एक जमाना था जब घरों में सिर्फ मारुति हुआ करती थी या फिर बजाज चेतक। मारुति 800 ने आकर भारतीय ऑटोमोबाइल मार्केट की काया ही पलट दी। मुझे याद है कि पहली बार जब हमारे मोहल्ले में कार आई थी तो हम कितना खुश हुए थे भले ही वो हमारी कार नहीं थी। पिछले दो दशकों में ऑटोमोबाइल मार्केट ने तेज़ी से तरक्की की है और पहले जहां मोहल्ले में एक कार हुआ करती थी अब वही एक घर में दो-तीन गाड़ियों का चलन हो गया है। पर जहां भारत की कार बदली है वहीं खरीदनेवालों की संख्या और उनकी मानसिकता भी। अब महिलाएं भी इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रही हैं। यहां सिर्फ महिला ड्राइवर्स की बात नहीं हो रही है बल्कि उन हाउसवाइफ की भी बात हो रही है जो घर में आ रही नई गाड़ी को लेकर अहम रोल निभाती हैं।
एक वाक्या मेरे ही घर का है। पिछले साल हमारे घर में नई गाड़ी आई। पिता जी कुछ अलग खरीदना चाहते थे, लेकिन अंत में मां की सुनी गई। दरअसल, मां का कहना था कि उन्हें ऐसी गाड़ी चाहिए जो दिखने में तो अच्छी हो और भले ही पूरी ऑटोमैटिक न हो, लेकिन उसमें Leg Space पूरा हो जिससे लंबे सफर में आराम रहे। ये शायद पिता जी नहीं समझ पाते।
इसी मामले में दिल्ली में रह रहीं अनुराधा गुप्ता की जरूरत थोड़ी अलग थी। उनका कहना था कि क्योंकि उनके घर में पार्किंग के लिए ज्यादा जगह नहीं है और बड़ी गाड़ियों का मेनटेनेंस भी बहुत ज्यादा होता है तो उन्होंने पति को एक ऐसी गाड़ी लेने को कहा है जो कॉम्पैक्ट हो। यानी कॉम्पैक्ट SUV या हैचबैक कार यहां अच्छी होगी। उनके पति भी कुछ और लेना चाहते थे, लेकिन उनकी जरूरत को पूरा ध्यान रखा गया। हालांकि, वो अभी कार के मॉडल को लेकर खुद रिसर्च कर रही हैं और अंतिम फैसले में उनकी भागीदारी काफी ज्यादा होगी।
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अक्सर हम ये देखते हैं कि शॉपिंग गाइड को लेकर महिलाओं को नंबर वन माना जाता है, लेकिन वो टेक्निकल प्रोसेस में ज्यादा आगे नहीं होती हैं। पर फिर भी ये मानसिकता अब बदल रही है।
पिछले 6 सालों में दोगुनी हो गया है महिला खरीददारों का आंकड़ा: शशांक श्रीवास्तव
मारुति सुजुकी के एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर, (सेल्स एंड मार्केटिंग) शशांक श्रीवास्तव ने भी इस मामले में Herzindagi.com से बात की। उनका कहना है कि भारतीय ऑटोमोबाइल मार्केट में बड़े बदलाव आए हैं। महिलाएं ऑटोमोबाइल खरीदने के मामले में फैसला ले रही हैं। भले ही वो खुद के लिए खरीद रही हों या फिर वो परिवार के लिए खरीद रही हों। मारुति सुजुकि की रिसर्च में ये बात सामने आई है कि महिला ड्राइवरों की संख्या दुगनी हो गई है। पहले महिलाओं को लेकर शहरी इलाकों में जो आंकड़े 6-8% हुआ करते थे वो पिछले 6 सालों में 15% हो गए हैं। ये बदलाव इसलिए आया है क्योंकि अधिकतर महिलाएं अब इंडिपेंडेंट हो गई हैं। वो अब परिवार के लिए खुद कमा रही हैं। ये बदलाव बेहतर है।
गाड़ी खरीदने के प्रोसेस में अहम रोल निभाती हैं महिलाएं: टूटू धवन, ऑटो एक्सपर्ट
देश के जाने-माने ऑटो एक्सपर्ट टूटू धवन का कहना है कि महिलाएं यकीनन गाड़ी खरीदने को लेकर अपने पतियों का फैसला बदल सकती हैं। कौन सी गाड़ी खरीदनी है, क्या रंग लेना है, क्या फीचर्स हैं इसे लेकर सिर्फ महिलाएं ही नहीं बल्कि आजकल तो बच्चे भी इस मामले में अपनी राय बताने लगे हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि ये एक महिला ही बता सकती है कि घर की पर्सनल जरूरतें क्या हैं। उन्हें अपने घर में कैसी गाड़ी चाहिए, क्या बच्चों की जरूरत है, कितनी जगह होनी चाहिए ये सब कुछ फीमेल टच होता है। पुरुष अक्सर इसे लेकर सिर्फ ऑर्डर पास करते हैं, लेकिन महिलाएं जरूरतों को समझ सकती हैं।

हालांकि, अभी तक ऑटो कंपनियों ने ऐसा कुछ स्पेसिफिक बनाना नहीं शुरू किया है जो महिलाओं को आकर्षित कर सकें, लेकिन ऐसा होना चाहिए। टू-व्हीलर मार्केट में हीरो प्लेजर है जो अपने आप महिलाओं की गाड़ी मानी जाती है, उसके लिए उन्हें किसी भी एक्सपर्ट से बात करने की जरूरत नहीं है। वो उनकी गाड़ी है, उसके रंग उनकी पसंद के हैं। लेकिन अगर कार मार्केट में देखें तो ये बदलाव अभी आने में वक्त लगेगा।
इस मामले में क्या कहती है रिसर्च?
