले मजिस्ट्रेट के पास रेफर कर दिया जाता है। जिसके बाद मजिस्ट्रेट समन जारी करता है और उसके बाद ही आगे की कार्रवाही शुरू होती है।

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Image Credit- freepik, shutterstock

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