हाल ही में रिलीज हुई फिल्म छावा में जितना बलशाली छत्रपति संभाजी महाराज का किरदार था, उतना ही डरावना और विचलित करने वाला चरित्र औरंगज़ेब का था। वास्तव में यह केवल एक फिल्म की कल्पना नहीं है बल्कि असल जीवन में भी सोलहवीं से सत्रहवीं शताब्दी के बीच जहां एक तरफ संभाजी महाराज ने साम्राज्य को बढ़ाने का अपना पूरा प्रयास किया, वहीं अपनी क्रूरता और निर्मम व्यवहार के लिए लोग आज भी मुग़ल शासक औरंगज़ेब को याद करते हैं। वास्तव में फिल्म देखने वालों और आम जनता के मन में एक सवाल यह जरूर आया होगा कि वास्तव में यह औरंगजेब कौन था? यही नहीं और भी कई सवाल हमारे मानस पटल पर अपनी छाप छोड़ते हैं जैसे कि आखिर इस क्रूर शासक को जन्म किसने दिया? इसने कौन-कौन से युद्ध लड़े और किनमें विजय प्राप्त की ? इस क्रूर राजा का बेटा कौन था? आखिर ये हमेशा अपने दरबार में बैठकर टोपी क्यों बुनता रहता था? एक सबसे अहम और आखिरी सवाल कि आखिर इस क्रूर शासक को किसने मारा? क्या इसकी मृत्यु प्राकृतिक थी या फिर युद्ध में पराजय से हुई?
ऐसे न जाने कितने सवाल हमें सदियों पीछे जाकर इनके जवाब ढूंढने के लिए मजबूर करते हैं। एक ऐसा मुग़ल शासक जिसे अब तक का सबसे क्रूर मुग़ल माना जाता है, उसने सत्ता के लिए अपनों का खून बहाने से लेकर धर्मांतरण और मंदिरों के विध्वंस तक न जाने कितने कदम उठाए, उसका शासन निर्दयता से भरा रहा। आइए औरंगजेब के अत्याचारों की कहानी और कुछ ऐसी अनसुनी बातों के बारे में जानें जो आपको भी उसकी क्रूरता के बारे में सोचने पर मजबूर कर देंगी।
क्या था मुगल शासक औरंगजेब का इतिहास
मुगल साम्राज्य की स्थापना 1526 ईस्वी में बाबर ने की थी। बाबर के बाद मुग़ल शासन को आगे बढ़ाने के लिए हुमायूं शासक बना और हुमायूं के बाद उसके बेटे अकबर ने मुगल शासन की कमान संभाली। मुगल शासन का अंत यहीं से नहीं था बल्कि उनके बाद अकबर का बेटा जहांगीर फिर शाहजहां सत्ता में आए। शाहजहां के बेटा औरंगज़ेब जब शासन में आया तो मुग़ल इतिहास में कुछ नए पन्ने जुड़ गए। औरंगजेब ने 1658 से 1707 तक शासन किया।
औरंगजेब की एक एक-एक कहानी आज भी उसकी क्रूरता की दास्तान बयां करती है। औरंगजेब, मुगल वंश का छठा सम्राट था, जो बाद में अकबर के बाद सबसे अधिक समय तक शासन करने वाला मुगल शासक भी बना। उसका मूल नाम अबुल मुजफ्फर मुहीउद्दीन मुहम्मद था लेकिन उसे औरंगजेब या आलमगीर के नाम से जाना जाता था। औरंगज़ेब मुगल सम्राट शाहजहां और उसकी पत्नी मुमताज महल का सबसे बड़ा पुत्र था। उसके अन्य तीन भाइयों का नाम था दारा शिकोह, शुजा और मुराद था। औरंगजेब का जन्म 3 नवंबर, 1618 को दाहोद, गुजरात में हुआ था। इतिहासकारों की मानें तो औरंगजेब अपने समय का सबसे क्रूर शासक था, जिसने सत्ता पर कब्जा करने के लिए अपने सगे भाइयों तक की जान ले ली।
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औरंगजेब ने गद्दी की चाह में पिता शाहजहां को बंदी बनाया
औरंगजेब की क्रूरता को इससे बेहतर और कैसे जाना जा सकता है कि उसने मुग़ल गद्दी पाने के लिए अपने भाइयों की हत्या तो कर ही दी और अपने पिता शाहजहां को आगरा किले में कैद करके रखा जहां उसकी मौत हो गई।। औरंगजेब ने अपने बड़े भाई दारा शिकोह को पकड़कर उसे मौत के घाट उतारा और उसके कटे सिर को पिता शाहजहां के पास भेजा। यही नहीं उसने अपने छोटे भाई मुराद बख्श और शुजा को भी जान से मरवा दिया। उसकी क्रूरता इस बात से और ज्यादा सामने आती है कि उसने अपने बेटों तक को नहीं छोड़ा। एक तरफ जहां उसने अपने एक बेटे को अंधा करवा दिया, वहीं दूसरे बेटे को हमेशा के लिए कैद करवा दिया।
औरंगजेब ने हिंदुओं को धर्म परिवर्तन करने के लिए मजबूर किया
