भारत की धरती एक नहीं बल्कि कई युद्ध की साक्षी है। प्राचीन काल से लेकर मध्यकाल तक यहां ऐसे कई युद्ध हुए जिसे आज भी भारतीय इतिहास से जोड़कर देखा जाता है। तराइन का युद्ध, कलिंग की लड़ाई, तराइन का द्वितीय युद्ध, पानीपत का प्रथम युद्ध, खानवा का युद्ध, हल्दीघाटी का युद्ध और प्लासी का युद्ध आदि कई युद्ध शामिल हैं जो भारतीय इतिहास के पन्नों में आज भी मोटे-मोटे अक्षरों में दर्ज हैं। भारत में हुए हर युद्ध की अपनी एक अलग ही कहानी रही है।
आज जिस युद्ध के बारे में जिक्र करने से जा रहे हैं उसके बारे में कहा जाता है कि 'युद्ध ने बिहार के साथ-साथ भारत की दशा और दिशा को निर्धारित कर दिया'। जी हां, हम बात कर रहे हैं 'बक्सर युद्ध' के बारे में। इस लेख में हम आपको बक्सर युद्ध के बारे में कुछ रोचक जानकारी देने जा रहे हैं जिन्हें आप भी ज़रूर जानना चाहेंगे। आइए जानते हैं।
बक्सर युद्ध के कारण
कहा जाता है कि बक्सर का युद्ध साल 1963 में ही आरंभ हो चुका था लेकिन मूल रूप से यह युद्ध 22 अक्टूबर 1964 में लड़ा गया। कहा जाता है कि प्लासी के युद्ध के बाद अंग्रेजों ने मीर कासिम को बंगाल का नवाब बना दिया। वो चाहते थे कि गद्दी पर कोई अयोग्य व्यक्ति बैठे ताकि सत्ता पर नियंत्रण रख सके। लेकिन, ऐसा नहीं हुआ और मीर कासिम योग्य निकला और अंग्रेजों को लगान देने से मना कर दिया।
इसे भी पढ़ें:आजादी की लड़ाई से लेकर दर्जी से शादी करने तक, कुछ ऐसी रही एक्ट्रेस दीना पाठक की जिंदगी
मीर कासिम के द्वारा व्यापार पर नियंत्रण
सत्ता पर बैठते ही मीर कासिम ने अवैध व्यापार को रोकने के लिए कई नियम लगा दिए जिसके चलते अंग्रेज काफी परेशान होने लगे। कई चौकियों पर दिन-रात जांच-पड़ताल होने लगी। कहा जाता है कि इससे कंपनी की भ्रष्ट आय रूक गई। कुछ समय बाद मीर कासिम को सत्ता से हटाने की मांग भी उठने लगी और अंत में अंग्रेजों ने मीर कासिम को हरा दिया और उनकी जगह मीर जाफर को नवाब बना दिया गया।(महानदी का इतिहास)
मीर कासिम और शुजाउद्दौला
मीर कासिम हराने के बाद बिहार और अवध के नवाब शुजाउद्दौला के पास पहुंचे। इसी बीच मुगल सम्राट शाह आलम भी अवध में मौजूद थे। कहा जाता है कि तीनों में मिलकर अंग्रेजों से संघर्ष करने का निश्चय किया। वहीं दूसरी ओर अंग्रेज़ी सेना का नेतृत्व उनका कुशल सेनापति 'कैप्टन मुनरो' कर रहा था। दोनों सेना बिहार में बलिया से लगभग 40 किमी दूर 'बक्सर' नमक स्थान पर आमने-सामने आ पहुंची।(इन 5 महारानियों ने चटाई थी अंग्रेजों को धूल)
22 अक्टूबर 1964 के इस युद्ध में मीर कासिम, शुजाउद्दौला और मुगल सम्राट शाह आलम की हार हो गई। कहा जाता है कि इस युद्ध से पहले ही अंग्रेजों ने अवध के नवाब की सेना से असद ख़ा, (रोहतास का सूबेदार) और जैनुल अबादीन को धन का लालच देकर अलग कर दिया था।
इसे भी पढ़ें:इन 10 प्रसिद्ध हिंदी उपन्यास में से आप किसे पढ़ना पसंद करेंगे
युद्ध का असर
ऐसा माना जाता है कि इस हार के बाद मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय, मीर क़ासिम और नवाब शुजाउद्दौला, तीनों पूर्ण रूप से कठपुतली शासक हो गये थे। इस युद्ध की क्षतिपूर्ति मे बंगाल से 50 लाख रूपया वसूल किया गया था। ससे भारतीय शक्तियों की प्रतिष्ठा गिरी और क्रमशः पतनशील हो गई। कहा जाता है इस विजय के बाद अंग्रेजों का दबदबा और भी बढ़ गया। हालांकि, इस युद्ध में कितने लोग मरे इसका कोई अध्रिकारिक अकड़ा नहीं है।
अगर आपको यह स्टोरी अच्छी लगी हो तो इसे फेसबुक पर जरूर शेयर करें और इसी तरह के अन्य लेख पढ़ने के लिए जुड़ी रहें आपकी अपनी वेबसाइट हरजिन्दगी के साथ।
Recommended Video
Image Credit:(@wiki,bihar)
HerZindagi ऐप के साथ पाएं हेल्थ, फिटनेस और ब्यूटी से जुड़ी हर जानकारी, सीधे आपके फोन पर! आज ही डाउनलोड करें और बनाएं अपनी जिंदगी को और बेहतर!
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों