फिल्म छावा के रिलीज होने के बाद से मुगल सम्राट औरंगजेब को लेकर विवाद खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा है। औरंगजेब के मकबरे को गिराने की मांग को लेकर बीते रविवार को नागपुर में हिंसा भड़की थी, जिसके बाद से शहर के कई इलाकों में कर्फ्यू लगाया दिया गया है। क्या आप जानते हैं कि मुगल शासन के सबसे कठोर शासक औरंगजेब का मकबरा न तो दिल्ली में है और न ही नागपुर में, बल्कि महाराष्ट्र के एक छोटे से कस्बे खुल्दाबाद में स्थित है?
आपको बता दें कि औरंगजेब की मृत्यु अहमदनगर में हुई थी, लेकिन उन्हें महाराष्ट्र के खुल्दाबाद शहर में दफनाया गया? यह सवाल अक्सर उठता है कि जब औरंगजेब ने दिल्ली और आगरा जैसे महत्वपूर्ण शहरों पर शासन किया, तो उनकी कब्र महाराष्ट्र में क्यों बनाई गई?
औरंगजेब की धार्मिक आस्था
औरंगजेब ने भारत पर 1658 से 1707 तक शासन किया था। वह इस्लाम का सख्त अनुयायी था और उसने हमेशा सादा और अनुशासित जीवन बिताया था। जहां उसके पूर्वजों की याद में ताजमहल और हुमायूंमकबरा जैसे भव्य स्मारक आज भी स्थित है, वहीं औरंगजेब ने अपने आखिरी समय में साफ कह दिया था कि उसे सादगी से दफन किया जाए।
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सूफी संतों से जुड़ाव
क्रूर शासक होने के बावजदू भी औरंगजेब का संबंध इस्लामी विद्वानों, सूफी संतों और आध्यात्मिक मार्गदर्शकों से प्रभावित रहा। इनमें से सबसे ज्यादा मुगल सम्राट पर प्रभाव डालने वाले संत सैयद ज़ैनुद्दीन शिराज़ी थे। वह चिश्ती सम्प्रदाय के प्रसिद्ध सूफी संत थे, जिनकी शिक्षाओं का प्रभाव औरंगजेब पर बहुत हुआ था। यही वजह थी कि मुगल सम्राट ने अपनी मृत्यु के बाद संत की कब्र के पास दफन होने की इच्छा जताई थी।
संत सैयद ज़ैनुद्दीन शिराज़ी कौन थे?
हज़रत ख़्वाजा सैयद ज़ैनुद्दीन शिराज़ी का जन्म 1302 ईस्वी में ईरान के शिराज शहर में हुआ था। वह मक्का के रास्ते से दिल्ली पहुंचे थे और वहां से दौलताबाद आए थे। उन्होंने अपनी शिक्षा हज़रत मौलाना कमालुद्दीन से प्राप्त की थी और उन्हीं के साथ भारत आ गए थे। जब शिराज़ी दौलताबाद पहुंचे, तो वे हज़रत बुरहानुद्दीन ग़रीब के मठ में गए। उन्हें वहां की परंपराएं पसंद नहीं आईं और वह चिश्ती संप्रदाय में शामिल हो गए।
संत सैयद ज़ैनुद्दीन शिराज़ी 14वीं शताब्दी के एक प्रतिष्ठित सूफी संत हुआ करते थे। वह दिल्ली के प्रसिद्ध सूफी संत हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया के अनुयायी थे। उन्होंने अपना पूरा जीवन इस्लाम की शिक्षाओं के प्रसार, प्रचार और भक्ति-मानवता की सेवा में समर्पित कर दिया था। संत शिराज़ी महाराष्ट्र के खुल्दाबाद में रहते थे और वहीं अपने अनुयायियों को उपदेश दिया करते थे। हालांकि, सूफी संत का निधन 1370 ईस्वी में हो गया था, लेकिन खुल्दाबाद में उनका मकबरा बनाया गया था, जो धार्मिक आस्था का केंद्र हुआ करता था।
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औरंगजेब और खुल्दाबाद का संबंध
इतिहासकारों के मुताबिक, 1636 में शाहजहां ने अपने तीसरे बेटे औरंगजेब को दौलताबाद का सूबेदार बनाकर भेजा था। लेकिन, क्रूर शासक को दौलताबाद पसंद नहीं आया और उसने अपना मुख्य केंद्र औरंगाबाद को बना लिया और वहां पर शासन करने लगा था।
कहा जाता है कि औरंगजेब को औरंगाबाद काफी पसंद आया था और उसने यहीं से पूरे दक्कन क्षेत्र के अभियानों को संचालित किया था। इसी दौरान, उसे महान संत सैयद ज़ैनुद्दीन शिराज़ी की शिक्षाओं के बारे में जानने का मौका मिला। मुगल शासक संत की आध्यात्मिक शिक्षाओं से काफी प्रभावित हुआ और उन्हें आध्यात्मिक गुरु मान लिया। औरंगजेब अपने आध्यात्मिक गुरु, संत सैयद ज़ैनुद्दीन शिराज़ी के प्रति अत्यधिक सम्मान रखता था। इसी कारण उसने अंतिम इच्छा व्यक्त करते हुए अपनी मृत्यु के बाद अपने गुरु की कब्र के पास दफनाए जाने की बात कही थी।
औरंगजेब की अंतिम इच्छा
लंबे वक्त तक शासन करने की वजह से औरंगजेब काफी कमजोर हो चुका था। उसे अपने आखिरी दिनों में पापों की याद सताने लगी थी। उसे डर था कि कहीं उसके बेटे भी सत्ता के लिए अपने भाइयों का कत्ल न कर दें, इसलिए उसने अपने बेटों के बीच रियासतों का बंटवारा कर दिया था।
मुगल सम्राट ने अपनी वसीयत में साफ कहा था कि उसकी कब्र सीधी-सादी होनी चाहिए और उसके दफन का खर्च उसी पैसे से पूरा किया जाना चाहिए, जो उसने अपने खाली समय में टोपियां बुनकर और कुरान की नकल करके कमाया था। उसने यह भी हिदायत दी थी कि उसके मकबरे के लिए केवल 4 रुपये 2 आने खर्च किए जाने चाहिए। उसने अपनी कब्र के पास किसी भी छायादार पेड़ को लगाने से मना कर दिया था।
3 मार्च 1707 को मुगल शासक की मृत्यु हो गई, जिसके बाद उसकी इच्छा के मुताबिक, खुल्दाबाद में उसे दफनाया गया। उसकी क्रब को संत सैयद ज़ैनुद्दीन शिराज़ी की कब्र के पास जगह दी गई थी।
ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड कर्जन द्वारा की गई सजावट
साल 1904-05 में, जब भारत में ब्रिटिश शासन था तो गर्वनर जनरल लॉर्ड कर्जन औरंगजेब की कब्र देखने पहुंचे थे। उन्होंने इतनी साधारण कब्र देखकर आदेश दिया था कि मकबरे के आसपास संगमरमर का काम करवाया जाए और लोहे की ग्रिल लगवाई जाए। आपको जानकर हैरानी होगी कि औरंगजेब ने ही औरंगाबाद में अपनी पत्नी के लिए 'बीबी का मकबरा' बनवाया था, जिसे 'दक्कन का ताजमहल' भी कहा जाता है।
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Image Credit - Jagran, herzindagi, wikipedia
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