एक्सपर्ट का कहना है कि बच्चें कुछ गलतियां ऐसी करते हैं जिस वजह से उनकी आंखें कमजोर हो जाती हैं या फिर आंखों से जुड़ी गंभीर बीमारियां हो जाती हैं। दुनिया में करोड़ों लोग अनावश्यक रूप से दृष्टिबाधित हैं, जिनका इलाज किया जा सकता है या उनकी आंख को खराब होने से बचाया जा सकता है। यह कहना है जानेमाने नेत्ररोग विशेषज्ञ पद्मश्री डॉ. महिपाल सचदेव का। सेंटर फॉर साइट ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल्स के अध्यक्ष और चिकित्सा निदेशक डॉ. सचदेव ने कहा कि दुनियाभर में इस समस्या की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए हर साल अक्टूबर के दूसरे गुरुवार को 'वल्र्ड साइट डे' मनाया जाता है। इस साल के वल्र्ड साइट डे की थीम है "हर जगह आंख की देखभाल"।
उन्होंने कहा कि अभी ग्रामीण क्षेत्रों में 2.1 9 लाख की आबादी के लिए केवल एक नेत्ररोग विशेषज्ञ है, जबकि शहरी क्षेत्रों में 25 हजार की आबादी के लिए एक है। यह एक ऐसा देश है, जहां 13 करोड़ 30 लाख लोग दृष्टिबाधित हैं। इनमें वे 1 करोड़ 10 लाख बच्चे भी शामिल हैं जो एक साधारण नेत्र परीक्षण की कमी और एक जोड़ी उचित चश्मे का इंतजाम नहीं होने के कारण दृष्टि से वंचित हैं।
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डॉ. सचदेव ने कहा, "जीवन शैली में परिवर्तन, गैजेट्स के अत्यधिक उपयोग, मधुमेह के बढ़ते मामलों के कारण बच्चों में मायोपिया और वयस्कों में डाइबेटिक रेटिनोपैथी में काफी वृद्धि हुई है। इसलिए बच्चों के लिए स्कूल जाने के पूर्व और वयस्कों के लिए कम से कम सालाना आंखों की जांच सुनिश्चित करने की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि मोतियाबिंद और रिफ्रैक्टिव त्रुटि अंधापन के सबसे आम और आसानी से रोकने योग्य कारण हैं। भारत को देश के रूप में न केवल बुजुर्गों की जिंदगी की गुणवत्ता को बढ़ाने, बल्कि देश के कामकाजी लोगों की कार्य क्षमता को भी बढ़ाने के लिए मोतियाबिंद शल्य चिकित्सा कवरेज को सामाजिक इक्वैलाइजर संकेतक के रूप में लाना आवश्यक है।
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डॉ. सचदेव ने कहा कि कॉर्नियल अंधापन को भी एक बड़ी चीज मानने की जरूरत है क्योंकि कोई व्यक्ति एक बार दुनिया छोड़ने के बाद भी दुनिया को देख सकता है। भारत ऐसा देश है जहां सबसे ज्यादा प्रत्यारोपण की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि नवीनतम रोबोटिक कैटेरैक्ट सर्जरी या फेम्टोसेकंड लेजर असिस्टेड कैटेरेक्ट तकनीक ने मिनीमली इंवैसिव कैटेरेक्ट सर्जरी को अत्यधिक सटीक और अनुमानित बना दिया है। इसके अलावा इंट्राओकुलर लेंस के लिए प्रौद्योगिकियों में प्रगति के कारण मोतियाबिंद सर्जरी के एक से कुछ दिनों के भीतर ही बिल्कुल स्पष्ट ²ष्टि पाना संभव हो गया है। ट्राइफोकल, मल्टीफोकल और टोरिक आईओएल जैसे नए लेंस डिजाइनों ने मोतियाबिंद सर्जरी के बाद चश्मों पर निर्भरता को भी कम कर दिया है।
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