Indias Slowest Train: भारतीय रेलवे सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि विश्व भर में फेमस है। किसी भी व्यक्ति को एक शहर से दूसरे शहर में या राज्य में जाना हो तो बहुत कम पैसे में ट्रेन के माध्यम में पहुंच जाते हैं। इसलिए कई बार भारतीय रेलवे को लाइफ लाइन भी कहा जाता है।
भारत में ऐसी कई ट्रेन हैं जो मेहमान नवाजी के लिए दुनिया भर में फेमस है। इसके अलावा भारत में ऐसी कई ट्रेन हैं जिनकी स्पीड के बारे में सुनकर कई लोग हैरान हो जाते हैं। जैसे-वंदे भारत ट्रेन, राजधानी, शताब्दी एक्सप्रेस और दुरंतो एक्सप्रेस ऐसी कई ट्रेन हैं जिनकी स्पीड 180 किलोमीटर प्रति घंटा से भी अधिक है।
लेकिन अगर आपसे यह सवाल किया जाए कि भारत की सबसे धीमी चलने वाली ट्रेन का क्या नाम है तो फिर आपका जवाब क्या हो सकता है? इस लेख में हम आपको भारत में चलने वाली सबसे धीमी ट्रेन के बारे में बताने जा रहे हैं। आइए जानते हैं।
भारत में सबसे धीमी चलने वाली ट्रेन का नाम क्या है?
अगर बात करें भारत में सबसे धीमी चलने वाली ट्रेन का क्या नाम है तो आपको बता दें कि इस ट्रेन का नाम 'मेट्टुपलायम ऊटी नीलगिरी पैसेंजर ट्रेन' (नीलगिरि माउंटेन ट्रेन/रेलवे) है। कहा जाता है कि यह ट्रेन आज से नहीं बल्कि कई वर्षों से ऐसे ही चल रही है। यह ट्रेन इतनी धीमी चलती है कि इस ट्रेन का नाम यूनेस्को विश्व धरोहर में भी शामिल है। कहा जाता है कि धीमी चलने के बाद भी लोगों के बीच यह ट्रेन आकर्षण का केंद्र है।
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इस ट्रेन का रूट क्या है?
आपको बता दें कि यह ट्रेन तमिलनाडु के ऊटी में चलती है और यह एक टॉय ट्रेन है। कहा जाता है कि भाप से चलने वाली यह ट्रेन खूबसूरत वादियों, ऊंचे-ऊंचे पहाड़ और घने जंगलों के बीच से होकर गुजरती है। यह ट्रेन मेट्टुपालयम से ऊटी के बीच में चलती है और बीच में कई स्टेशन पर भी रुकती है।
ट्रेन की स्पीड क्या है?

अगर मेट्टुपलायम ऊटी नीलगिरी पैसेंजर ट्रेन की स्पीड के बारे में जिक्र करें तो यह कहा जाता है कि यह ट्रेन 46 किलोमीटर की दूरी लगभग 5 घंटे में तय करती है। कई लोगों का मानना है कि यह ट्रेन 10 किलोमीटर प्रति घंटे की स्पीड से कम स्पीड में चलती है। कई लोगों का मानना है कई बार 46 किमी तय करने में 6-7 घंटे भी लग जाते हैं, क्योंकि यह रुक-रुक कर चलती है।(बिना नाम के रेलवे स्टेशन)
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अंग्रेजों में बनवाई थी ये ट्रेन
कहा जाता है कि नीलगिरी माउंटेन रेलवे का निर्माण अंग्रेजों करवाया था। ब्रिटिश काल में अंग्रेज अधिक इस ट्रेन में बैठकर हसीन वादियों को देखने निकलते थे। कहा जाता है कि उस समय भी यह ट्रेन भांप से चलती थी और आप भांप से ही चलती है। कहा जाता है कि इस ट्रेन के डिब्बे लकड़ी के बने हुए हैं और बाहर देखने के लिए खिड़कियां लगी हुईं हैं।
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Image Credit:(tamilnadutourism,wikimedia)
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