कार्तिक पूर्णिमा यानी देव दिवाली का पर्व हिंदू धर्म में एक विशेष और पवित्र अवसर माना जाता है। यह पर्व कार्तिक पूर्णिमा के दिन यानी कि दिवाली के ठीक 15 दिन बाद पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है।
इस दिन का अपना एक विशेष महत्व है। इसे 'देवताओं की दिवाली' के रूप में जाना जाता है क्योंकि मान्यता है कि इस दिन देवता स्वयं धरती पर आकर काशी नगरी में गंगा नदी के तट पर दीप जलाते हैं और दीपावली मनाते हैं।
कई बार हमारे मन में एक सवाल यह भी उठता है कि आखिर ऐसा क्यों कहा जाता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही देव दिवाली होती है और इस दिन दीप दान करने का विशेष महत्व होता है ,आइए ज्योतिर्विद पंडित रमेश भोजराज द्विवेदी से जानें इसके बारे में विस्तार से।
कार्तिक पूर्णिमा के दिन क्यों मनाई जाती है देव दिवाली?
देव दिवाली का पौराणिक महत्व हिंदू धार्मिक ग्रंथों में देखने को मिलता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक दानव का संहार किया था, जिससे देवताओं को अत्याचार से मुक्ति मिली थी। त्रिपुरासुर तीनों लोकों पर अत्याचार करता था और उसकी शक्ति इतनी बढ़ गई थी कि देवता भी उससे त्रस्त थे।
देवताओं की प्रार्थना पर भगवान शिव ने उसका अंत कर दिया। इस विजय की खुशी में देवताओं ने दीप जलाकर उत्सव मनाया और उसी समय से कार्तिक पूर्णिमा पर देव दिवाली का आयोजन किया जाने लगा। ऐसा कहा जाता है कि जिस दिन त्रिपुरासुर का अंत हुआ और देवताओं से ख़ुशी के दीपक जलाए उस समय कार्तिक महीने की पूर्णिमा तिथि थी, इसलिए आज भी इसी दिन को देव दिवाली के रूप में मनाया जाता है।
देव दिवाली पर कार्तिक पूर्णिमा का महत्व
हिंदू पंचांग के अनुसार, कार्तिक मास को सबसे पवित्र महीना माना गया है, इसी महीने के दौरान भगवान विष्णु चार महीने की निद्रा से बाहर आते हैं और अपना कार्यभार संभालते हैं। इस महीने की कार्तिक पूर्णिमा को विशेष स्थान प्राप्त है और इसी दिन गंगा और यमुना जैसी पवित्र नदी में स्नान का महत्व बहुत ज्यादा होता है।
यही नहीं इस दिन दीप दान करना भी विशेष रूप से फलदायी माना जाता है। कार्तिक मास को भगवान विष्णु का प्रिय महीना माना जाता है और इस दौरान की गई प्रार्थना उन्हें पूर्ण रूप से स्वीकार होती है। यदि कोई भक्त कार्तिक पूर्णिमा के दिन विष्णु पूजन करता है और कुछ विशेष स्थानों पर दीप दान करता है तो उसकी सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है और पापों से मुक्ति मिलती है। माना जाता है, और इस दिन भगवान विष्णु की आराधना का विशेष फल मिलता है।
देव दिवाली और दीप दान का महत्व
देव दिवाली पर दीप जलाने का एक विशेष धार्मिक महत्व है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन दीप दान करने से व्यक्ति के जीवन में सुख-समृद्धि और शांति बनी रहती है। इसके अलावा, दीप दान का महत्व जीवन के अंधकार को दूर करने और ज्ञान के प्रकाश को बढ़ाने से भी होता है। हिंदू धर्म में यह भी माना जाता है कि इस दिन दीप जलाने से पूर्वजों की आत्माओं को शांति मिलती है।
देव दिवाली पर दीप जलाने से जीवन के सभी प्रकार के अंधकार जैसे कि आर्थिक समस्याएं, स्वास्थ्य से जुड़ी परेशानियां और मानसिक तनाव दूर होते हैं। कई लोग इस दिन परिवार की सुख-शांति और समृद्धि के लिए अपने घर के आंगन में या नदियों के किनारे दीप जलाते हैं। इस दिन नदियों के किनारे किया गया दीपदान भी फलदायी माना जाता है। कार्तिक पूर्णिमा पर किए गए दीप दान का महत्व यह भी है कि यह घर-परिवार में सुख-समृद्धि और कल्याण लाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन किए गए दीपदान से दैवीय कृपा प्राप्त होती है और जीवन में आने वाली समस्त बाधाएं दूर होती हैं।
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देव दिवाली पर घाटों और नदियों का महत्व
देव दिवाली पर खासकर गंगा घाटों का विशेष महत्व होता है। वाराणसी के दशाश्वमेध घाट जैसे प्रमुख घाटों पर बड़ी संख्या में दीप जलाए जाते हैं। यहां की आरती का दृश्य भी इस दिन अद्वितीय होता है और हजारों की संख्या में लोग इस दृश्य को देखने के लिए इकट्ठा होते हैं। देव दिवाली के दिन गंगा नदी के तट पर दीये जलाने की परंपरा इस बात का प्रतीक है कि देवता स्वयं इन स्थानों पर आकर आशीर्वाद देते हैं।
देव दिवाली के दिन कई धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं। इस दिन विशेष रूप से भगवान शिव, विष्णु और मां गंगा की पूजा का महत्व है। साथ ही, भक्तजन व्रत और उपवास भी रखते हैं और पवित्र नदियों में स्नान करके पुण्य की प्राप्ति करते हैं। गंगा स्नान के बाद लोग अपने घरों में दीप जलाते हैं और अपने परिवार के सदस्यों की सुख-समृद्धि की कामना करते हैं।
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साल 2024 में कब मनाई जाएगी देव दिवाली
साल 2024 में देव दिवाली का पर्व 15 नवंबर, शुक्रवार को मनाया जाएगा। इस दिन कार्तिक पूर्णिमा का संयोग है और इससे इस दिन का महत्व और ज्यादा बढ़ जाता है। देव दिवाली पर शुभ मुहूर्त में दीप जलाना और पूजा करना अत्यधिक लाभकारी माना गया है। तिथि और मुहूर्त के अनुसार, भक्तजन इस दिन सुबह से ही स्नान-दान करते हैं और शाम को घर, मंदिरों और नदियों के घाटों में दीपदान करते हैं।
कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दिवाली मनाई जाती है जिससे इस पर्व का महत्व और ज्यादा बढ़ जाता है।
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