आजकल बड़े-बड़े मॉल में जरूरत का हर सामान उपलब्ध है, लेकिन जो बात देसी मेलों में है, वह मॉल में देखने को नहीं मिलती। भारत की परंपरा और संस्कृति के जैसे दर्शन यहां के पारंपरिक मेलों में दिखाई देते हैं, वैसे कहीं और देखने को नहीं मिलते। देश के हर राज्य में अलग-अलग त्योहार मनाए जाते हैं और इनमें काफी विविधता देखने को मिलती है। इन्हीं में एक खास फेस्टिवल है गुजरात का तारणेतर फेस्टिवल। इस मेले में शॉपिंग, मौज-मस्ती के साथ और भी कई ऐसी चीजें हैं, जिनके बारे में जानकर आपको मजा आएगा। तो आइए जानते हैं इस अनूठे फेस्टिवल के बारे में-
यहां आज भी है स्वयंवर की परंपरा
पहले के समय में देश में 'स्वयंवर' की परंपरा है, जिसमें महिला को अपने साथी को चुनने का हक होता था। हालांकि गांव और शहरों में अब यह परंपरा देखने को नहीं मिलती, लेकिन कुछ आदिवासी समूहों में महिलाएं अपने साथी को चुनने के लिए पूरी तरह से स्वतंत्र होती हैं। स्वयंवर की झलक इस मेले में देखने को मिलती है। तरणेतर मेले में जिस तरह से आदिवासी युवक पूरी तरह से सजधज कर आते हैं, उसे देखते हुए स्वयंवर जैसा माहौल ही नजर आता है। गुजरात के सौराष्ट्र इलाके में आयोजित होने वाले इस मेले में युवतियां जीवन साथी चुनते हैं। यहां हम आपको इस मेले के बारे में बता रहे हैं।
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रंग-बिरंगी छतरियों के नीचे इंतजार करते हैं युवक
गुजरात के सौराष्ट्र इलाके में थानगढ़ के करीब स्थित है तरणेतर, जहां यह मेले हर साल धूमधाम से संपन्न होता है। इस साल भी यह मेला पूरे उल्लास के साथ मनाया जा रहा है। दरअसल सौराष्ट्र में आदिवासियों की संख्या ज्यादा है, इसीलिए यहां के रीति-रिवाज और परंपराएं काफी अलग हैं। दंतकथाओं के अनुसार महाभारत के समय से ही यहां यह मेला आयोजित किया जा रहा है। महाभारत में अर्जुन ने मछली की आंख पर निशाना लगाकर द्रौपदी को स्वयंवर में जीत लिया था। उसे से प्रेरित यहां के युवक और युवतियां मेले में अपने साथी को चुनते हैं। अपने अनूठे कलेवर और विविधता के कारण तरणेतर मेला गुजरात के सबसे ज्यादा लोकप्रिय मेलों में गिना जाता है। दिलचस्प बात ये है कि इस मेले में आने के लिए ये युवक और युवतियां काफी उत्साहित होते हैं। वे अपने यहां के पारंपरिक कपड़े पहनकर खुद की बनाई रंग-रंगीली छतरी के नीचे बैठते हैं और युवतियों का इंतजार करते हैं।
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मेले में सज-धज कर आती हैं महिलाएं
चूंकि युवतियां यहां अपने भावी पति को चुनने के लिए आती हैं, इसीलिए वे भी अपनी तरफ से अच्छी तरह से तैयार होकर आती हैं। इन महिलाओं के साथ इनके परिवार वाले भी होते हैं। जिस छतरी के नीचे खड़ा युवक महिला को पसंद आता है, उसी छतरी के नीचे वे रुक जाती हैं। इसके बाद परिवार वाले शादी की तारीख तय कर लेते हैं। इस मेले में शादी योग्य लड़के-लड़कियों के अलावा मेले का आनंद लेने के लिए भी बच्चे और बड़े आते हैं।
दिखते हैं भांति-भांति के कपड़े
अगर आपको गुजराती फैब्रिक और उनकी एंब्रॉएड्री अच्छी लगती हैं, तो आपको इस मेले में हैंडमेड एंब्रॉएड्री सहित पारंपरिक कपड़ों की ढेर सारी वैराएटी देखने को मिलती है। कपड़ों के अलावा इस मेले में जानवरों की प्रदर्शनी लगाई जाती है। साथ ही यहां मनोरंजन के लिए कई तरह के खेल भी आयोजित किए जाते हैं। ऐतिहासिक त्रिनेश्वर मंदिर के करीब लगने वाले इस मेले की धूम चाद दिन तक दिखाई देती है।
पवित्र जल में स्नान करने के लिए आते हैं श्रद्धालु
मेले में आने वाली महिलाएं त्रिनेश्वर मंदिर में दर्शन करने के साथ-साथ मंदिर के पास स्थित सरोवर में स्नान के लिए भी जाती हैं। माना जाता है कि इस सरोवर का जल पवित्र है और यहां के जल में स्नान करने से कुछ वैसा ही पुण्यफल मिल जाता है, जैसा कि गंगा नदी में स्नान करके मिलता है।
तरणेतर मेले में शरीक होने के लिए कैसे पहुंचें
तरणेतर मेले में अगर आप शरीक होना चाहती हैं तो आसानी से यहां तक पहुंच सकती हैं। राजकोट एयरपोर्ट यहां का सबसे नजदीकी हवाई अड्डा है। अहमदाबाद और मुंबई से हवाई मार्ग के जरिए राजकोट पहुंचा जा सकता है। यहां से मेले का स्थान सबसे करीब का रेलवे स्टेशन थानगढ़ है, जो 8 किमी दूर है। यह रेलवे स्टेशन अहमदाबाद-राजकोट रेलवे लाइन से भी जुड़ा हुआ है। इसके अलावा सड़क के मार्ग से भी यहां तक आसानी से पहुंचा जा सकता है।
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