ओवरऑल हेल्थ को सही रखने के लिए गट हेल्थ का सही रहना बहुत जरूरी है। अगर आपके भी पेट में गैस बना रहता है, पेट में दर्द, सूजन, IBS और एसिडिटी की शिकायत होती रहती है तो यह इस बात की तरफ इशारा है कि आपका गट हेल्थ सही नहीं है। आपके शरीर में प्रोबायोटिक्स और प्रीबायोटिक्स की कमी हो रही है। वहीं कुछ लोगों को यह मालूम ही नहीं होता है कि आखिर प्रोबायोटिक्स और प्रीबायोटिक्स का गट हेल्थ को सही रखने में क्या रोल होता है। अगर आप भी इससे अनजान है तो आज हम आपको इस बारे में विस्तार से बताएंगे इस बारे में MD Med,DM Neurology(AIIMS Delhi)Health coach | Neurologist Dr.Priyanka Sehrawat ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर जानकारी साझा की है आइए जानते हैं इस बारे में।
प्रोबायोटिक्स और प्रीबायोटिक्स में क्या अंतर है?
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सही डाइजेशन के लिए प्रीबायोटिक और प्रोबायोटिक फूड दोनों ही बेहद जरूरी है>एक्सपर्ट के मुताबिक प्रोबायोटिक्स वह होते हैं जो आंतों में गुड बैक्टीरिया को बढ़ावा देते हैं। इंटेस्टाइन के लाइनिंग को मेंटेन करते हैं। न्यूट्रिएंट्स को अब्जॉर्ब करने में मदद करते हैं। डाइजेशन में हेल्प करते हैं। दही प्रोबायोटिक का एक बढ़िया और नेचुरल स्रोत है, खासकर जब इस घर में तैयार किया जाता है। इसके अलावा बटर मिल्क जिसे हम छाछ के नाम से जानते हैं यह भी बहुत ही अच्छा प्रोबायोटिक है। इडली और डोसा फर्मेंटेशन करके बनाया जाता है इस वजह से इसमें भी बहुत ही फायदेमंद प्रोबायोटिक होते हैं। इसके अलावा घर में तैयार की गई अचार और किमची भी प्रोबायोटिक का बढ़िया स्रोत होते हैं। इस सभी चीजों को डाइट में शामिल करने से आंतों की सेहत को बढ़ावा मिलता है।
प्रीबायोटिक वो कंपाउंड होते हैं जो हमारे इंटेस्टाइन में पहले से गुड बैक्टीरिया होते हैं उन्हीं की ग्रोथ को और ज्यादा बढ़ाते हैं। लहसुन प्रीबायोटिक का एक शानदार स्रोत है और भारतीय व्यंजनों में इसका व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाता है। पके केले में प्रतिरोधी स्टार्च होते हैं, यह एक प्रकार का प्रीबायोटिक होता है जो आंत में मौजूद बैक्टीरिया को पोषण देता है। इसके अलावा ओट्स का सेवन भी आपके लिए फायदेमंद हो सकता है। ओट्स एक बहुमुखी अनाज है जिसमें बीटा ग्लूकेंस होते हैं एक प्रकार का प्रीबायोटिक फाइबर होता है। अगर आपको डाइजेशन,आईबीएस, कब्ज, एसिडिटी, बोवेल मूवमेंट की दिक्कत हो रही है तो आप इनका सेवन कर सकते हैं।
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