हमारे देश में नजर से खुद को बचाने के लिए बहुत सारी चीजें की जाती हैं। कोई नींबू-मिर्ची से नजर उतारता है, कोई मां से नजर उतरवाता है, तो कोई थू-थू करना ही बेहतर समझता है। हां, अगर आप थोड़ा और डीप में देखना चाहें, तो एक ऐसा शब्द है जिसे हम जाने-अनजाने में दोहरा देते हैं, यह शब्द है 'टच वुड'। किसी भी तरह की नेगेटिविटी से बचने के लिए हम एकदम से 'टच वुड' कह देते हैं और लकड़ी छूने के लिए देखते हैं।
हो सकता है आपने ऐसा ना किया हो, लेकिन इसे किसी को करते हुए देखा हो या फिर किसी से इसके बारे में सुना हो। दरअसल, यह इंग्लिश फ्रेज एक बहुत पुरानी मान्यता को दिखाता है। आज हम इसी के बारे में कुछ जानने की कोशिश करते हैं।
इसकी शुरुआत कहां से हुई इसके बारे में कोई भी जानकारी नहीं है। ना ही किसी किताब में और ना ही किसी ग्रंथ में इसका वर्णन मिलता है। इसलिए ठोस तौर पर कुछ भी नहीं कहा जा सकता। हां, लोककथाओं में इसका जिक्र जरूर होता है। नहीं-नहीं भारतीय लोक कथाएं नहीं, बल्कि विदेशों की। पेगन भगवानों में यकीन करने वाले लोग पेड़ को भी भगवान मानते थे। एक मान्यता कहती है कि पुराने जमाने में लोग मानते थे कि पेड़ में परियों, आत्माओं और अनेकों तरह के जीवों का वास होता है।
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इसलिए पेड़ पर दो बार ठोक कर अपनी मन्नत मांगी जाती थी। इसके बाद पेड़ को ही धन्यवाद कहा जाता था।
अब यहीं आप देखें कि हर वक्त पेड़ तो मौजूद होते नहीं हैं। ऐसे में लोग अपने घरों में बैठे-बैठे क्या करें? यह एक कारण हो सकता है कि पेड़ से निकली लकड़ी को छूने की प्रथा शुरू हो गई। हालांकि, अब भी लकड़ी को छूकर ठोका जाता है।
सिर्फ इंग्लिश बोलने वाले देशों में ही नहीं, बल्कि कई देशों में इस तरह की प्रथा है। 'टच वुड' जैसे ही शब्द अन्य देशों में भी बोले जाते हैं। जैसे ब्राजील में 'बातेर ना माडिरा' कहा जाता है जिसका मतलब ऐसा ही है। इंडोनेशिया में 'अमित-अमित' कहा जाता है। ऐसे ही ईरान, ग्रीस आदि में भी स्थानीय भाषा का कोई ना कोई शब्द 'टच वुड' को ही बताता है। तुर्की में एक कान को खींचकर दो बाद लकड़ी को ठोकने की प्रथा है ताकि किसी को नजर से बचाया जा सके।
सभी जगहों पर लकड़ी में ठोकने का मतलब है नेगेटिव चीजों को खुद से दूर करना।
कैथोलिक मान्यताओं में से एक यह भी है कि 'टच वुड' को कैथोलिक क्रॉस से जोड़कर देखा जाता है। लकड़ी का क्रॉस बहुत ही पवित्र माना जाता है और इसके कारण ही लकड़ी को छूना शुभ समझा जाता है।
एक और मान्यता है कि अगर आप कुछ अच्छा बोलते समय लकड़ी को ठोकेंगे, तो बुरी आत्माएं आपकी बात नहीं सुन पाएंगी। इससे आप अपनी शुभ बात को बुराई से बचा सकते हैं।
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ब्रिटिश फोल्कलोरिस्ट स्टीव राउड की किताब 'The Lore of the Playground' में इसका जिक्र मिलता है। 19वीं सदी का एक प्रचलित गेम 'टिगी टचवुड' था जिसमें बच्चे अगर लकड़ी को छू लेते थे, तो वह किसी भी तरह गेम से आउट होने से बच जाते थे। यह गेम उस दौरान बड़ों के लिए भी काफी प्रसिद्ध था।
स्टीव की किताब के मुताबिक, इस मान्यता की शुरुआत को वहीं से देखा जा सकता है। हालांकि, यह भी सही है कि 'टच वुड' फ्रेज की शुरुआत कहां से हुई इसके बारे में कोई भी जानकारी नहीं मिल सकती है।
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