इस शहर में है पीर गैब की बावली, जानें इसका रोचक इतिहास

एक समय था जब दिल्ली में लगभग 100 बावलियां थीं, मगर आज कुछ ही बावली बची हैं। इन बावलियों में से कुछ दिलचस्प किस्से सुनाते हैं, जिसमें से पीर गैब की बावली भी खास रही है। तो देर किस बात की आइए विस्तार से जानते हैं पीर गैब की बावली के बारे में- 

 
pir ghaib baoli delhi history and facts in hindi

दिल्ली में रहकर, अपने दोस्तों के साथ आपने यकीनन चार से पांच बावलियां घूमी होंगी। मगर क्या आपको पता है कि आज के समय में दिल्ली में लगभग दस बावलियां मौजूद हैं। आप इन बावलियों को भी एक्सप्लोर करने का प्लान बना सकते हैं। हालांकि, एक वक्त ऐसा भी था जब राजधानी में करीब सौ बावलियां थीं, लेकिन आज कुछ ही बावली बची हैं।

ऐसे में आपको सही अर्थों में इतिहास का पता लगाना है, तो दिल्ली अतीत से जुड़े कई शानदार किस्सों, कहानियों का खजाना है, जिसे शहर के लगभग हर कोने में देखा जा सकता है। दिल्ली ने अपनी मिट्टी पर न जाने कितनी राजधानियों को बनते-बिगड़ते देखा है और भारत के इतिहास पर की कई गजब कहानियों को इसने खुद में समेटा है।

ऐसी ही कहानी पीर गैब की बावली की है, जिसका अस्तित्व आज भी बरकरार है। इसका इतिहास भी काफी रोचक रहा है, तो आइए इस लेख में विस्तार से जानते हैं।

पीर गैब की बावली का इतिहास

pir ghaib baoli ()

यह बावली बारा हिंदू राव अस्पताल परिसर के पीछे है। यह बहुत ही पुरानी बावली है, जिसे दो मंजिला बनाया गया है। इस बावली को लगभग 1630 ईस्वी में फ़िरोज़ शाह तुगलक ने अपने शिकार लॉज के एक हिस्से के रूप में बनवाया था। तब यह क्षेत्र रिज जंगलों का हिस्सा था और इसमें बहुत सारे जानवर भी मौजूद थे।

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दिलचस्प बात यह है कि यह बावली एक वेधशाला के रूप में काम करती थी। इसकी निचली मंजिल की छत और दूसरी मंजिल की छत में बने छेदों से देखा जा सकता है। इस छेद को ढकने के लिए एक छतरी भी बनाई गई है।

पीर गैब बावली में मौजूद थी सुरंग

यह बावली इसलिए भी ऐतिहासिक है क्योंकि इसके अंदर एक सुरंग भी बनाई गई थी। इसका निर्माण फिरोज शाह तुगलक प्रथम ने 1354 ई. में करवाया था। यह 1857 के विद्रोह के दौरान ब्रिटिश अधिकारियों और सैनिकों के लिए पानी का जरिया भी थी। हालांकि, अब इस तक पहुंच संभव नहीं है। (हैदराबाद की इन जगहों पर जाएं)

एक वाक्य काफी फेमस है क्योंकि ब्रिटिश सेना को डर था कि सेना में कार्यरत भारतीय सिपाही उसके पानी में जहर डाल देंगे। इसलिए यहां स्थायी रूप से एक गार्ड तैनात किया गया था। आज यहां बहुत कम पानी है और यह ज्यादातर पेड़ों से ढकी हुई है। हालांकि, बावली में आसानी से पानी को भरा और निकाला भी जा सकता है।

पीर गैब बावली की खासियत

दिल्ली की सबसे प्रसिद्ध अग्रसेन की बावली आर्किटेक्चर का एक बेहद ही शानदार नमूना है। बता दें कि इसमें 2 मंजिल हैं , जिसमें कई सीढ़ियां हैं जो कुएं तक जाती हैं। वैसे तो देश भर में कई बावलियां मौजूद हैं, जिसकी वजह से अग्रसेन की बावली भी अन्य बावलियों से मिलती-जुलती है। इसके अलावा, पीर गैब की बावली में एक छोटा सुरंग भी मौजूद है। अब यहां जाने पर पाबंदी लगा दी गई है।

इसके अलावा, ऐसा कहा जाता है कि इस बावली के अंदर मौजूद काला पानी से लोग हिप्नोटाइज हो जाते थे और वह सुसाइड कर लेते थे। हालांकि, इस बात के अभी तक कोई प्रमाण नहीं मिले हैं और अब इस बावली के अंदर मौजूद कुआं पूरी तरह से सूख चुका है। (क्या आपने Mandarmani का नाम सुना है)

दिल्ली की सबसे डरावनी जगह

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ऐसा कहा जाता है कि यह दिल्ली की सबसे डरावनी जगहों में से एक है। पीर गैब की बावली में चमगादड़ और कबूतरों ने अपना डेरा डाला हुआ है। आसपास रहने वाले लोगों का कहना है कि वहां से अजीबो-गरीब आवाजें आती हैं और उन्होंने कई बार यहां भूतों को भी देखा है। हर कोई व्यक्ति इस जगह के बारे में अपनी अलग-अलग राय देता है।

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यह बावली तब अधिक डरावनी लगती है जब आप नीचे कुएं के पास पहुंच जाते हैं और फिर आपको आसमान नहीं दिखता है। इसके साथ ही आपके सिर के ऊपर केवल चमगादड़ और कबूतरों मंडराते हुए नजर आते हैं।

पानी की आपूर्ति करने के लिए बनाई जाती थी बावली

पहले की समय में बावड़ियों को पानी की आपूर्ति के लिए बनवाया जाता था। अक्सर गांव के लोग इन्हीं बावड़ियों से पानी भरकर ले जाया करते थे। मगर सिर्फ पानी की आपूर्ति के लिए ही नहीं, बल्कि जब पुराने समय में बारिश नहीं होती थी और गर्मी अधिक बढ़ जाती थी तो लोग बावड़ी के अंदर ही विश्राम करते थे। ऐसा इसलिए क्योंकि पानी और गहराई के कारण यह बावड़ियां ठंडी रहती थी।

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Image Credit- (@Freepik)

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