कानपुर के नजदीक इस जगह बिताया था रानी लक्ष्मी बाई ने अपना बचपन

एक ऐसी धरती जहां का कतरा कतरा औरतों के बलिदान और स्वभिमान से बना है, आज हम आपको उसी धरती की कराएंगे सैर । 

bithoor fort

बिठूर, इस नाम का उल्लेख भारत के इतिहास में कई जगह किया गया है। केवल इतिहास में ही नहीं बल्कि यह स्‍थान हिंदू धर्म में भी काफी महत्‍व रखता है। बिठूर से जुड़ी कई धार्मिक और एतिहासिक कथाएं हैं। यह शहर उत्तर प्रदेश की औद्योगिक राजधानी कहे जाने वाले कानपुर शहर से मात्र 22 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

कनपुर से बिठूर जाने के कई साधन हैं। यहां की धरती पर कदम रखते ही आपको चारों तरफ प्रकृतिक खूबसरती और हरियाली नजर आएगी। एतिहासिक और धर्मिक स्‍थल होने के कारण कई पौराणिक मंदिर और एतिहासिक इमारतें भी देखने को मिलेंगी।

इतना ही नहीं, यहां आपको देश की ऐसी दो सहासी महिलाओं से जुड़ी कहानी जानने को मिलेगी जिसे सुन कर आप बार-बार बिठूर आना चाहेंगे।

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सीता को यहीं त्यागा था राम ने

हिन्दू मान्यताओं के अनुसार भगवान राम जब रावण से वध कर 14 वर्ष के वनवास से लौटे तो लोगों ने उनके देवी सीता की पवित्रता को लेकर कान भरने शुरू कर दिए, लोगों की शंकाओं ओर आलोचनाओं के समाधान के तौर पर भगवान राम ने देवी सीता का त्याग कर दिया। पति के त्यागने के बाद देवी सीता ने अपने मायके जनकपुरी जाने की जगह आश्रम का साधवी वाला जीवन जीना पसंद किया और वह बिठूर स्थित संत वाल्मीकि आश्रम आ गईं। इसके बाद सीता ने यही राम के दोनों पुत्रों लव कुश को भी जन्म दिया। राम के दोबारा लौटने पर सीता ने बिठूर में ही अग्नि परीक्षा भी दी।

1857 के संग्राम का केंद्र था बिठूर

बिठूर को सन 1857 के ऐतिहासिक प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का केंद्र भी माना जाता है। बिठूर वही स्थान है जहां, झांसी की रानी लक्ष्मी बाई का बचपन बीता है। बिठूर में ही रानी लक्ष्मी बाई ने घुड़सवारी, तीरांदाजी, बारूद बनाना और यु्द्ध करना सीखा था। नानाराव पेश्वा और तात्या टोपे जैसे वीरों की धरती रहे बिठूर में आज भी कई ऐतिहासिक इमारतें मौजूद हैं जहां पर पेश्वाई संस्कृति के अंश मिलते हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि टोपे परिवार की एक पीढ़ी आज भी बैरकपुर में रहती है।

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ब्रह्मा ने यहीं की थी सृष्टि की रचना

कहा जाता है कि बिठूर ही वह स्थान है जहां भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की थी। यहां ब्रह्मकुटी नाम का एक स्थन है जहां कहा जाता है कि ब्रह्मा जी की नाभी बनी हुई है और यही विश्व का केंद्र भी है। आपको बता दें कि बिठूर को 52 घाटों की नगरी कहा जाता है। मगर गंगा नदि किनारे बसे इस गांव में अब केवल 30 घाट ही बचे हैं।

कहां घूमें

वाल्मीकि आश्रम- यह आश्रम संत वाल्मीकी जी का है और यहां पर हर साला लाखों लोग विजिट करने आते हैं। यहां पर आपको सीता जी की रसोई और उनके बर्तन देखने को भी मिल जाएंगे।

स्वर्ग की सीढ़ी- आश्रम से कुछ दूसरी पर स्थित एक मंदिर कई सिढि़यां होने की वजह से प्रसिद्ध है। यहां के लोग इस जगह को स्वर्ग की सीढ़ी कहते हैं।

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पाथर घाट- लाल पत्थरों से बने इस घाट पर अनोखी कला के नमूने मिलते हैं। इस घाट को अवध के मंत्री टिकैत राय बनवया था। घाट के निकट ही एक विशाल शिव मंदिर है, जहां कसौटी पत्थर से बना शिवलिंग स्थापित किया गया है। ऐसी मान्यता है कि शिवलिंग का साइज हर वर्ष कुछ इंच बढ़ता घटता रहता है।

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ध्रुव टीला-ध्रुव टीला बिठूर का सबसे खूबसूरत स्थान है। कहा जाता है यहां बालक ध्रुव ने एक पैर पर खड़े होकर तपस्या की थी। ध्रुव की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान ने उसे एक दैवीय तारे के रूप में सदैव चमकने का वरदान दिया था।

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