कभी सोचा है आपने टॉयलेट पेपर क्यों होता है व्हाइट, जानिए इसकी असली वजह

क्या आपने कभी सोचा है कि टॉयलेट पेपर सिर्फ व्हाइट कलर में ही क्यों मिलता है। अगर नहीं, तो इस लेख में जानिए इसकी असली वजह।

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टॉयलेट पेपर एक ऐसी चीज है, जिसे हम सभी इस्तेमाल करते हैं। अमूमन यह घरों से लेकर ऑफिस आदि सभी जगह टॉयलेट्स में इस्तेमाल होता है। यूं तो टॉयलेट पेपर मार्केट में कई क्वालिटी का मिलता है, लेकिन एक चीज जो हर क्वालिटी के टॉयलेट पेपर में एक जैसी होती है, वह है इसका कलर। आप चाहे कितना भी सस्ता या महंगा टॉयलेट पेपर खरीदें, आपको यह हमेशा व्हाइट कलर में ही मिलेगा।

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लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि यह हमेशा व्हाइट ही क्यों होता है। नहीं न? यह सच है कि अगर टॉयलेट पेपर व्हाइट कलर का हो तो वह देखने में अधिक क्लीन लगता है, लेकिन सिर्फ एक यही वजह काफी नहीं है टॉयलेट पेपर के सफेद होने की। दरअसल, ऐसी कई वजहें हैं, जिसके कारण केवल व्हाइट कलर को ही बतौर टॉयलेट पेपर इस्तेमाल किया जाता है। तो चलिए आज हम आपको इन्हीं कारणों के बारे में बता रहे हैं-

पहला कारण

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टॉयलेट पेपर का कलर इसलिए व्हाइट होता है क्योंकि उसे ब्लीच किया जाता है। ब्लीच के बिना, कागज का रंग भूरा होता है। ऐसे में टॉयलेट पेपर बनाने वाली कंपनियों को उसे डाई करने में काफी अधिक खर्च उठाना पड़ता है, जबकि कागज को ब्लीच करना काफी आसान और सस्ता होता है। अगर कंपनियां कलर्ड टॉयलेट पेपर बनाएंगी तो उनके अधिक खर्च के कारण टॉयलेट पेपर भी महंगा हो जाएगा।

दूसरा कारण

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व्हाइट कलर का टॉयलेट पेपर अधिक नरम होता है। चूंकि टॉयलेट पेपर का इस्तेमाल शरीर के बेहद सेंसेटिव हिस्से में किया जाता है, इसलिए उसका सॉफ्ट होना भी उतना ही जरूरी है। दरअसल, टॉयलेट पेपर को व्हाइट बनाने के लिए उसे ब्लीच किया जाता है और ब्लीचिंग के दौरान उसमें से लिग्निन को हटाया जाता है। लिग्निन लकड़ी में एक पॉलीमर होता है जो एक ग्लू की तरह काम करता है। इसके कारण पेपर काफी कठोर होता है। लेकिन ब्लीचिंग के दौरान जब टॉयलेट पेपर लिग्निन निकल जाता है तो यह काफी नरम और आराम से इस्तेमाल करने लायक बन जाता है।

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तीसरा कारण

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आपको शायद पता न हो लेकिन व्हाइट कलर के टॉयलेट पेपर की शेल्फ लाइफ अधिक होती है और इसलिए कंपनियां टॉयलेट पेपर को व्हाइट बनाना ही पसंद करती हैं। दरअसल, ब्लीचिंग के दौरान जब पेपर से लिग्निन हट जाता है तो वह सिर्फ अधिक नरम की नहीं बनता, बल्कि इससे उसकी शेल्फ लाइफ भी बढ़ जाती है। उदाहरण के लिए, अगर आपने कभी किसी पुराने अखबार को ध्यान से देखा हो तो आप पाएंगी कि जैसे-जैसे अखबार पुराना होने लगता है, उसके कागज पीले होने लगते हैं। यह पीलापन अखबार में लिग्निन की उपस्थिति के कारण है। लेकिन टॉयलेट पेपर में लिग्निन को ब्लीचिंग के जरिए पहले ही निकाल दिया जाता है, जिसके कारण इनका इस्तेमाल लंबे समय तक आसानी से किया जा सकता है।

चौथा कारण

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टॉयलेट पेपर को व्हाइट रखने के पीछे एक मुख्य कारण यह भी है कि यह एनवायनमेंट फ्रेंडली हैं। दरअसल, व्हाइट कलर के टॉयलेट पेपर कलर्ड टॉयलेट पेपर के मुकाबले जल्दी डि-कंपोज होते हैं। कंपनियां हाइड्रोजन पेरोक्साइड या क्लोरीन के साथ वुड पल्प को ब्लीच करके उसे व्हाइट बनाती है। इस प्रक्रिया के दौरान जब लिग्निन हट जाता है और टॉयलेट पेपर काफी नरम हो जाता है तो इस्तेमाल के बाद उसे आसानी से डि कंपोज किया जा सकता है।

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पांचवा कारण

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टॉयलेट पेपर को व्हाइट रखने के पीछे का पांचवा कारण वास्तव में स्वास्थ्य से जुड़ा है। कागज को कलर्ड करने के लिए डाई का इस्तेमाल किया जाता है और यह डाई स्किन पर इरिटेशन, व अन्य कई तरह की स्वास्थ्य समस्याओं के होने का खतरा रहता है। ऐसे में व्हाइट कलर के टॉयलेट पेपर का इस्तेमाल करना ज्यादा सुरक्षित व बेहतर ऑप्शन है।

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