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भूरागढ़ किले पर क्यों आयोजित किया जाता है नटबली का मेला? जानें क्या है वजह

केन नदी के किनारे भूरागढ़ किले के खंडहर मौजूद हैं जहां एक मेला आयोजित किया जाता है, जिसे 'नटबली का मेला' कहा जाता है।
Editorial
Updated:- 2021-12-28, 12:54 IST

भारत में ऐसे कई किले हैं, जो किसी ना किसी वजह से पर्यटकों के बीच बेहद मशहूर हैं। इनमें से ही एक भूरागढ़ किला है। यह बांदा में स्थित एक ऐसा किला है, जिसे देखने हर साल पर्यटकों का एक भारी हुजूम आता है। केन नदी के किनारे स्थित भूरागढ़ किले को 17वीं शताब्दी में राजा गुमान सिंह द्वारा भूरे पत्थरों से बनवाया गया था। वर्तमान समय में किले के खंडहर मौजूद हैं। यह स्थान स्वतंत्रता संग्राम के दौरान महत्वपूर्ण था। वैसे इस स्थान पर एक मेला आयोजित किया जाता है, जिसे 'नटबली का मेला' कहा जाता है। इस मेले के चर्चे दूर-दूर तक होते हैं।

क्यों आयोजित किया जाता है नटबली का मेला?

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बांदा शहर की सीमा पर केन नदी और भूरागढ़ दुर्ग के बीच दो पुराने मंदिर हैं। ये दोनों ही मंदिर नटबली की वजह से जाने जाते हैं। मालूम हो, मकर संक्रांति के दिन इन दो मंदिरों के पास ही एक मेले का आयोजन किया जाता है। इस मेले को नटबली और उसकी प्रेमिका की याद में आयोजित किया जाता है। कहा जाता है कि नटबली अपनी प्रेमिका को पाने के लिए केन नदी को सूत की रस्सी पर चलकर पार कर रहा था। मगर नदी पार करते हुए वो अपनी जान गंवा बैठा। ऐसे में नटबली और उसकी प्रेमिका को याद करते हुए इस मेले का आयोजन किया जाता है।

माना जाता है कि भूरागढ़ किले के किलेदार की बेटी से एक नट को प्यार हो गया था। जब इस बात की खबर किलेदार को पड़ी तो वो पहले बहुत नाराज हुआ, लेकिन बाद में उसने नट के सामने एक शर्त रखी। उसने कहा कि अगर सूत की रस्सी पर चलकर नदी पार करके नट किले में आता है तो वो उससे अपनी बेटी की शादी कर देगा। किलेदार की ये शर्त उस प्रेमी नट ने स्वीकार कर ली। अपनी शर्त को पूरा करने के लिए नट ने मकर संक्रांति का दिन चुना।

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प्रेमिका ने भी कूदकर दे दी थी जान

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इसी क्रम में नट ने सूत की रस्सी को नदी के इस पार से लेकर किले तक बांध दिया। रस्सी पर चलते हुए नट ने नदी पार कर ली और वह दुर्ग के करीब आ गया। इस दौरान नट बिरादरी के लोड उस युवक का हौसला बढ़ा रहे थे तो वहीं किलेदार भी अपनी बेटी के साथ इस नज़ारे को किले से देख रहा था। ऐसे में नट बस दुर्ग पर पहुंचने ही वाला था कि किलेदार ने उसकी रस्सी काट दी, जिससे नट की चट्टानों पर गिरकर मृत्यु हो गई। युवती से ये नजारा देखा नहीं गया तो उसने भी दुर्ग से छलांग लगाकर जान दे दी।

दोनों की मृत्यु की याद में दो मंदिरों का निर्माण कराया गया, जो आज भी वहां मौजूद हैं। इन मंदिरों को नट बिरादरी के लोग आज भी पूजते हैं। यही कारण है कि हर साल मकर संक्रांति के मौके पर नट और उसकी प्रेमिका की याद में यहां मेले का आयोजन किया जाता है। इस मेले को देखने के लिए बड़ी तादाद में लोग आते हैं, जहां अधिकतर पति-पत्नी या प्रेमी-प्रेमिका के जोड़ो की भरमार देखने को मिलती है।

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