आखिर क्यों महिला एथलीट्स के लिए नहीं है कोई मैटरनिटी पॉलिसी?

वो महिला एथलीट्स जो दुनिया भर में देश का नाम रौशन करती हैं उनके लिए कोई मैटरनिटी पॉलिसी ना होना ये साबित करता है कि हम अभी कितने पीछे हैं। 

How maternity benefits have been given to atheletes

मैटरनिटी लीव और उससे जुड़े बेनेफिट्स का हक किसे मिलना चाहिए? अब आप पूछेंगी कि ये कैसा सवाल है क्योंकि मैटरनिटी बेनेफिट्स तो हमेशा महिलाओं को ही मिलते हैं, लेकिन ऐसा जरूरी नहीं है। भारत में एक ऐसा प्रोफेशन भी है जिसमें मैटरनिटी बेनेफिट्स का कोई लेखा-जोखा नहीं होता है। एथलीट्स की बात करें तो आपको ये पता चलेगा कि भारत में कोई खास प्रेग्नेंसी पॉलिसी नहीं है। कई एथलीट्स ऐसी रही हैं जिन्हें प्रेग्नेंसी के बाद स्पॉन्सर मिलने में भी समस्या हुई है।

दुनिया के कई देशों में एथलीट्स को लेकर सही मैटरनिटी पॉलिसी रही है और ऐसे में भारत में कोई ठोस पॉलिसी ना होना कितना गलत है क्या आप जानते हैं?

इन देशों में पहले से है मैटरनिटी पॉलिसी...

अमेरिका, न्यूजीलैंड, यूरोप आदि के अलावा पाकिस्तानी क्रिकेट असोसिएशन में मैटरनिटी लीव्स पर एथलीट्स को फुल सैलरी दी जाती है। भले ही क्रिकेटर्स कभी भी लीव लें। ना सिर्फ प्रेग्नेंसी के दौरान बल्कि उसके बाद के महीनों में भी ऐसा ही होता है। उन्हें पूरे बेनेफिट्स मिलते हैं और प्रेग्नेंसी खत्म होने के बाद करियर पर वापस आने का मौका मिलता है। उन्हें ये सुविधा है कि वो अपने करियर और मातृत्व के बीच में चुनाव करने के लिए मजबूर ना हों।

maternity benefits for atheletes

भारत में ऐसी कोई पॉलिसी नहीं है और ऐसा कई महिला एथलीट्स के साथ होता है कि उन्हें बहुत ज्यादा परेशानी महसूस होती है। अगर कोई महिला एथलीट अपने परिवार को शुरू करने के बारे में सोचती है तो उसे स्पॉन्सर तक नहीं मिलते।

क्या प्रेग्नेंसी के बाद महिलाएं नहीं कर सकतीं खेल में वापसी?

ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। मैरी कॉम ने अपने बच्चों को जन्म देने के बाद भी ओलंपिक मेडल जीता। सानिया मिर्जा अभी भी अपनी वर्ल्ड रैंकिंग को बनाए हुए हैं। पर ऐसे मामले कुछ ही हैं। स्क्वाश प्लेयर दीपिका पल्लिकल को जब मैटरनिटी बेनेफिट्स चाहिए थे तब उनके स्पॉन्सर ने कन्नी काट ली थी।

sports policy in india

ये सिर्फ कुछ चर्चित मामले हैं, लेकिन स्टेट लेवल और डिस्ट्रिक्ट लेवल की ऐसी कई प्लेयर्स रहती हैं जिन्हें अपना करियर पूरी तरह से छोड़ना पड़ता है। मां बनने की ख्वाहिश हो तो उन्हें अपनी खेलने की ख्वाहिश से पीछा छुड़वाना पड़ता है।

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क्या वाकई फीमेल एथलीट्स के लिए मैटरनिटी बेनेफिट्स जरूरी नहीं?

किसी महिला को ये कहना कि उसे अपने करियर और मातृत्व में से किसी एक को चुनना पड़ेगा ये क्रूर है। मेरे हिसाब से इससे जुड़ी किसी भी बात को नजरअंदाज करना सही नहीं है। आप खुद सोचिए कि अगर आपको प्रेग्नेंसी या अपने ऑफिस में से किसी एक को चुनना पड़े तो आपका क्या हाल होगा? मैं ये मानती हूं कि मैं खुद इसे नहीं कर पाऊंगी और मेरे साथ अगर ऐसा हो तो मुझे बुरा लगेगा। जब आम कॉर्पोरेट कंपनियों में मैटरनिटी लीव्स की सुविधा है तो फिर उन एथलीट्स को हम क्यों भूल जाते हैं जो खुद अपनी मेहनत से देश को रिप्रेजेंट करने जाती हैं?

क्या सिर्फ प्रेग्नेंसी के कारण उनका खेल खराब हो जाता है? अगर ऐसा है तो सेरेना विलियम्स को बेटी के जन्म के बाद भी क्यों टेनिस की नंबर वन खिलाड़ी बोला जाता था? ये सोचने वाली बात है कि सिर्फ सैलरी में ही नहीं बल्कि इन महिला खिलाड़ियों को अपने महिला होने के अधिकार के लिए भी असमानता का सामना करना पड़ता है।

आपका इस मामले में क्या ख्याल है ये हमें आर्टिकल के नीचे दिए कमेंट बॉक्स में बताएं। अगर आपको ये स्टोरी अच्छी लगी है तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़ी रहें हरजिंदगी से।

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