why did lord shiva fight with hanuman

भगवान शिव और हनुमान जी के बीच क्यों हुआ था युद्ध?

पौराणिक कथाओं में कई ऐसी घटनाओं का उल्लेख मिलता है जब भगवान शिव के प्रेम और स्नेह को हनुमान जी के प्रति प्रत्यक्ष रूप से देखा गया है, लेकिन एक ऐसी घटना भी है जब हनुमान जी और भगवान शिव के बीच घमासान युद्ध छिड़ गया था।  
Editorial
Updated:- 2025-05-05, 11:03 IST

भगवान शिव के रूद्र अवतार माने जाते हैं हनुमान जी। बाल्यकाल में अन्य देवी-देवताओं के साथ-साथ हनुमान जी को भगवान शिव ने भी वरदान दिया था। भगवान शिव से ही हनुमान जी को अजेय अमर होने का आशीर्वाद प्राप्त हुआ था। पौराणिक कथाओं में कई ऐसी घटनाओं का उल्लेख मिलता है जब भगवान शिव के प्रेम और स्नेह को हनुमान जी के प्रति प्रत्यक्ष रूप से देखा गया है, लेकिन एक ऐसी घटना का भी शास्त्रों में वर्णन है जब हनुमान जी और भगवान शिव के बीच घमासान युद्ध छिड़ गया था। इसी कड़ी में ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स ने हमें बताया कि भगवान शिव और हनुमान जी का युद्ध इतना भयंकर था कि स्वयं श्री राम को युद्ध रोकने के लिए आना पड़ा था। आइये जानते हैं शास्त्रों के माध्यम से इस घटना के बारे में विस्तार से।

श्री राम ने किया था अश्वमेध यज्ञ का आयोजन

bhagwan shiv aur hanuman ji ke beech kyu hui thi ladai

कथा के अनुसार, जब श्री राम माता सीता और लक्ष्मण के साथ अयोध्या लौटे थे, तब उनका विधिवत रघुकुल की परंपरा अनुसार राज्य अभिषेक हुआ था, जिसके बाद श्री राम ने कुल गुरु के कहने पर अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया था। परंपरा अनुसार, अश्वमेध यज्ञ के अश्व को यज्ञ के दौरान समस्त पृथ्वी पर विचरण के लिए छोड़ा जाता है और अगर कोई इस अश्व को पकड़ कर बंधी बना ले तो इसका मतलब है अश्वमेध यज्ञ का आयोजन करने वाले राजा से सीधा-सीधा युद्ध। ऐसा ही कुछ हुआ जब श्री राम के अश्वमेध यज्ञ का अश्व स्वतंत्र विचरण करते हुए देवपुर पहुंचा। देवपुर के राजा वीरमणि के पुत्र रुक्मांगद ने अश्वमेध यज्ञ के अश्व को बंधी बनाकर श्री राम को युद्ध की चुनौती दे डाली।

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हनुमान जी के साथ श्री राम की सेना ने युद्ध के लिए प्रस्थान

श्री राम को जब इस बात का पता चला तो हनुमान जी के साथ श्री राम के सबसे छोटे भाई शत्रुघ्न युद्ध के लिए निकल पड़े। दूसरी ओर रुक्मांगद ने भी युद्ध की सभी तैयारियां कर ली थीं। जब श्री राम की सेना देवपुर पहुंची तब दोनों सेनाओं में भीषण युद्ध छिड़ गया। युद्ध का परिणाम श्री राम के पक्ष में आया क्योंकि कुछ क्षणों में ही अकेले हनुमान जी ने वीरमणि की समस्त सेना को पराजित कर दिया था और वीरमणि को भी मूर्छित कर दिया था। इसके अलावा वीरमणि के पुत्र रुक्मांगद को हारने के लिए हनुमान जी उसकी ओर बढ़ने लगे, लेकिन रुक्मांगद और वीरमणि द्दोनों ही परम शिव भक्त थे और शिव जी ने उन्हें यह वरदान दिया था कि युद्ध में पराजय के समय शिव जी उनकी सहायता करेंगे।

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शिव ने युद्ध में भाग लेकर हनुमान जी से किया था युद्ध

shiv ji ne hanuman ji se kyu kiya tha yudh

भगवान शिव इस वचन को निभाने के लिए युद्ध स्थल पर प्रकट हुए और उन्होंने हनुमान जी को युद्ध के लिए सज्ज हो जाने क लिए कहा। श्री राम की आज्ञा में बंधें हनुमान जी पीछे नहीं हट सकते थे, इसलिए उन्होंने भगवान शिव के साथ युद्ध करना स्वीकार किया। जहां एक ओर हनुमान जी का भगवान शिव के साथ भीषण युद्ध चल रहा था तो वहीं, दूसरी ओर भगवान शिव के रूद्र अवतार वीरभद्र ने समस्त रा सेना का संहार कर दिया और शत्रुघ्न को भी पराजित कर मूर्छित कर दिया। यह देख हनुमान जी भी अपने पंचमुखी रौद्र रूप में आ गए। भगवान शिव और हनुमान जी के बीच मात्र कुछ पलों के युद्ध से सृष्टि नष्ट होने लगी, जिसके बाद श्री श्री राम ने हस्तक्षेप करते हुए इस युद्ध को विराम दिया।

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FAQ
हनुमान जी को भगवान शिव से कौन सा वरदान मिला था?
हनुमान जी को भगवान शिव से अमरता और अजेय होने का वरदान प्राप्त हुआ था।
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