भारत की संस्कृति, परंपराएं और बेहतरीन कुजीन अपने में एक विविध कहानी पिरोए है। कुछ व्यंजनों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली, तो कुछ अभी भी एक्सप्लोर किए जा रहे हैं। हर कुजीन से जुड़ा उसका इतिहास, उसे और भी रोचक बनाता है। आज हम एक ऐसे ही कुजीन के बारे में बात करने जा रहे हैं, जिसका इतिहास जितना समृद्ध है, उतने ही लजीज जायकों से भरा है मेन्यु भी। आइए जानें-
बोहरी या बोहरा कुजीन का ताल्लुक दाऊदी बोहरा समुदाय से है। बोहरा समुदाय शुरुआती दौर में गुजरात के राज्यों में रहा, जहां से ‘बोहरा’ शब्द आया। गुजराती में बोहरा व्यवहार को कहते हैं। कहा जाता है कि समुदाय के ट्रेडिंग बिजनेस के कारण ही इस नाम का रेफरेंस लिया गया। बोहरा कुजीन की खासियत यह है कि यह गुजराती, अरेबिक और कई मध्य पूर्वी देशों के कुकिंग स्टाइल का मिश्रण है।
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इस समुदाय में खाने की तहज़ीब और खाना बर्बाद न करने पर बहुत जोर दिया जाता है। बोहरा समुदाय के लोग साथ में बैठकर खाने की परंपरा में विश्वास करते हैं। एक स्टैंडर्ड बोहरा थाल को एक परिवार या 8 से 9 लोगों को ध्यान में रखकर तैयार किया जाता है। बोहरा थाल को ‘तरकती’ कहते हैं, और एक चकोर कपड़े के ऊपर थाल को रखकर पेश किया जाता है, जिसे ‘सफरा’ कहते हैं। सभी लोगों के बैठ जाने के बाद, भोजन सर्व करने वाला व्यक्ति एक ‘चेलामची लोटा’ (लोटा और छोटा बेसिन) में पानी लेकर सभी लोगों के हाथ धुलवाते हैं।
पारंपरिक भोजन चुटकी भर नमक से शुरू किया जाता है। माना जाता है कि नमक आपके गट और पैलेट को साफ रखता है और कई बीमारियों से बचाता है। कई सारे लोग खाना चम्मच या फिर एक उंगली छोड़कर भोजन करते हैं, मगर बोहरा समुदाय में लोग पांचों उंगलियों का इस्तेमाल कर ही भोजन करते हैं। इसके अलावा जहां आम लोग भोजन के बाद मीठा खाना पसंद करते हैं, लेकिन यहां मीठा खाकर ही बिस्मिल्ला किया जाता है। थाल में मौजूद मिठाई या डेजर्ट को मिठास कहते हैं फिर स्टाटर्स और मेन कोर्स खाया जाता है। बोहरा भाषा में स्टाटर्स को खरास कहा जाता है।
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थाल को कढ़ी चावल, बिरयानी, दाल चावल, समोसे, सब्जी, खीर, आइसक्रीम और कई अन्य लजीज व्यंजनों से सजाया जाता है। उनके मेन कोर्स में शाकाहारी और मांसाहारी दोनों तरह के व्यंजनों को शामिल किया जाता है। इसके अलावा, सूप और तरह-तरह के सलाद को अलग से परोसा जाता है। जश्न के मौके पर थाल पर डेजर्ट के रूप में ‘सोदानू’ (घी और चीनी में बना लजीज चावल) परोसा जाता है। आखिर में ड्राई फ्रूट्स परोसने के बाद फिर से चुटकी भर नमक के साथ भोजन समाप्त किया जाता है।
बोहरा समुदाय में मीठे के रूप में ‘मलीदा’ (गेहूं और गुड़ से बना), ‘लच्छका’ (गेहूं का हलवा, जिसे आम तौर पर बोहरा कैलेंडर के साल के पहले दिन बनाया जाता है।), ‘कलमरो/कलमदो’ (योगर्ट से बनी चावल की पुडिंग) और ‘सांचा’ (आइसक्रीम) जैसे डेजर्ट पेश किया जाता है। वहीं ये लोग चावल खास तौर से पसंद करते हैं, बिरयानी से लेकर तरह-तरह के पुलाव को लोगों में खूब चाव से खाया-खिलाया जाता है। ‘बोहरा खिचड़ा’ (मटन और गेहूं से बना), ‘कीमा खिचड़ा’ (कीमा मीट पुलाव), ‘लगन-नी-सीक’ (अंडे और कीमा मीट से बना व्यंजन), ‘कीमा न समोसा’ (कीमा मीट वाले समोसे), ‘मटन कढ़ी चावल’ ( मटर के पुलाव के साथ नारियल के दूध में बना तीखा सूप) कुछ लजीज व्यंजन स्टाटर्स और मेन कोर्स में पेश किए जाते हैं। बोहरा थाल, बोहरा समुदाय की संस्कृति और परंपरा से परिचित कराती है। ऐसे कई रेस्तरां मौजूद हैं, जहां आप अपने दोस्तों और परिवार के साथ पारंपरिक बोहरा थाल का लुत्फ उठा सकते हैं। साथ ही, बोहरा समुदाय को और करीब से जान सकते हैं।
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