दुनिया बहुत बड़ी है और उससे भी ज्यादा बड़े हैं इस दुनिया की कई जगहों से जुड़े रहस्य और उनसे जुड़ी कहानियां। यकीनन दुनिया की कई रहस्यमई जगहों से जुड़ी हज़ारों कहानियां होती हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि उन कहानियों के पीछे कैसी सच्चाई है? जब रहस्यमई जगहों की बात की जा रही है तो फिर हिमालय को कैसे पीछे छोड़ा जा सकता है। हिमालय से जुड़ी न जाने कितनी लोक कथाएं तो आपने सुनी ही होंगी, लेकिन आज हम बात करने जा रहे हैं हिमालय की एक खास चोटी की जिसका नाम है कंचनजंगा।
भारत की सबसे ऊंची चोटी कंचनजंगा से जुड़ी बहुत सी कहानियां हैं जिनके बारे में हमें जानना चाहिए। ये कहानियां कंचनजंगा को खास बनाती हैं। क्या आप जानते हैं कि ये दुनिया की दूसरी सबसे ऊंची हिमालय चोटी है और भारत में ये सबसे ऊंची है। इतना ही नहीं इसके इर्द-गिर्द बहुत सी कहानियां भी बसी हुई हैं। इससे जुड़े कई विवाद भी हैं तो चलिए इस चोटी से जुड़ी कहानियां आपको बताते हैं।
हम हमेशा कंचनजंगा को इस तरह से बोलते हैं जैसे ये एक ही नाम हो पर असल में ये चार शब्दों का मेल है। कांग (बर्फ), चेन (बड़ा), डज़ो (खजाना), अंगा (पांच) ये तिब्बतियन शब्द हैं जिनका मतलब है 'बर्फ में दबे पांच खजाने'। ऐसा माना जाता है कि हर खजाना भगवान द्वारा रखा गया है। इसमें सोना, चांदी, जवाहरात, पौराणिक किताबें और अनाज शामिल है।
पांच चोटियों में से तीन भारत-नेपाल बॉर्डर पर स्थित हैं और ये नॉर्थ सिक्किम और नेपाल की तापेलजंग डिस्ट्रिक्स के बीच मौजूद हैं। अन्य दो पूरी तरह से नेपाल में हैं।
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वैसे तो अब आप जानते हैं कि हिमालयन चोटी माउंट एवरेस्ट सबसे ऊंचा पहाड़ है, लेकिन सन् 1800 तक कंचनजंगा को ही सबसे ऊंचा माना जाता था। दरअसल, 1852 में ब्रिटिश टीम ने एक ट्रिग्नोमेट्रिक सर्वे किया था जिसमें माउंट एवरेस्ट को सबसे ऊंची चोटी माना गया था। पर उससे पहले कंचनजंगा को ही सबसे ऊंचा माना जाता रहा है। तो अगर आप 200 साल पहले पैदा होते तो वर्ल्ड फैक्ट्स में थोड़ा बदलाव हो जाता।
कंचनजंगा को लेकर बहुत सारे विवाद भी हुए हैं। भारत सरकार ने कंचनजंगा के एक्सपेडीशन सन् 2000 में बंद कर दिए थे। दरअसल एक ऑस्ट्रेलियाई टीम ने 20 हज़ार डॉलर के बदले कंचनजंगा पर चढ़ाई की थी और स्थानीय निवासियों को ये लगा था कि ये उनके भगवान का निरादर है। इस घटना से बौद्ध समाज के लोगों को बहुत ठेस पहुंची थी और उन्होंने कंचनजंगा पर इस तरह चढ़ने को लेकर आपत्ती जताई थी। पर अगर कोई अभी भी कंचनजंगा पर चढ़ना चाहे तो वो नेपाल की तरफ से चढ़ सकता है।
कंचनजंगा पर चढ़ने वाले पहले दो लोग थे जो ब्राउन और जॉर्ज बैंड जिन्होंने 25 मई 1955 को इसपर चढ़ाई की थी। उन्होंने स्थानीय निवासियों से वादा किया था कि वो पर्वत की चोटी पर नहीं चढ़ेंगे। ऐसा इसलिए क्योंकि उसकी चोटी पर धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवानों का निवास होता है।
ये मान्यता आज भी है और आज तक कोई भी पर्वतारोही इसकी चोटी पर खड़े नहीं हो पाए हैं। करीब 200 पर्वतारोहियों ने इसके बहुत करीब जाने की कोशिश की और उनमें से 1/4 इसी कोशिश में मारे गए। हर पर्वतारोही इसकी चोटी से कुछ फिट दूर ही रुक जाता है।
कंचनजंगा पर न जाने कितने लोगों की मौत हुई है और उनके शव आज तक वापस नहीं आ पाए। कंचनजंगा को एक पौराणिक मान्यता के अनुसार एक दैत्य का घर माना जाता है जिसे स्थानीय भाषा में डज़ो-अंगा (Dzö-nga) कहा जाता है। 1925 में ब्रिटिश टीम ने एक ऐसा ही दैत्य देखने का दावा किया था जिसे स्थानीय लोगों ने कंचनजंगा दैत्य कहा था।
कंचनजंगा में बहुत सारे भूतों की कहानियां भी बसी हुई हैं। दरअसल, ऑक्सीजन की कमी के कारण कई लोगों को भ्रम और हैलुसिनेशन्स भी होते हैं। ऐसे में कई लोगों ने भूत, प्रेत, आत्मा, दैत्य आदि दिखने और अनोखी आवाज़े सुनने का दावा किया है।
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कंचनजंगा की चोटी पर कई लोग गायब हो चुके हैं। तुलशुक लिंग्पा नामक एक तिब्बतियन भिक्षु अपने 12 साथियों के साथ एक नए पथ की खोज पर इस चोटी पर निकला था और वो ज़ोर-ज़ोर से मंत्र पढ़ता हुआ जा रहा था। ऐसा मानना है कि वो बर्फ के बीच गायब हो गया। कुछ लोग ये भी कहते हैं कि वो हिमस्खलन का शिकार हो गए।
ऐसे ही 1992 में एक पोलिश पर्वतारोही वांडा ने कंचनजंगा पर जाने की कोशिश की। वांडा पहली महिला बनना चाहती थी जिसने हिमालय की सभी 14 चोटियों पर चढ़ाई की हो। पर वो भी अचानक गायब हो गई। उसका शरीर कभी नहीं मिला। माना जाता है कि वो भी बर्फ के नीचे दब गईं।
ऐसी कई कहानियां और कई किस्से कंचनजंगा के जुड़े आपको मिल जाएंगे। ये पर्वत कुछ अलग है और कुछ खास है।
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