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आखिर कैसे बढ़ जाती है लोन की EMI? क्यों RBI के रेपो रेट के कारण आपको देना पड़ता है ज्यादा पैसा

लोन की EMI वह मासिक किश्त होती है, जो आप अपने लोन के मूलधन और ब्याज को चुकाने के लिए देना पड़ता है। ईएमआई कई कारकों पर निर्भर करती हैं,जिनमें सबसे महत्वपूर्ण है RBI का रेपो रेट। चलिए जानते हैं कि यह आपके EMI को किस प्रकार कम और ज्यादा करता है।
Editorial
Updated:- 2024-10-09, 16:26 IST

एक बड़े अमाउंट का सामान खरीदने के लिए हम सभी लोन की मदद लेते हैं। इसके लिए हम सभी को पैसों को किस्त के रूप में देना पड़ता है, जिसे EMI के नाम से जाना जाता है। ऐसे में कई सवाल होते हैं कि आखिर EMI किस प्रकार तय की जाती है और यह कैसे कम और ज्यादा होती है। बता दें, लोन की EMI आरबीआई के रेपो रेट के आधार पर हिसाब से तय की जाती है। इस लेख में आज हम आपको बताने जा रहे हैं, कि आखिर रेपो रेट क्या है और यह किस प्रकार से EMI को कम और ज्यादा करता है।

RBI का रेपो रेट क्या है?

what is rbi repo rate

रेपो रेट वह रेट है, जिस पर वाणिज्यिक बैंक RBI से पैसे उधार लेते हैं। यह रेट वाणिज्यिक उधारदाताओं द्वारा ऋण और जमा पर लगाए गए ब्याज को प्रभावित करती है, जो बदले में यह निर्धारित करती है कि बैंक RBI से कितना उधार ले सकते हैं।

रेपो दर में कोई भी बदलाव मुद्रास्फीति, ऋण ब्याज दरों और मुद्रा विनिमय दरों जैसे कई कारकों को प्रभावित करता है।
बता दें, आरबीआई की रेपो दर में बदलाव का सीधा असर होम लोन की ईएमआई पर पड़ता है। उन्होंने आगे बताया कि रेपो दर सीधे तौर पर होम लोन सहित सभी लोन पर निर्भर करती है, जिसका मतलब है कि जब भी केंद्रीय बैंक दर बढ़ता या घटता है, तो इसका असर लोन या ईएमआई पर भी पड़ता है।

  • बैंकों के लिए उधार लेने की लागत में वृद्धि- जब आरबीआई रेपो दर बढ़ाता है, तो बैंकों के लिए केंद्रीय बैंक से उधार लेना महंगा हो जाता है।
  • होम लोन पर उच्च ब्याज दरें- अपने लाभ मार्जिन को बनाए रखने के लिए, बैंक आम तौर पर बढ़ी हुई उधारी लागत को अपने ग्राहकों पर डाल देते हैं। इसका मतलब है कि रेपो दर (फ्लोटिंग रेट लोन) से जुड़े नए और मौजूदा होम लोन पर उच्च ब्याज दरें।
  • ईएमआई का बढ़ता बोझ- जैसे-जैसे ब्याज दर बढ़ती है, आपके गृह ऋण की ईएमआई राशि आनुपातिक रूप से बढ़ जाती है, जिससे आपके मासिक बजट पर दबाव पड़ सकता है।

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रेपो दर में बदलाव होने पर क्या होता है?

emi rate

अगर केंद्रीय बैंक अर्थव्यवस्था में ज्यादा पैसे उपलब्ध कराना चाहता है, तो वह रेपो दर को कम कर देता है, जिससे बैंक कम ब्याज दर पर उधार ले पाते हैं। अगर आरबीआई बैंकों को उधार लेने से रोकना चाहता है, तो वह बाजार में तरलता कम करने के लिए रेपो दर बढ़ा देता है।

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Image credit- Freepik

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