दिल्ली से लगभग 150 किलोमीटर की दूरी पर बसा है, उत्तर प्रदेश का एक शहर है बिजनौर। बहुत कम लोग इसकी प्राचीनता की कहानी से रूबरू हैं। आज हम आपको न केवल इसका इतिहास बयां करेंगे बल्कि यहां मौजूद कुछ पर्यटन स्थलों की जानकारी भी देंगे जिसको पढ़कर शायद आप यहां जाने का मन भी बना लें, और ऐसा होगा भी क्यों नहीं, दिल्ली और देहरादून से यहां पहुचने के लिए ट्रांसपोर्ट सुविधायें जो मौजूद हैं। चलिए जानते हैं इसके प्रमुख स्थलों के बारे में..
बिजनौर से लगभग 12 किलोमीटर दूर, गंगा किनारे पर बसा है, विदुर कुटी मंदिर। 5000 साल पुराना यह मंदिर महाभारत काल से जुड़ा है, हस्तिनापुर राज्य के महामंत्री विदुर उस समय जीवित थे। कहा जाता है कि जब दुर्योधन ने पांडवों के विरुद्ध युद्ध करने की बात कही तो विदुर ने इस युद्ध को टालने के अनेक प्रयास किये लेकिन वह सफल न हो सके और सभी की शांति के लिए उन्होंने इस स्थान पर आकर तपस्या प्रारम्भ कर दी। बताते हैं कि स्वयं श्री कृष्ण भी विदुर से मिलने यहाँ आये थे। आज भी यहा संत समान विदुर के पद्चिन्ह मौजूद हैं। यह जगह शांतिप्रिय लोगों की साधना के लिए बहुत अच्छा विकल्प हो सकती है।
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बिजनौर के पास मौजूद यह स्थान भी अनूठा है, जो पूरी तरह महाभारत की घटनाओं से सम्बंधित है। महाभारत का महायुद्ध प्रारम्भ होने से पहले कौरव और पांडव अपने परिवार के सदस्यों को किसी क्षति से बचाने के लिए एक सुरक्षित जगह की तलाश में थे और उन्होंने पाया कि विदुर कुटी ही उनके परिवारजनों के लिए सुरक्षित स्थान है। दोनों पक्ष अपने परिवारजनों को वहाँ भेजने के लिए सहमत हो गए, लेकिन विदुर कुटी में उन सभी लोगों के रहने के लिए पर्याप्त जगह नहीं थी इसलिए विदुर ने सभी स्त्रियों और बच्चों को पास ही में स्तिथ एक स्थान पर ठहराने का निर्णय लिया, जो आज दारानगर के नाम से जाना जाता है।
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1627 से 1658 के बीच का समय रहा होगा जब सैय्यद राजू, सुल्तान शाहजहाँ के दरबार में दीवान हुआ करते थे और उनको यह पद अपने पिता 'सैय्यद अलाऊद्दीन बुखारी' की मृत्यु के बाद विरासत में मिला था। इस पद को सँभालते सैय्यद राजू शाहजहाँ के दरबार के गुणी विद्वानों में गिने जाने लगे। शाहजहाँ ने अल्लाह के प्रति उनके विश्वास और विनम्र व्यवहार को देखकर सैय्यद राजू को दरबार का निरक्षक बना दिया दरगाह-ए -आलिया नजफ़- एक ऐसी जगह है जहाँ सैय्यद राजू के जीवनकाल में अनेक चमत्कारिक घटनायें घटी। बिजनौर से लगभग 2 घंटे की दूरी तय कर इस ऐतहासिक स्थान पर पहुंचा जा सकता है। यहाँ मौजूद दरगाह हजारों लोगों के आकर्षण का केंद्र है। इस मंदिर में शादी का कार्ड भेजने के बाद ही शुरू होते हैं शगुन के काम
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