भारत में मौजूद हर राज्य, शहर और जिले का अपना एक ही प्राचीन इतिहास रहा है, जिसे एक संघर्ष और बलिदान के बाद गाढ़ा गया है। इसलिए हिंदुस्तान का हर राज्य चाहे वो मध्य प्रदेश हो या फिर राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, गुजरात आदि की अपनी एक अलग ही कहानी है। इन राज्यों का इतिहास पढ़ना या फिर इन राज्यों में हुए युद्ध के बारे में जानना ज्ञानवर्धक हो सकता है।
ऐसा ही हरियाणा में मौजूद पानीपत का इतिहास भी बेहद रोचक रहा है। यहां एक नहीं बल्कि तीन-तीन युद्ध हुए हैं जो भारतीय इतिहास में आज भी नाम लिया जाता है। पानीपत के युद्ध में दिल्ली के शासक और हुमायूँ के पिता बाबर, इब्राहिम लोदी और मराठा साम्राज्य का नाम भी जुड़ा हुआ है। आज इस लेख में हम आपको पानीपत के युद्ध के बारे में रोचक तथ्य बताने जा रहे हैं। आइए जानते हैं।
पानीपत का प्रथम युद्ध
जब भी पानीपत शहर का नाम लिया जाता है तो पानीपत का प्रथम युद्ध और फिर से द्वितीय और तृतीय युद्ध का जिक्र होता है। कहा जाता है कि इस युद्ध के बाद दिल्ली में मुग़ल साम्राज्य की नीव रखी गई थी। जी हां, ज़हीर उद्दीन मोहम्मद बाबर की सेना ने दिल्ली के तत्कालीन सुल्तान इब्राहिम लोदी को युद्ध में परास्त करके दिल्ली की गद्दी अपने कब्जे में ले लिया।(हरियाणा की 10 प्रसिद्ध और ऐतिहासिक जगहें)
पानीपत का प्रथम युद्ध 21 अप्रैल 1526 में लड़ा गया था। कहा जाता है कि इस बाबर की सेना में लगभग 12-15 हज़ार पौदल सैनिक और 20 से अधिक तोप थी जिसके सामने इब्राहिम लोदी अधिक समय तक टिक नहीं सका। इसके अलावा ये भी कहा जाता है कि कम से कम 300 युद्ध हाथियों को भी शामिल किया गया था। इस युद्ध में जिस पैमने पर गोला-बारूद का इस्तेमाल किया गया था उससे पहले किसी भी युद्ध में नहीं देखा गया था।
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पानीपत का द्वितीय युद्ध
जिस तरह से पानीपत का प्रथम युद्ध इतिहास में दर्ज है ठीक उसी तरह पानीपत का द्वितीय युद्ध भी इतिहास के पन्नों में मोटे अक्षरों में दर्ज है। यह युद्ध 5 नवम्बर 1556 को उत्तर भारत के हिंदू शासक सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य और अकबर की सेना के बीच पानीपत के मैदान में लड़ा गया था। अकबर के इस जीत के बाद दिल्ली की गद्दी पर पूर्ण अधिकार हो गया।(हल्दीघाटी के बारे में जानें)
कहा जाता है कि इस युद्ध में अकबर के सेनापति खान जमान और बैरम खान में अहम भूमिका निभाई थी। उधर एक अन्य कहानी है कि उस समय अकबर केवल तेरह वर्ष का था। कहा जाता है कि इस लड़ाई में पहली बार बारूदी आग्नेयास्त्रों और मैदानी तोपखाने का प्रयोग किया गया था।
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पानीपत का तृतीय युद्ध
पानीपत का तृतीय युद्ध मराठा साम्राज्य के लिए बेहद ही महत्वपूर्ण माना जाता है। कहा जाता है कि इस युद्ध के बाद ही मराठा साम्राज्य का उदय हुआ। युद्ध अहमद शाह अब्दाली और मराठा सेनापति सदाशिव राव भाऊ के बीच 14 जनवरी 1761 को पानीपत में हुआ था। पानीपत के तृतीय युद्ध 18वीं शताब्दी का सबसे बड़ा युद्ध माना जाता है, क्योंकि ये कहा जाता है कि इस युद्ध में सैनिकों की सबसे अधिक मृत्यु हुई थी।
हालांकि, इस युद्ध में मराठा सेना की हार हो गई थी। कहा जाता है हार के बाद 1761 में माधवराव द्वितीय पेशवा बने और उन्होंने महादाजी सिंधिया और नाना फडणवीस की सहायता से उत्तर-भारत में अपना प्रभाव फिर से जमा लिया।
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