अमरनाथ थाम हिन्दू श्रद्धालुओं के लिए बहुत महत्व रखता है। जम्मू कश्मीर की वादियों में स्थित अमरनाथ धाम जाने के लिए भगवान शिव के भक्त साल भी इंतजार करते हैं। चार धाम की तरह भक्तगण इस पूजनीय यात्रा को जीवन में एक बार करने की इच्छा अवश्य रखते हैं।
अमरनाथ यात्रा के बारे में कहा जाता है कि यहां भोले की मर्जी के बिना भक्त नहीं पहुंच पाते हैं। जिसे भगवान शिव बुलाना चाहते हैं वहीं उनका दर्शन कर पाते हैं। अमरनाथ यात्रा हर साल जून-जुलाई के महीने में शुरू होती है।
अमरनाथ की यात्रा बेहद रोमांचक है क्योंकि यह यात्रा धरती पर स्वर्ग के जैसी है। हिमालय की गोदी में स्थित अमरनाथ हिंदुओं का सबसे ज्यादा आस्था वाला पवित्र तीर्थस्थल है। अमरनाथ की खासियत पवित्र गुफा में बर्फ से शिवलिंग का बनना है, प्राकृतिक हिम से बनने के कारण ही इसे 'हिमानी शिवलिंग' या 'बर्फानी बाबा' भी कहा जाता है।
अमरनाथ हिन्दी के दो शब्द ‘अमर’ अर्थात ‘अनश्वर’ और ‘नाथ’ अर्थात ‘भगवान’ को जोडने से बनता है। एक पौराणिक कथा के अनुसार जब देवी पार्वती ने भगवान शिव से अमरत्व के रहस्य को प्रकट करने के लिए कहा जो वे उनसे लंबे समय से छुपा रहे थे। तो यह रहस्य बताने के लिए भगवान शिव, पार्वती को हिमालय की इस गुफा में ले गए ताकि उनका यह रहस्य कोई भी ना सुन पाए और यहीं भगवान शिव ने देवी पार्वती को अमरत्व का रहस्य बताया। हर साल की तरह इस साल भी अमरनाथ की यात्रा 60 दिन के लिए निर्धारित है जोकि 28 जून से लेकर 26 अगस्त तक चलेगी। अमरनाथ की यात्रा के लिए 13 वर्ष से 74वर्ष की उम्र के लोग ही जा सकते हैं।
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अमरनाथ यात्रा, भोले संग सच्ची यारी
अमरनाथ धाम में पिछले कई वर्षों से भंडारा लगा रहे ‘श्री बर्फानी हर हर माहदेव सेवा दल’ के प्रधान जनक राज बसंल का कहना है कि अमरनाथ यात्रा करने वो ही भक्त आते हैं जिनकी शिव भगवान के साथ यारी होती है। उन्होंने बताया कि अमरनाथ की यात्रा करते टाइम कुछ बातों का जरूर ध्यान रखना चाहिए।
सैनिकों की किसी भी बात को ना करें नजरअंदाज
अमरनाथ यात्रा के दौरान हजारों भारतीय सैनिक आपकी सुरक्षा के लिए होंगे। जनक ने बताया कि अमरनाथ यात्रा में कई साल भंडारे लगाते हुए उन्होंने देखा है कि सैनिकों की बात ना मानने के चलते कई यात्रियों को अपनी जान से भी हाथ धोना पड़ जाता है इसलिए बहुत जरूरी है कि इस यात्रा के दौरान भारतीय सैनिकों के निर्देश को पूरी तरह से फॉलो किया जाए।
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अमरनाथ गुफा जाने के दो रास्ते
अमरनाथ की पवित्र गुफा तक पहुंचने के लिये वैसे तो दो रास्ते हैं पहला है पहलगाम। यह रास्ता थोड़ा लंबा तो है लेकिन सुरक्षा की दृष्टि से ठीक माना जाता है। सरकार भी इसी रास्ते से अमरनाथ जाने के लिये लोगों को प्रेरित करती है। इसी रस्ते से जाते हुए कई दर्शनीय स्थल भी आते हैं अनंतनाग, चंदनवाड़ी, पिस्सु घाटी, शेषनाग, पंचतरणी आदि। ऑक्सीजन की कमी और ठंड कई बार यात्रियों के लिये परेशानी भी बन जाती है इसलिये यात्री सुरक्षा के तमाम इंतजाम साथ लेकर चलते हैं।
बलटाल
दूसरा रस्ता सोनमर्ग बलटाल से होकर जाता है। यहां से जाने वाला रास्ता काफी जोखिम भरा माना जाता है इसलिये खतरों के खिलाड़ी ही इस रस्ते का रोमांच लेते हैं। यहां से जाने वाले यात्रियों की सुरक्षा का जिम्मा खुद यात्री ही उठाते हैं, सरकार किसी भी प्रकार की जिम्मेदारी नहीं लेती। हालांकि यहां से अमरनाथ गुफा में दर्शन करके सिर्फ एक दिन में ही वापस कैंप पर लौटा जा सकता है। पहलगाम और बलटाल तक जाने के लिए आपको सवारी भी आसानी से मिल जाती है।
पहलगाम
बाबा अमरनाथ ठहरने की व्यवस्था पहलगाम एक प्रसिद्ध पर्यटक स्थल है। जम्मू से इसकी दुरी 315 किलोमीटर है। पहलगाम में प्राइवेट संस्थाओ द्वारा लंगर की व्यवस्था की जाती है। तीर्थयात्री यहां से बाबा अमरनाथ के लिए पैदल यात्रा शुरू करते है। पहलगाम में ठहरने के लिए आपको धर्मशालाए मिल जाएगी। पहलगाम में कई प्राइवेट होटल भी है। इन होटलों में अलग अलग शुल्क पर अलग अलग सुविधा युक्त कमरे उपलब्ध रहते है। इनमे एडवांस बुकिंग की व्यवस्था भी रहती है। बस, ठहरने के लिए सही जगह चुने।
भक्तों के काफिले में ही रहें
जनक ने बताया कि अमरनाथ यात्रा के दौरान जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। सेफ्टी के लिए हमेशा भक्तों के काफिले के साथ ही चलना चाहिए।
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