दिल्ली अपने अंदर अनेक ऐतिहासिक धरोहरों और स्थापत्य कला के अनगिनत नमूने समेटे हुए है। मुगल और दिल्ली सल्तनत के समय की इमारतें आज भी यहां की विरासत का हिस्सा हैं। इन शानदार इमारतों में से कुछ प्रसिद्ध हैं जैसे कि कुतुब मीनार, लाल किला और हुमायूं का मकबरा।
लेकिन कुछ ऐसी भी ऐतिहासिक इमारतें हैं जो कम मशहूर हैं, फिर भी अपने ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व के कारण बहुत खास हैं। इन्हीं में से एक है तोहफे वाला गुंबद, जो दिल्ली के दक्षिणी इलाके में स्थित है।
तोहफा वाला गुंबद का इतिहास
तोहफा वाला गुंबद एक छोटा-सा, लेकिन सुंदर मकबरा है, जो शाहपुर जाट के पास स्थित है। इसे लोदी वंश के समय में बनाया गया था, जब दिल्ली पर लोदी शासकों का शासन था। तोहफे वाला गुंबद अपने वास्तुशिल्पीय महत्व और लोदी शैली की स्थापत्य कला का शानदार उदाहरण है।
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इस गुंबद की सादगी और सुंदरता इसे बाकी इमारतों से अलग बनाती है। हालांकि, यह स्मारक बहुत ज्यादा प्रसिद्ध नहीं है, फिर भी जो लोग इतिहास और पुरातत्व में रुचि रखते हैं, उनके लिए यह जगह बेहद खास है। यही वजह है यहां बहुत कम लोग आते-जाते हैं।
तोहफा वाला गुंबद का स्थापत्य और संरचना
तोहफा वाला गुंबद की वास्तुकला लोदी काल की शैली का प्रतिनिधित्व करती है, जिसमें सादगी और दृढ़ता का मिश्रण देखने को मिलता है। इसका मुख्य ढांचा एक गुंबद है, जो एक छोटे से चबूतरे पर स्थित है।
गुंबद के चारों ओर चार मेहराबदार दरवाजे हैं, जो इस स्मारक को एक खुली और हवादार संरचना प्रदान करते हैं। इसके गुंबद पर लगी पत्थर की जाली और नक्काशी लोदी शैली की विशेषताएं हैं।
बलुआ पत्थर और ईंटों का इस्तेमाल
गुंबद के अंदर कोई सजावट नहीं है, लेकिन इसकी सादगी में भी एक खास आकषर्ण है। इस स्मारक के निर्माण में बलुआ पत्थर और ईंटों का इस्तेमाल किया गया है। इसका गुंबद एक केंद्रीय मकबरे के ऊपर स्थित है।
गुंबद के अंदर कोई शिलालेख या अन्य ऐतिहासिक जानकारी उपलब्ध नहीं है, जिससे इसके निर्माण और इसके अंदर दफन व्यक्ति के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करना मुश्किल हो जाता है। फिर भी इसके आसपास की कला और वास्तुकला इसकी लोदी कालीन उत्पत्ति की पुष्टि करती है।
तोहफा वाला गुंबद का नाम के पीछे का इतिहास
इस स्मारक का नाम तोहफा वाला गुंबद कैसे पड़ा, इसके बारे में ऐतिहासिक रूप से कोई निश्चित जानकारी मौजूद नहीं है। हालांकि, कई इतिहासकारों का मानना है कि यह नाम किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति या शासक के उपहार या तोहफे के रूप में इस मकबरे का निर्माण होने से जुड़ा हो सकता है।
यह भी हो सकता है कि यह मकबरा किसी दरबारी या शाही परिवार के किसी सदस्य के लिए बनाया गया हो, जिसे तोहफा के रूप में स्मरण किया गया हो। इस नाम के पीछे की कहानी आज भी रहस्य बनी हुई है, क्योंकि इस इमारत से जुड़े बहुत से दस्तावेज और जानकारियां उपलब्ध नहीं हैं।
तोहफा वाला गुंबद का ऐतिहासिक महत्व क्या है?
दिल्ली में लोदी वंश ने कई महत्वपूर्ण स्मारक बनवाए, जो स्थापत्य कला और संस्कृति का प्रतीक हैं। तोहफा वाला गुंबद उन्हीं स्मारकों में से एक है, जो लोदी वंश के समय की स्थापत्य परंपराओं को प्रदर्शित करता है।
इस स्मारक का ऐतिहासिक महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है, क्योंकि यह एक ऐसे समय का प्रतीक है जब दिल्ली का शहरी विकास तेजी से हो रहा था और धार्मिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं को बढ़ावा दिया जा रहा था।
इस स्मारक के ऐतिहासिक महत्व के बावजूद, इसे बहुत कम लोगों ने देखा है या इसके बारे में सुना है। तोहफे वाला गुंबद उन धरोहरों में से एक है, जो इतिहास के पन्नों में कहीं खो गए हैं। लेकिन जो लोग इसके बारे में जानते हैं, वे उनकी सादगी और शांति की सराहना करते हैं।
तोहफा वाला गुंबद की कैसे होती है देखभाल
आज तोहफा वाला गुंबद को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के संरक्षण में रखा गया है, ताकि इसकी मरम्मत और देखभाल हो सके। हालांकि, इसके आसपास के क्षेत्र में तेजी से हो रहे शहरी विकास और व्यवस्था निर्माण के कारण इस स्मारक का संरक्षण चुनौतीपूर्ण हो गया है। फिर भी दिल्ली की पुरानी इमारतों और स्मारकों के बीच तोहफा वाला गुंबद आज भी अपनी जगह बनाए हुए है।
जो लोग हौज खास या उसके आसपास घूमने जाते हैं, वे इस गुंबद को देखकर अच्छा महसूस करते हैं। यह स्थान भीड़-भाड़ से दूर एक शांत कोना है, जहां इतिहास प्रेमी और पर्यटक दिल्ली के प्राचीन समय की झलक पा सकते हैं।
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कैसे जाएं?
अगर आप यहां घूमने का प्लान बना रहे हैं, तो यहां जाने के लिए ऑटो या मेट्रो का रास्ता चुना जा सकता है। आप येलो लाइन की मेट्रो ले सकते हैं, जो सीधीशाहपुर जाट तक जाती है।
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Image Credit- (@kevinstandagephotography and shutterstock)
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