भारत का इतिहास उठाकर देख लीजिए। लगभग हर राज्य में एक से बढ़कर एक खूबसूरत और अद्भुत पैलेस आपको दिख जाएंगे। राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, कोलकाता या फिर दक्षिण भारत में कर्नाटक चले जाए। इन राज्यों में आपको प्राचीन और मध्यकाल में निर्मित बेहतरीन पांच सितारा से लेकर सात सितारा पैलेस देखने को आसानी से मिल जाएंगे। कुछ इसी तरह का है हैदराबाद में मौजूद चौमहल्ला पैलेस।
नबाबों के शहर में मौजूद इस पैलेस को किसी मसय हैदराबाद का दिल भी कहा जाता था। यहां आज भी राजसी झलक जरूर देखने को मिलेगी। आज इस लेख में हम आपको इस पैलेस के बारे में करीब से बताने जा रहे हैं। इस लेख को पढ़ने के बाद यक़ीनन चारमीनार नहीं बल्कि, सबसे पहले चौमहल्ला पैलेस जाना पसंद करेंगे। आइए जानते हैं।
चौमहल्ला पैलेस का इतिहास
इस अद्भुत और खूबसूरत पैलेस का निर्माण वर्ष 1857 और 1895 के बीच हैदराबाद के पांचवें निजाम यानी अफजल-उद-दौला और असफ जहां वी के शासनकाल के दौरान हुआ था। हालांकि, इस पैलेस का निर्माण 1750 में ही शुरू किया गया था लेकिन, कुछ कारणों की वजह नहीं हो सका और फिर इसे 1857 और 1895 के बीच में बनवाया गया। ये पैलेस अपनी अद्भुत शैली, नक्काशी और रम्यता के लिए पूरे भारत में एक अद्वितीय महल के समान है।
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पैलेस की बनावट
कहा जाता है कि उस मसय इसे मूलत लगभग 45 एकड़ पर बनाया गया है था, लेकिन धीरे-धीरे ये पैलेस बारह एकड़ के क्षेत्र में ही रह गया है। इस पैलेस को दो भागों में बंटा गया है। जिसे एक भाग को उत्तरी आंगन और दूसरे भाग को दक्षिणी आंगन के रूप में जाना जाता है। पहले भाग में इमाम नमक कमरों का एक लंबा कॉरिडोर है। (फलकनुमा पैलेस) दरबार हॉल, शीशे में निर्मित एक मेहमान गृह भी इसी साइड है। दक्षिणी भाग में महताब महल, तहनियत महल,अफज़ल महल, और आफताब महल नामक चार पैलेस है।
खिलाफत मुबारक भवन
आपको बता दें कि 'खिलाफत मुबारक भवन' को चौमहल्ला पैलेस का दिल कहा जाता है। कहा जाता है कि निजाम की गद्दी यहीं हुआ करती थी। इस जगह को हैदराबाद के लोग काफी सम्मान करते हैं। मार्बल द्वारा निर्माण इस भवन में निजाम के लिए गद्दी तख़्त-ए-निशान का भी निर्माण किया गया है। इसके ठीक बगल में रोशन बंगला भी मौजूद है, जहां निजाम शाम को टहलने के लिए जाते थे। (इन शाही महलों की बात है निराली) हालांकि, अब इस पैलेस के कुछ हिस्से को हेरिटेज होटल में तब्दील कर दिया गया है।
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अन्य जानकारी और घूमने का टाइम
आपको बता दें कि इस पैलेस के मुख्य द्वार के ऊपर एक घड़ी है, जिसे प्यार से लोग 'खिलवत घड़ी' बोलते हैं। कहा जाता है कि ये घड़ी लगभग 2 सौ साल से लगातार चलती आ रही है। साल 2010 में 'यूनेस्को एशिया पेसिफिक मेरिट' द्वारा आयोजित सांस्कृतिक विरासत संरक्षण पुरस्कार के लिए चौमहल्ला पैलेस को चुना गया था। (मैसूर पैलेस) यहां सुबह 8 बजे से शाम 6 बजे के बीच टिकट लेकर कभी भी घूमने के लिए जा सकते हैं। ये चारमीनार से कुछ ही दूरी पर मौजूद है।
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