इन पांच वजहों से इंटरमिटेंट फास्टिंग के दौरान ईटिंग विंडो टाइम फिक्स करना है जरूरी

अगर आप इंटरमिटेंट फास्टिंग को फॉलो कर रही हैं तो आपका ईटिंग विंडो टाइम फिक्स होना कई मायनों में बेहद जरूरी है। एक्सपर्ट से जानें।

fix eating window during intermittent fasting

पिछले कुछ समय में इंटरमिटेंट फास्टिंग बहुत अधिक पॉपुलर हुई है। आज के समय में अधिकतर लोग वेट लॉस करने के लिए या फिर अपने खान-पान के तरीकों को बेहतर बनाने के लिए इंटरमिटेंट फास्टिंग करना पसंद करते हैं। इंटरमिटेंट फास्टिंग कई तरह से होती है, लेकिन इस तरह की डाइट में आपके खाने का एक विंडो पीरियड होता है।

इस दौरान ही लोग खाते हैं और बाकी समय फास्टिंग करते हैं। आमतौर पर लोग 12:12 या फिर 16:8 की इंटरमिटेंट फास्टिंग करते हैं।

इस डाइट को फॉलो करते समय ईटिंग विंडो टाइम को फिक्स रखना बेहद जरूरी होता है। हालांकि, अधिकतर लोग इस ओर ध्यान नहीं देते हैं। वे सिर्फ आठ घंटे ही खाते हैं। लेकिन दिन का पहला मील कभी 7 बजे तो कभी 8 बजे लेते हैं।

ऐसा करना सही नहीं माना जाता है। तो चलिए आज इस लेख में सेंट्रल गवर्नमेंट हॉस्पिटल के ईएसआईसी अस्पताल की डाइटीशियन रितु पुरी आपको बता रही हैं कि इंटरमिटेंट फास्टिंग के दौरान ईटिंग विंडो टाइम का फिक्स होना जरूरी क्यों है-

सर्केडियन रिदम होता है बेहतर

intermittent fasting

अगर आप इंटरमिटेंट फास्टिंग कर रहे हैं तो ऐसे में खाने व फास्टिंग विंडो को फिक्स करने से सर्केडियन रिदम बेहतर होता है। यह वास्तव में बॉडी की एक बायोलॉजिकल क्लॉक है। जिसमें समय पर आपकी बॉडी में हार्मोन, जूसेस, एंजाइम्स स्रावित होते हैं।

जब आप तय समय पर खाते हैं या फास्टिंग रखते हैं तो सर्केडियन रिदम इंप्रूव होने से आपका मेटाबॉलिज्म भी बेहतर होता है। साथ ही साथ, डाइजेशन व शरीर में पोषक तत्वों का अब्जार्बशन भी सुधरता है, क्योंकि बॉडी एक सिस्टेमिक तरीके से काम कर पाती है।

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सुधरती हैं इंसुलिन सेंसेटिविटी

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इंटरमिटेंट फास्टिंग के दौरान ईटिंग विंडो फिक्स होने से इंसुलिन सेंसेटिविटी पर भी अच्छा असर पड़ता है। जब हम फास्टिंग करते हैं तो इससे ब्लड शुगर रेग्युलेशन बेहतर होता है।

साथ ही साथ, बॉडी का इंसुलिन का काम भी अधिक कंट्रोल हो जाता है। यह शरीर में इंसुलिन रेसिस्टेंस को भी कम करता है।

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एनर्जी पर पड़ता है पॉजिटिव असर

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जब आप एक निश्चित समय पर खाते हैं और फास्टिंग करते हैं तो ऐसे में बॉडी की एनर्जी पूरे दिन काफी स्टेबलाइज रहती है। दरअसल, इंटरमिटेंट फास्टिंग के दौरान बॉडी ट्रेन हो जाती है कि आप उसे कब खाना देते हैं और कब फास्टिंग करते हैं।

जिससे वह सिस्टमेटिक तरीके से काम करती है। हर दिन फिक्स टाइम पर खाने से फूड एनर्जी में बदलता है। इससे आपका एनर्जी लेवल एकदम से बहुत लो या हाई नहीं होता है। इससे भी शुगर व हार्मोन कंट्रोल तरीके से काम करते हैं और आप अधिक हेल्दी बनते हैं।

सुधरता है डाइजेशन सिस्टम

इंटरमिटेंट फास्टिंग के दौरान फिक्स टाइम पर खाने से डाइजेशन सिस्टम पर भी पॉजिटिव असर देखने को मिलता है। दरअसल, बॉडी के पास पर्याप्त समय होता है कि वह रेस्ट, रिपेयर व रिकवर कर सके। ऐसे में जिन लोगों को इनडाइजेशन या फिर ब्लोटिंग की प्रोब्लम होती है, वह काफी कम हो जाती है।

वेट मैनेजमेंट में मददगार

इंटरमिटेंट फास्टिंग के दौरान अगर फिक्स टाइम पर खाना खाया जाता है तो इससे आपके लिए अपने वजन को मैनेज करने में मदद मिलती है। फिर भले ही आपको वजन कम करना हो या फिर बढ़ाना हो, दोनों में ही आपको फायदा होता है।

दरअसल, आपका एक फिक्स ईटिंग विंडो होता है, जिसमें आपको पता होता है कि आपको कब क्या और कितना खाना है। ऐसे में आप अपने कैलोरी इनटेक को बैलेंस कर पाते हैं और एक हेल्दी वेट मेंटेन कर पाते हैं।

यहां आपको यह याद रखना चाहिए कि यह एक दिन में नहीं होता है। शुरुआत में आपको कुछ परेशानियां हो सकती हैं, क्योंकि आपकी बॉडी नए बदलावों को एडजस्ट कर रही होती है। लेकिन समय के साथ आपको बहुत फायदा मिलता है।

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Image Credit- freepik

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