गूगल की अकांक्षा सक्सेना और अपर्णा राव ने 2018 Gearshift study के आधार पर कुछ खास तथ्य निकाले हैं। उनका मानना है कि महिलाएं न सिर्फ कार खरीदने के मामले में बढ़ रही हैं बल्कि वो परिवार की कार को लेकर फैसले भी लेती हैं। इस स्टडी के मुताबिक 2012 से 2017 के बीच में महिला कार खरीददारों की संख्या दोगुनी हो गई है और मुंबई में हर 3 में से 1 ड्राइवर महिला है। पर ये सिर्फ कार चलाने वालों की बात है। हाउसवाइफ जो कार चलाना नहीं जानतीं वो भी अपने परिवार में कार को लेकर काफी उत्साहित रहती हैं। इस स्टडी में कुछ खास बातें बताई गई हैं कि कैसे महिलाओं को कार कंपनियां और आकर्षित कर सकती हैं..
1. महिलाओं की जरूरतों को समझें-
रिसर्च में सामने आया है कि महिलाएं कार खरीदने के मामले में ज्यादा खुले विचारों वाली होती हैं। 47% महिलाओं को ब्रांड से फर्क नहीं पड़ता है। पर इस बात से पड़ता है कि उनकी सारी जरूरतें पूरी होंगी या नहीं। ब्रांड्स ऐसा काम कर सकते हैं कि महिलाएं ज्यादा आकर्षित हों। चाहें वो अपने विज्ञापन के जरिए हों या फिर वो कुछ फीचर्स के जरिए हों। महिलाओं की जरूरतों को समझना बहुत जरूरी है। अब सिर्फ पुरुषों के आधार पर कार नहीं बनाई जा सकती। यहां महिला ड्राइवर और उस गाड़ी में बैठने वाली महिलाओं दोनों की बात हो रही है।
रिसर्च कहती है कि 85% महिलाएं डिजाइन और स्टाइल पर ज्यादा फोकस करती हैं। 61% महिलाओं को ज्यादा स्पेस वाली कार चाहिए और 59% कहती हैं कि उन्हें सुरक्षा चाहिए। ऐसे में अगर कंपनियां इन मामलों पर ज्यादा ध्यान दें तो ये अच्छा होगा।
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2. महिलाओं को पर्सनल एक्सपीरियंस दिया जा सकता है-
डिजिटल प्लेटफॉर्म का फायदा यहां उठाया जा सकता है। ज्यादातर महिलाएं जो कार खरीदने के बारे में सोच रही होती हैं या उनके घरों में कार आने वाली होती है वो इसे लेकर सर्च करना शुरू कर देती हैं। वो अपने स्मार्टफोन, कम्प्यूटर, लैपटॉप आदि से सर्च करती हैं। ऐसे में उन्हें उनकी पर्सनल च्वाइस के आधार पर कंपनियां विज्ञापन आदि दिखा सकती हैं। इसका एक उदाहरण हो सकता है। Kia Motors जो हाल ही में भारत में आई है उसने अपनी पहली कैम्पेनिंग के बाद 40% महिला ट्रैफिक देखा अपनी वेबसाइट में। अब वो उन महिलाओं की सर्च के आधार पर ये पता लगा सकती है कि वो क्या चाहती हैं। किया ने #SheDrives इवेंट किया और हर उम्र की महिलाओं ने उसमें हिस्सा लिया।
महिंद्रा एंड महिंद्रा कंपनी भी ऐसे ही क्रिएटिव तरीके दिखा रही है वो अपने कार विज्ञापनों में अब ज्यादातर महिलाओं को कार चलाते हुए दिखा रही है। ये आज़ाद खयालों वाली महिला की छवि दिखाता है जिसे किसी की जरूरत नहीं है।
3. ऑनलाइन महिलाओं से मिलें- पर ऑफलाइन सर्विस के लिए तैयार रहें-
अगर महिलाएं कार के बारे में सर्च कर रही हैं तो वो यकीनन किसी न किसी चैट रूम का हिस्सा बन सकती हैं। रिसर्च कहती है कि 93% कार खरीदने वाली महिलाओं ने ऑनलाइन रिसर्च की। ऐसी महिलाएं न सिर्फ कार और उसके फीचर्स सर्च करती हैं बल्कि वो ऑफर के बारे में भी देखती हैं कि कहां से उन्हें ज्यादा फायदा मिल सकता है।
भले ही महिलाएं कितनी भी रिसर्च कर लें, लेकिन आखिर में वो किसी डीलरशिप से ही कार खरीदती हैं जो उनके जान-पहचान की होती है या किसी ने उन्हें उसके भरोसेमंद होने का भरोसा दिलाया होता है। कंपनियां इस बारे में भी ध्यान दे सकती हैं और महिलाओं को ऑफलाइन एक्सपीरियंस बेहतर दे सकती हैं।
कुल मिलाकर महिलाओं के लिए भारतीय ऑटो मार्केट बदल रहा है और उन्हें अपने लिए खास तरह की सर्विसेज की उम्मीद करनी चाहिए। पर फिर भी वो प्लेजर वाला बदलाव आने में समय लगेगा। कोई कार पूरी तरह से महिलाओं की जरूरत के लिए बनाई गई हो इसके लिए अभी थोड़ा इंतज़ार और करना होगा, लेकिन ऐसा नहीं है कि कंपनियां इसके लिए मेहनत नहीं कर रही हैं।
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