औरंगजेब ने 1679 में हिंदुओं पर जजिया कर लगाने की घोषणा कर दी, जिसकी वजह से उन्हें अपने ही धार्मिक स्थलों पर जाने के लिए कर देना पड़ता था। उसने लाखों हिंदुओं और सिखों को बलपूर्वक इस्लाम में अपनाने के लिए मजबूर किया। यही नहीं मुगल सल्तनत को आगे बढ़ाने के लिए उसने हिंदू त्योहारों पर पाबंदी लगा दी और हिंदू मंदिरों को तोड़ने का फरमान जारी किया। औरंगजेब ने सिखों के 9वें गुरु तेग बहादुर जी को जबरन इस्लाम अपनाने का दबाव बनाया और उनके मना करने पर 1675 में दिल्ली के चांदनी चौक में उनका सिर कलम करवा दिया।
औरंगजेब ने छत्रपति शिवाजी महाराज के बेटे संभाजी को भी जबरन धर्म परिवर्तन के लिए प्रताड़ित किया और जब उन्होंने इस्लाम स्वीकार नहीं किया तब उन्हें 40 दिनों तक प्रताड़ना देने के बाद मौत के घाट उतार दिया।
औरंगजेबने किया हजारों मंदिरों का विध्वंस
औरंगजेब ने काशी विश्वनाथ, सोमनाथ, मथुरा और अयोध्या समेत 1000 से भी ज्यादा मंदिरों को तोड़ने का आदेश दिया और कई स्थानों पर मंदिरों को तोड़कर मस्जिद बनवाई। उसका उद्देश्य था मुगल और इस्लाम धर्म को आगे बढ़ाना और हिन्दू धर्म का जड़ से खात्मा करना। इस्लाम को बढ़ावा देने वाली औरंगजेब की नीतियों ने पूरे देश में विद्रोह भड़का दिया।
उसकी नीतियों का मराठा, राजपूत, जाट और सिखों ने खुलकर विद्रोह किया और मराठाओं के प्रयास से मुग़ल शासन कमजोर पड़ने लगा। यही नहीं औरंगज़ेब की क्रूर नीतियां ही उसके अंत के बाद मुगल शासन के अंत का भी कारण बना। औरंगजेब की मृत्यु के बाद मुगल सल्तनत पूरी तरह ध्वस्त होने लगी और अंततः 1857 तक यह पूरी तरह समाप्त हो गया।
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औरंगजेबदरबार में बैठकर बुनता था टोपियां
छावा फिल्म में औरंगजेब के किरदार को अपने दरबार में बैठकर टोपियां बुनते हुए दिखाया गया है। वास्तव में भी अगर हम इतिहास को पलटें तो इस बात का जिक्र मिलता है कि औरंगजेब अपनी निजी जिदंगी में अपने पूर्वजों से बिलकुल अलग था। उसने अपने दरबार का खर्च कम करने के लिए संगीत और उत्सवों पर प्रतिबंध लगा दिया।
वह शारीरिक श्रम के जरिए अपनी आजीविका कमाने पर जोर देता था, इसलिए खुद भी दरबार में बैठकर अपनी नमाज की टोपियां बुनता था। यही नहीं वो उन्हीं टोपियों को बाजार में बेचकर जो धन अर्जित करता था वो उससे अपने निजी खर्चे निकालता था। चूंकि इस्लाम में टोपी पहनने की परंपरा काफी पुरानी है, इसलिए टोपी को बेचकर ही औरंगज़ेब धन अर्जित करता है। यही नहीं वो अपने धर्म का इतना कट्टर था की वो अपनी सुख सुविधा पर ज्यादा ध्यान नहीं देता था, इसी वजह से वो अपने दरबार में संगीत आदि भी नहीं सुनता था।
कैसे हुई क्रूर मुगल शासक औरंगजेब की मृत्यु?
अगर हम औरंगजेब की मृत्यु की बात करें तो उसकी मृत्यु प्राकृतिक रूप से अपनी आयु पूर्ण करने के बाद 88 वर्ष की उम्र में हुई थी। 3 मार्च 1707 को अहमदनगर क्षेत्र में उसकी मृत्यु हुई। हालांकि औरंगजेब अपने अंतिम दिनों में अत्यधिक अकेला और उदास महसूस करता था। उसने अपने जीवन के कार्यों पर पुनर्विचार किया और अपने पुत्रों को पत्र भी लिखे, जिसमें उसने अपनी गलतियों की स्वीकार किया।
यही नहीं कुछ इतिहासकार यह भी बताते हैं कि औरंगजेब ने अपने जीवन पर पश्चाताप करते हुए यह भी कहा था कि 'मैंने अपने जीवन में जो कुछ भी किया, वह व्यर्थ था। अब मैं अकेला और असहाय हूं। मुझे नहीं पता कि मेरा अंत कैसा होगा।' वास्तव में यह शब्द उसके मानसिक तनाव को ही दिखाते हैं। यही नहीं उसने यह भी कहा था कि उसके अंतिम संस्कार का खर्च उसकी खुद के अर्जित धन से ही निकाला जाए। उसकी इच्छा के अनुसार, उसे खुल्दाबाद, औरंगाबाद, महाराष्ट्र में एक साधारण मकबरे में दफनाया गया, जो आज भी मौजूद है।
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