कैलाश को भगवान शिव भोले का घर कहा जाता है, कहते हैं यहां जो भी भगवान शिव के दर्शन करने आता है वो अपनी तमाम इच्छाएं पूरी होने का वरदान भगवान भोले से लेकर जाता है। भगवान शिव के दर्शन करना इतना भी आसान नहीं है, कैलाश मानसरोवर यात्रा बेहद ही कठिन मानी जाती है लेकिन इस बार इस यात्रा को यादगार बनाने का इंतजाम किया जा रहा है। भगवान भोले के घर कैलाश पर्वत तक जाना वैसा ही कम रोमांचक नहीं होता लेकिन इस बार कुमाऊं मंडल विकास निगम ने कैलाश मानसरोवरयात्रा को रुचिकर बनाने के लिए बेहद ही खास तैयारियां की हैं।
कैलास पर्वत और मानसरोवर झील को धरती का केंद्र माना जाता है। इसे देवाधिदेव महादेव का वास भी माना जाता है। हिमालय का भी केंद्र माने जाने वाले कैलास पर्वत पर भोले शिव योग-साधना करते हैं और मां पार्वती उनकी तपस्या में सहयोग करती हैं। शिव यदि पुरुष हैं, तो पार्वती प्रकृति। दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। पार्वती शिव को सहयोग देती हैं, तो शिव उनका (प्रकृति) संरक्षण करने के साथ-साथ प्रकृति के संरक्षण का संदेश अपने भक्तों को देते हैं। पार्वती प्रकृति की प्रतीक हैं और शिव प्रकृति के संरक्षक।
दुनिया की सबसे मुश्किल धार्मिक यात्राओं में से एक कैलाश मानसरोवर यात्रा इसी महीने शुरू होने वाली है। कैलाश मानसरोवर यात्रा पर इस बार कुल 1,580 तीर्थ यात्री कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर जाएंगे। यात्रा 2 रूट से पूरी की जाती है, एक रूट है उत्तराखंड का लिपुलेख दर्रा और दूसरा रूट है सिक्किम का नाथुला दर्रा।
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इस बार 18 बैच हैं जिसमें हर बैच में 60 तीर्थ यात्री होंगे और वे लिपुलेख दर्रे से जाएंगे जबकि 10 बैच जिसमें हर बैच में 50 तीर्थयात्री होंगे वे नाथुला दर्रे से यात्रा पर जाएंगे। कुमाऊं में यात्रियों का पहला जत्था 12 जून को पहुंचेगा। यात्रा का संचालन में लगे कुमाऊं मण्डल विकास निगम ने शिव भक्तों की आवभगत के लिए तैयारियां पूरी कर ली हैं।
इस साल मानसरोवर यात्रा के दौरान पहली बार ऐसा होगा कि लगभग 1080 शिव भक्त नाभी में होम स्टे का भी आनंद उठा पाएंगे। इस दौरान यात्री व्यास घाटी के समाज के रंगों से भी रूबरू होकर पहाड़ की विविध रंगों में रंगेंगे।
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बाबा भोले के दर्शन पर आने वाले भक्तों का बुरांस के जूस से स्वागत होगा तो भट्ट की चुड़कानी, पहाड़ी रायता, मंडुवे की रोटी, झंगोरे की खीर के साथ पहाड़ी व्यंजनों का लुत्फ भी यात्री उठा सकते हैं।
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साथ ही भंगीरे की चटनी भी यात्रियों का जायका बढ़ाएंगी। वैसे कुमाऊं मण्डल विकास निगम ने कैलाश यात्रियों के लिए पहाड़ी के साथ साउथ इण्डियन मेन्यू तैयार किया है। कैलाश यात्रा में ऐसा पहली बार होगा कि 1080 यात्री नाभी में होम स्टे का भी आनंद लेंगे। इस दौरान यात्री व्यास घाटी के समाज के रंगों से भी रूबरू होकर पहाड़ की विविध रंगों में रंगेंगे।
कैलाश यात्रियों को यात्रा के दौरान ना सिर्फ पहाड़ी व्यंजनों का लुफ्त उठाने को मिलेगा बल्कि पहाड़ की लोक संस्कृति से भी रूबरू होने का मौका मिलेगा। एक बार सोच कर देखिए कितना अच्छ अलगा जब कैलाश यात्रियों को जगह-जगह कल्चर प्रोग्राम देखने को मिलेंगे। पहले दिन यात्रा दिल्ली से होकर काठगोदाम पहुंचेगी जिसके बाद सड़क मार्ग से अल्मोड़ा में तीर्थयात्री रात्रि विश्राम करेंगे। अल्मोड़ा में पहले दल को पहाड़ की लोक संस्कृति की झलक देखने को मिलेगी तो झोड़ा चांचरी छपेली का संगीत यात्रियों के थकान को दूर करेगा।
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