बच्चों में रुक-रुक कर बोलने की आदत आम होती है और ऐसे में अक्सर लोग हकलाहट की समस्या (Stammering in children)को भीनजरअंदाज कर देते हैं। वहीं आगे चलकर इसके चलते बच्चे को काफी शर्मिंदगी और बुलिंग का शिकार होना पड़ता है। इसलिए समय रहते बच्चों में हकलाहट की समस्या की पहचान कर उसका निदान करना जरूरी है और इसके लिए अभिभावकों का जागरूक होना जरूरी है।
हमारा यह आर्टिकल इसी दिशा में छोटा सा प्रयास है, जिसमें हम आपको बता रहे हैं कि किस तरह से आप समय रहते इस समस्या की वजह पहचान कर उसका निजात कर सकते हैं। दरअसल, हमने इस बारे में स्पीच थैरेपिस्ट शालिनी श्रीवास्तव से बात की और उनसे मिली जानकारी यहां आपके साथ शेयर कर रहे हैं।
ऐसे करें इस समस्या की पहचान
बच्चों की तोतली आवाज में बोलना हर किसी को भाता है, पर ऐसे में हकलाहट को भी कई बार लोग बच्चों की प्यार भरी हरकत मान नजरअंदाज कर देते हैं। लेकिन अगर बच्चा चाहकर भी किसी शब्द को बोल नहीं पा रहा है या उसे पूरा वाक्य बोलने में दिक्कत आती है तो आपको इस बात की गंभीरता को समझने होगी। जैसे कि अगर आपका बच्चा किसी ध्वनि या शब्दांशों को बार-बार दोहराता है तो समझ लीजिए कि यह स्पष्ट तौर पर हकलाहट की समस्या है।
बता दें कि 2 से 6 साल की उम्र के 75 प्रतिशत बच्चों में तुतलाने या हकलाहट की समस्या पेश आती है। पर समय के साथ ही यह समस्या काफी हद तक सही हो जाती है। सिर्फ 1 से 3 प्रतिशत बच्चों में यह समस्या गंभीर रूप लेती है, जिसके चलते उन्हें व्यस्क उम्र में हकलाहट की दिक्कत पेश आती है। इसलिए बचपन में इस समस्या का निदान जरूरी हो जाता है।
क्यों होती है हकलाहट की समस्या
अब बात करें आखिर बच्चों में हकलाहट की समस्या क्यों होती है तो शालिनी श्रीवास्तव कहती हैं कि इसके लिए जेनेटिक से लेकर व्यवहारिक की तरह की समस्याएं जिम्मेदार होती हैं। जैसे कुछ बच्चों में हकलाहट की समस्या अनुवांशिक होती हैं, जबकि कुछ बच्चों में न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर के कारण भी यह समस्या पेश आती है।
इसके अलावा कई बार बच्चे के घर-परिवार और आस-पास की परिस्थितियां भी इसके लिए जिम्मेदार होती हैं। सामाजिक और व्यवहारिक दबाव में आत्मविश्वास की कमी महसूस करते हैं, जिसके कारण उन्हें बोलने में दिक्कत पेश आ सकती है।
कैसे करे हकलाहट की समस्या का निदान
गौरतलब है कि बच्चे 3 से 5 साल तक की उम्र में स्पष्ट रूप से बोलना शुरू कर देते हैं, इसलिए अगर आपका बच्चा इस उम्र के बाद भी ऐसा नहीं कर पा रहा है तो आपको उसे बाल रोग विशेषज्ञ को जरूर दिखाना चाहिए। डॉक्टर बच्चे के परीक्षण के आधार पर हकलाहट की समस्या की असल वजह बताएंगे। जैसे कि अगर बच्चे में किसी फिजिकल या किसी न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर के कारण यह समस्या पेश आ रही है तो उसका मेडिकल ट्रीटमेंट कराया जा सकता है। वहीं अगर बच्चा व्यवहारिक दिक्कतों के कारण बोलने में खुद को असमर्थ पा रहा है और उसे हकलाहट की समस्या हो रही है तो इसके लिए स्पीच थेरेपी काफी कारगर हो सकती है।
स्पीच थेरेपी से दूर हो सकती है हकलाहट
बता दें कि स्पीच थेरेपी के जरिए बोलने से जुड़ी व्यवहारिक दिक्कतें काफी हद तक दूर की जा सकती हैं। असल में, इस थैरेपी में एक्सपर्ट्स रोजाना अभ्यास के जरिए बच्चों को अक्षरों और शब्दों के उच्चारण से लेकर व्यवहारिक कमियों का निदान करते हैं। इस थेरेपी के दौरान बच्चों को चित्रों, आकृतियों और खेल उपकरणों की सहायता से बोलने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
यह थेरेपी बच्चों के मनोविज्ञान के साथ उनकी उच्चारण और बोलचाल से जुड़ी कमियों पर काम करती है। इस दौरान बच्चों को ब्रीदिंग एक्सरसाइज और स्लो स्पीच टेक्निक का अभ्यास कराया जाता है, जो काफी हद तक बोलने संबंधी समस्याएं को दूर करने में सहायक साबित होते हैं।
कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी भी है कारगर
हकलाहट से निजात दिलाने में कॉग्नेटिव बिहेवियरल थेरेपी (Cognitive behavioural therapy) भी कारगर हो सकती है। इसमें मनोचिकित्सक बच्चे की हरकतों और चेहरे पर उमड़ते भाव को पहचानना कर उसकी मानसिक स्थिति का अवलोकन करते हैं। इसके बाद इस अवलोकन के आधार मनो चिकित्सा के जरिए हकलाहट और बोलने में आने वाली मानसिक परेशानी का हल किया जाता है।
बात अगर हकलाहट के निजात के लिए मनो चिकित्सा की जाए तो खुद अभिभावक भी अपने बच्चे की समस्या को समझते हुए इसके लिए उचित प्रयास कर सकते हैं। बोलने में होने वाली झिझक को दूर करने के लिए अभिभावक के तौर पर आप अपने बच्चो को प्रोत्साहित कर सकते हैं। साथ यह आपकी जिम्मेदारी है आप समझे कि आपके बच्चे को आस-पास के माहौल के कारण किसी तरह की मानसिक समस्या तो पेश नहीं आ रही है।
अक्सर बच्चे मानसिक अवसाद के चलते भी बोलने में खुद को असहज पाते हैं। इसलिए अगर आपके बच्चे को ऐसी कोई दिक्कत है तो आप उसके लिए स्पीच थैरेपी या मनोचिकित्सा का सहारा ले सकते हैं।
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