देवी शक्‍ती के ये मंदिर हैं बेहद खास, कहीं गिरा था हाथ कहीं पर हार्ट

नवरात्र आने में कुछ दिन ही बचे हैं। इस बार नवरात्र में कहीं बाहर जाने का प्‍लान बना रहे हों तो देवी सती की इन शक्ति पीठों के दर्शन करने जरूर जाएं। 

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नवरात्र आते ही भक्‍तों में मां दुर्गा के मंदिरों में जाकर उनका आशीर्वाद लेने की होड़ सी लग जाती है। मां दुर्गा का ही एक स्‍वरूप हैं देवी शक्ति। भारत में देवी शक्ति के कई मंदिर हैं मगर किसी भी मंदिर में देवी शक्ति की पूरी प्रतिमा की पूजा नहीं होती। बल्कि कहीं पर उनका सर पूजा जाता है तो कहीं पर पैर। दरअसल इसके पीछे एक धार्मिक कहानी है। कहते हैं, देवी शक्ति ने शिव जी से विवाह करने की लिए तपस्‍या की थी। तपस्‍या के फल स्‍वरूप भगवान शिव, देवी शक्ति से शादी करने के लिए तैयार हो गए। मगर देवी शक्ति के माता पिता को शिव जी दमाद के रूप में बिलकुल पसंद नहीं आए। फिर भी भगवान शिव और देवी शक्ति की शादी सम्‍पन्‍न हो गई। शादी के बाद एक रोज देवी शक्ति के पिता ने बहुत बड़े यज्ञ का आयोजन किया । यज्ञ में सभी बड़े देवताओं को बुलाया गया मगर शिव को न्‍यौता नहीं दिया गया। जब यह बात देवी शक्ति को पता चली तो उन्‍हें बहुत क्रोध आया । गुस्‍से में आकर उन्‍होंने यज्ञ के बीच में पहुंच कर हवन कुंड में कूद कर अपनी जान देदी। भगवान शिव को जब देवी शक्ति की मृत्‍यु के बारे में पता चजा तो वह उनके जले हुए शरीर को लेकर बदहवास हालत में पृथ्‍वी के चक्‍कर काटने लगे। तब भगवान विष्‍णु ने शिव जी को होश में लाने के लिए देवी शक्ति के शरीर को अपने चक्र से काट दिया। तब उनके शरीर के तुकड़े पृथ्‍वी पर जहां जहां गिरे वहां-वहां शक्ति पीठ बन गई।

नवरात्र के समय हर शक्तिपीठ पर भक्‍तों की भीड़ लगती है। आज इन्‍हीं शक्ति पीठों में से कुछ के महत्‍व के बारे में हम आपको बताएंगे।

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कालीघाट मंदिर, कोलकाता

कोलकाता का यह काली मंदिर विश्‍व प्रसिद्ध है। यहां मां दुर्गा के काली स्‍वरूप की पूजा होती है। ऐसी मान्‍यता है कि इस मंदिर में मां शक्ति के दाएं पैर की चार उंगलियां गिरी थीं। इसलिए इस मंदिर को 51 शक्तिपीठों में गिना जाता है। यहां मां काली की विशाल प्रतिमा है। परंपरा के अनुसार पुजारी जब मां को स्‍नान कराते हैं तो उनकी आंखों में पट्टी बांध दी जाती है। यह मौजूद मां काली की प्रतिमा में उनकी जीभ, हाथ और दांत सोने के हैं। नवरात्र के समय इस मंदिर में भक्‍तों की भीड़ लगी रहती है। इस मंदिर में मंगलवार और शनिवार के साथ अष्‍टमी के दिन मां काली की विशेष पूजा की जाती है। अगर इस नवरात्र आप कोलकाता जाने का प्‍लान बना रही हैं तो इस मंदिर में मां काली के दर्शन करने जरूर जाएं। यह मंदिर सुबह 5 से रात 10 बजे तक अपने भक्‍तों के लिए खुला रहता है। केवल दोपहर के 2 बजे से शाम 5 बजे तक मंदिर बंद हो जाता है।

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महा लक्ष्‍मी मंदिर कोलाहपुर

महाराष्‍ट्र की राजधानी मुंबई कई वजह से विश्‍व भर में पहचानी जाती है। मगर मुंबई के आसपास भी कई इलाके हैं जहां टूरिस्‍टों की भीड़ सालभर लगी रहती है। खासतौर मुंबई से 400 किमी. दूर कोलापुर में नवरात्र के समय कुछ ज्‍यादा ही टूरिस्‍ट इकट्ठा हो जाते हैं। जी हां हम उसी कोलापुर की बात कर रहे हैं जहां की चप्‍पलें बहुत मशहूर हैं। यहां पर धन की देवी महालक्ष्‍मी का मंदिर है। कहते हैं कि यहां पर मां शक्ति के त्रीनेत्र गिरे थे। 7वीं शताब्‍दी में चालुक्‍य शासक ने इस मंदिर का निर्माण कराया था । यहां स्‍थानीय लोगों का कहना है कि मंदिर स्‍थापित देवी जी की 4 फीट लंबी प्रतिमा 7000 वर्ष पुरानी है। इस मंदिर में साल में एक बार किरण उत्‍सव मनाया जाता है। दरअसल यह त्‍यौहार इसलिए मनाया जाता है क्‍योंकि साल में एक दिन ऐसा होता है जब सूर्य की किरण देवी की मूर्ती पर सीधे पड़ती है। यह मंदिर सुबह 4:30 से रात 10 बजे तक खुला रहता है।

