पंचतत्व में से एक, अग्नि में एक विशेष गुण है, जिसमें वह किसी भी चीज को बिना देखे अंगीकार कर सकती है। अंगीकार करते हुए वह कभी ये नहीं देखेगी की यह किसकी जमीन, वस्तु और जगह है। लेकिन क्या आपको पता है अग्नि देव के इस श्राप के बारे में जिसमें किसी भी चीज को जलाने की ये शक्ति वरदान नहीं बल्कि एक ऋषि द्वारा दी गई श्राप है। चलिए जानते हैं इसके बारे में...
अग्नि देव को क्यों मिला सबकुछ जलाकर राख करने का श्राप?
ब्रह्मा जी के पुत्र महर्षि भृगु एक बार संध्या करने गंगा तट पर गए, रास्ते में पुलोमन नामक राक्षस ने उन्हें जाते हुए देखा। महर्षि की अनुपस्थिति में पुलोमन उनकी कुटिया में साधु का भेष बनाकर पहुंचे और महर्षि भृगु की पत्नी पुलोमा से भिक्षा मांगी। भिक्षा की मांग सुन पुलोमा बाहर आईं और साधु के रूप में राक्षस को प्रणाम कर भिक्षा दिया। पुलोमा ने साधु को भोजन का न्योता भी दिया और भीतर बुलाकर भोजन करवाया। पुलोमन चुपचाप भोजन कर बाहर निकल गए।
राक्षस पुलोमा को देखने आया क्योंकि बचपन में पुलोमा के पिता ने पलोमन के साथ वाग्दान संस्कार कर दिया था। पुलोमा की खूबसूरती से पुलोमन को बहुत दुख हुआ और भोजन कर जब वे कुटिया से बाहर आए तो हवन कुंड में अग्नि प्रज्वलित कर अग्नि देव का आवाहन किया। अग्नि देव से पुलोमन ने कहा कि हे अग्निदेव आपको आपके धर्म की सौगंध, कृपा करके मेरी प्रश्नों का सच-सच उत्तर दें, इस पर अग्नि देव ने कहा पुछो पुलोमन क्या पूछना है।
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इसपर पुलोमन ने कहा कि इस पुलोमा का विवाह बचपन में इसके पिता ने मेरे साथ कर दिया था। लेकिन युवा होने के बाद महर्षि भृगु के साथ कर दिया गया। ऐसे में आप ही बताएं कि यह किसकी पत्नी है? यह सुन अग्नि देव असमंजस में पड़ गए, जिसके बाद पुलोमन ने कहा यदि यह मेरी पत्नी है, तो मैं इसे अभी अपने साथ ले चलूंगा और यदि आपने असत्य कहा तो मैं आपको श्राप दूंगा।
इस ऋषि ने दिया अग्नि देव को श्राप
इसपर अग्निदेव कहते हैं कि हे पुलोमन यह सच है कि पुलोमा के पिता ने इसका विवाह बचपन में किया था, लेकिन वह विवाह, वाणी के आधार पर हुआ था। युवा होने पर जब पुलोमा का विवाह महर्षि भृगु के साथ हुआ, तो वह पूरे रीति-रिवाजों के साथ हुआ है। अपनी पक्ष में बात न सुन पुलोमन गर्भवती पुलोमा को उठाकर ले जाने लगे, जिसके कारण उसी समय पुलोमा ने एक पुत्र को जन्म दिया और बच्चे के तेज से पुलोमन जलकर राख हो गया। यह सब देख पुलोमा डर गई, तभी वहां संध्या कर महर्षि भृगु आए। पुलोमा ने महर्षि भृगु को सब कुछ बता दिया, जिससे क्रोधित होकर महर्षि भृगु ने अग्निदेव को श्राप दिया और कहा कि यदि तटस्थता ही तुम्हारा स्वभाव है, तो अब बिना सही गलत देखे तुम चीजों का भक्षण या ग्रहण करोगे।
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श्राप के बाद ब्रह्मा देव ने अग्नि देव को दिया
महर्षि भृगु का श्राप देख अग्निदेव अंतर्ध्यान हो गए, जिसके बाद पूरे सृष्टि में त्राहि-त्राहि मचने लगी। देवता महर्षि भृगु के श्राप के बाद अपने ऊपर आए इस विपत्ति को लेकर ब्रम्हा देव के पास गए। देवताओं की बात सुन ब्रम्हा देव ने अग्नि देव को बुलाया और उन्हें यह वरदान किया कि आपके स्पर्श मात्र से चीजें पवित्र और शुद्ध हो जाएगा। इसके अलावा देवताओं को अर्पित किए गए भोग में से एक हिस्सा आपका होगा। यह सुन देवता और अग्नि देव बहुत प्रसन्न हुए।
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Image Credit-Herzindagi
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