शरीर में मौजूद बैक्टीरिया के विकास और नकारात्मक विकारों को खत्म करने के लिए जिस चीज का इस्तेमाल किया जाता है उसे मेडिकल भाषा में एंटीबॉयोटिक्स या एंटीबैक्टिरियल मेडिकल ड्रग्स कहते हैं। एंटीबॉयोटिक्स से वायरस द्वारा पैदा हुए इफेंक्शन का भी इलाज किया जाता है। हालांकि सर्दी-जुकाम, खांसी और फ्लू आदि में एंटीबॉयोटिक्स का उपयोग नहीं होता है। शरीर की एक सामान्य स्थिति में, श्वेत रक्त कोशिकाओं का उपयोग बैक्टीरिया के संक्रमण को मारने के लिए किया जाता है, जो शरीर द्वारा उतनी तेजी से आवश्यक नहीं होता जितना तेजी से कार्य करना शुरू होता है। दिल्ली के मशहूर फिजिशन डॉक्टर सुनील सक्सेना का कहना है 'ऐसा नहीं है कि एंटीबॉयोटिक्स के सिर्फ फायदे ही होते हैं, एक समय के बाद एंटीबॉयोटिक्स शरीर को कई तरह के नुकसान भी पहुंचाती है।' आज इस आर्टिकल में डॉक्टर से बातचीज कर हम आपको एंटीबॉयोटिक्स के प्रकार, इस्तेमाल और साइड इफेक्ट्स के बारे में पूरी जानकारी देंगे।
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एंटीबॉयोटिक्स के प्रकार
- निमोनिया के इलाज के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले एंटीबायोटिक्स को क्विनोलोन के रूप में जाना जाता है। आमतौर पर इस्तेमाल किए जाने वाले क्विनोलोन लेवोफ्लोक्सासिन और सिप्रोफ्लोक्सासिन हैं।
- एंटीबायोटिक्स जैसे पेनिसिलिन कोशिका की दीवार के आस-पास बैक्टीरिया पर काम करके इसे मारते हैं और कोशिका झिल्ली को गिरने देते हैं।
- मैक्रोलाइड्स बैक्टीरिया को प्रभावित करने वाले प्रोटीन हैं। वे कोशिका के जीवाणु राइबोसोम पर हमला करते हैं और विभिन्न त्वचा संक्रमणों से लड़ते हैं। आमतौर पर इस्तेमाल किया जाने वाला मैक्रोलाइड एरिथ्रोमाइसिन है।

एंटीबॉयोटिक्स का इस्तेमाल
- आमतौर पर सभी जीवाणु संक्रमण का इलाज एंटीबायोटिक दवाओं के द्वारा इलाज किया जाता है। हालांकि किस रोग के लिए किस और कितने स्पेक्ट्रम की जरूरत होगी, यह डॉक्टर बताते हैं।
- ब्रॉड-स्पेक्ट्रम एंटीबायोटिक्स सामान्य संक्रमण और रोगों में दिए जाते हैं।
- सीमित स्पेक्ट्रम एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल विशेष प्रकार के संक्रमण के लिए किया जाता है।

इन रोगों में होता है एंटीबॉयोटिक्स का इस्तेमाल
- निमोनिया
- किडनी संबंधी रोग
- साइनस इंफेक्शन
- मेनिन्जाइटिस
- दांत संबंधी रोग
- कानों का इंफेक्शन
- आंतों में संक्रमण
एंटीबॉयोटिक्स के साइड इफेक्ट्स
- अनहेल्दी व हेल्दी बैक्टीरिया के बीच के फर्क को किस तरह से रखना है यह एंटीबॉयोटिक्स को पता नहीं होता है। यही कारण है कि एंटीबॉयोटिक्स अनहेल्दी के साथ साथ हेल्दी बैक्टीरिया को भी मार देती है।
- रिसर्च बताती है कि लंबे समय से किसी नई और दमदार एंटीबॉयोटिक्स का निर्माण नहीं किया गया है। ऐसे में जो एंटीबॉयोटिक दवाएं उपलब्ध हैं, वे अब बीमारियों के हिसाब से बेअसर हो रही हैं और कई बीमारियों का इलाज करने में भी नाकामयाब साबित हो रही हैं। इस स्थिति में जबरदस्ती एंटीबॉयोटिक्स लेने से किडनी प्रभावित हो सकती है।
- अगर आप लंबे समय तक स्ट्रॉन्ग एंटीबायोटिक्स लेते हैं तो आपके शरीर के नाजुक अंगों को खतरा हो सकता है।
- एंटीबायोटिक्स तभी लें जब डॉक्टर ने प्रिस्क्राइब किया हो। क्योंकि अगर आप अपनी मर्जी से इन्हें लेंगे तो न ही रोग सही होगा बल्कि उलटा शरीर में ऐसे बैक्टिरिया पनप जाएंगे जिससे आप खतरे में पड़ सकते हैं।
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