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अम्‍बा मंदिर , बनासकांठा

गुजरात और राजस्‍थान की सीमा पर मौजूद बनासकांठा की गब्‍बर पहाडि़यों पर बने मां दुर्गा के प्राचीन मंदिर को भी 51 शक्ति पीठों में गिना जाता है। कहते हैं कि यहां पर मां शक्ति का हृदय गिरा था। मगर यह मंदिर दूसरे कारणों से भी काफी फेमस है। यहां पर मंदिर में किसी भी देवी की प्रतिमा नहीं है। यहां देवी जी के बीजयंत्र की पूजा होती है। इस श्रीयंत्र को सीधी नजरों से नहीं देखा जाता है। यहां नवरात्र के समय बड़ी संख्‍या में श्रद्धालुओं की भीड़ लगती है। मंदिर से 3 किलोमीटर दूर गब्‍बर पहाडि़यों में मां शक्ति के हाथ और पैरों के चिन्‍ह भी देखे जा सकते हैं। जो भक्‍त इस मंदिर में आते हैं वह इस स्‍थान के दर्शन करने भी आते हैं।

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हरसिद्धि माता मंदिर, उज्‍जैन

मध्य प्रदेश में स्थित उज्जैन भगवान शिव के प्रसिद्ध महाकालेश्‍वर मंदिर के लिए प्रसिदध है। मगर यहां शिव जी के अलावा मां शक्ति का भी एक मंदिर है जिसे हरसिद्धि देवी के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि इस मंदिर में मां शक्ति का बांया हाथ और होठ गिरे थे और तब से यहां पर शक्ति पीठ की स्‍थापना हुई थी। इस मंदिर से जुड़ी कई कहानियां है। इनमें से सबसे ज्‍यादा प्रचलित कहानी राजा विक्रमादित्‍य की है। मंदिर में मौजूद देवी राजा विक्रमादित्‍य की आराध्‍य देवी थीं। कई बार मन्‍नत पूरी होने पर राजा ने मां के चरणों में में अपना शीश काट कर चढ़ाया था मगर हर बार मां राजा का सिर वापस जोड़ देती थीं।

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ज्‍वाला देवी मंदिर, कांगड़ा

हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित ज्वाला देवी मंदिर को भी 51 शक्तिपीठों में गिना जाता है। इस मंदिर जुड़ी कहानी है कि यहां पर मां शिक्‍त की जीभ गिरी थी। इस मंदिर को ज्‍वाला देवी इसलिए कहा जाता है क्‍योंकि यहां मां के दरबार में एक स्‍थान पर ज्‍योत जलती ही रहती है और कभी भी नहीं बुझती। हैरानी की बात तो यह है कि इस ज्‍वाला को जलते रहने के लिए न तो घी की जरूरत पड़ती है और नहीं तेल की। इस मंदिर जुड़ी एक कहानी यह भी है कि मुगल बादशाह अकबर ने एक मां ज्‍वाला देवी का मजाक उड़ाया था, जिससे उसके आंखों की रौशनी चली गई थी अपनी बीवी जोधा के कहते पर उसने मां से माफी मांगी तो मां ने उसकी आंखे उसे वापिस कर दी। आंखों की रौशनी वापिस आने पर अकबर ने मां के दरबार में सोने का छत्र चढ़ाया था, जो आज भी मंदिर में मौजूद है।

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नैना देवी मंदिर, बिलासपुर

हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में नैना देवी का मंदिर भी भारत में काफी प्रसिद्ध है। इस स्‍थान पर मां शिक्‍त की आंखें गिरी थीं। यहां पर उसी की पूजा होती है। मंदिर में पीपल का एक पेड़ भी आकर्षण का मुख्‍य केन्द्र है, कहते हैं कि यह पेड़ कई सदियों से मंदिर में है। जो लोग मंदिर आते हैं वह लोग देवी की पूजा करने के साथ ही इस पेड़ की पूजा भी करते हैं।

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कामाख्‍या देवी मंदिर, गुवाहाटी

असम में मौजूद गुवाहाटी शहर जहां एक तरफ अपनी प्राकृतिक खूबसूरती की वजह से पहचाना जाता है वहीं इस शहर में मौजूद कामाख्‍या देवी का मंदिर भी काफी प्रसिद्ध है। यहां मां भगवती की योनि की पूजा होती है। माना जाता है जब भगवान विष्‍णु ने देवी शक्ति के शव को चक्र से काटा था तब इस स्‍थान पर उनकी योनी कट कर गिर गई थी तब से यहां एक योनी के रूप में बने कुंड की पूजा होती है। इतना ही नहीं यहां पर मां के पीरियड्स भी होते हैं और माना जाता है कि हर माह चार दिन के लिए माता जी का मंदिर बंद हो जाता है। क्‍योंकि पीरियड्स के दौरान उनके भी रक्‍तस्‍त्राव होता है। इस दौरान मां को लाल रंग का वस्‍त्र पहनाया जाता है। मान्‍यता है कि मां का यह वस्‍त्र जिसे मलता है उसके सारे कस्‍ट दूर हो जाते हैं।

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