केरल का आज्हिमाला शिव मंदिर समंदर के किनारे बना है। इस मंदिर में भगवान शिव की विशाल प्रतिमा को स्थापित किया गया है, जो 58 फ़ीट ऊंची है। समुद्र के किनारे होने की वजह से भगवान शिव की प्रतिमा को बनाने के लिए सीमेंट और विशेष कैमिकल डाले गए हैं, ताक़ि खारे पानी की वजह से इसे कोई नुक़सान ना पहुंचे। यह मंदिर श्रद्धालुओं को काफ़ी आकर्षित करता है, इसलिए लोग दूर-दूर से भगवान शिव की विशाल प्रतिमा को देखने यहां आते हैं।
ख़ास बात है कि शिव की ये प्रतिमा अन्य प्रतिमाओं से काफ़ी अलग है। आज्हिमाला शिव मंदिर तिरुवनंतपुरम ज़िले में विजिनजम पूर्व मार्ग पर स्थित है। थंपनूर से 20 किमी और कोवलम से 7 किमी दूरी पर स्थित है। मंदिर में आने के बाद लोग शिव की विशाल प्रतिमा को अपने मोबाइल फ़ोन में कैप्चर करना नहीं भूलते हैं। यही नहीं आसपास मौजूद प्राकृतिक नज़ारे लोगों का दिल जीतने के लिए काफ़ी हैं।
भगवान शिव की इस विशाल प्रतिमा का निर्माण
आज्हिमाला शिव मंदिर में भगवान शिव की प्रतिमा का निर्माण करने वाले देवदाथन 29 साल के हैं। हालांकि उन्होंने इस प्रतिमा का निर्माण 22 साल की उम्र में करवाना शुरू कर दिया था। मीडिया को दी गई जानकारी के अनुसार इसे बनाने से पहले उन्होंने काफ़ी रिसर्च की थी, तब जाकर इसे चट्टान में बनाया गया है। इसे बनने में क़रीबन 6 वर्ष लग गए थे, जिसके बाद भक्तों के लिए इस मंदिर के दरवाज़े खोल दिया गये। वहीं जिस मंदिर में शिव की प्रतिमा को स्थापित किया गया है वह 3500 स्क्वायर फ़ीट में फैला हुआ है। वहीं भगवान शिव की इस प्रतिमा को गंगाधरेश्वर नाम दिया गया है। इसके पास ही मेडिटेशन हॉल भी बनाया गया है। इस प्रतिमा की मुद्रा पारंपरिक शिव प्रतिमाओं से अलग है।
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इस मंदिर तक पहुंचने के लिए कई साधन हैं
आज्हिमाला शिव मंदिर तक पहुंचने के लिए टैक्सी और बस दोनों ही उपलब्ध हैं। अगर आप तिरुवनंतपुरम छुट्टियां बिताने आ रही हैं तो आज्हिमाला मंदिर के दर्शन करना ना भूलें। शिव मंदिर के अलावा यहां कई ऐसे मंदिर हैं जो प्रचीन होने के साथ-साथ अपनी अनोखी ख़ूबसूरती के लिए मशहूर है। मंदिर अपने जटिल और ख़ूबसूरत डिज़ाइन की वजह से अधिक प्रसिद्ध है। समन्दर के किनारे स्थित होने की वजह से इस मंदिर के आसपास बहुत सारी चट्टाने हैं। यही वजह है कि सनराइज़ और सनसेट के वक़्त लोगों की भीड़ यहां देखने को मिलती है। फ़िलहाल कोरोना महामारी के वक़्त सभी मंदिरों को बंद रखा गया है, लेकिन आम दिनों में यह मंदिर सुबह 5:30 से 9 बजे तक खुला रहता है और शाम को 4:30 से 8:00 बजे तक खुला रहता है।
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मंदिर में होता है वार्षिक उत्सव
इस मंदिर में जनवरी और फ़रवरी के समय में वार्षिक उत्सव का आयोजन किया जाता है। जहां हज़ारों भक्त 'नारंगा विलाक्कू' की पेशकश करते हैं। नारंगा विलाक्कू में लोग नींबू पर तेल का दीपक जलाते हैं। समुद्र के किनारे सैकड़ों श्रद्धालु तेल का दीया जलाते हैं। उस वक़्त रात भर जगमगाते दीपक देखने में काफ़ी आकर्षित करते हैं। समुद्र के किनारे होने की वजह से उत्सव की रौनक दोगुनी हो जाती है।
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