किसी भी शुभ काम के पहले या किसी भी नई चीज के इस्तेमाल से पहले उसमें कुमकुम, सिंदूर या हल्दी का स्वास्तिक बनाने की प्रथा सदियों से चली आ रही है। ऐसा माना जाता है कि ये घर में खुशहाली लाने का एक आसान तरीका है।
स्वास्तिकको मंगल ग्रह का प्रतीक माना जाता है, इसी वजह से इससे घर में ऊर्जा आकर्षित होती है और जिस स्थान पर यह शुभ चिह्न बनाया जाता है वह अपने आप ही ऊर्जा से भरपूर हो जाता है।
हिंदू धर्म में इसे एक पवित्र प्रतीक माना जाता है जो सौभाग्य, समृद्धि और शुभता से जुड़ा होता है। इसे किसी भी शुभ कार्य से पहले बनाने के पीछे के कई ज्योतिष लाभ हैं और इसका महत्व भी है।
शादी, गृहप्रवेश, किसी शुभ समारोह या कोई नया व्यवसाय शुरू करने से पहले इसे उस स्थान पर बनाया जाता है, इसके अलावा पूजा-पाठ में भी इस चिह्न का विशेष महत्व है। आइए ज्योतिषाचार्य डॉ आरती दहिया जी से जानें शुभ काम की शुरुआत में स्वास्तिक बनाने के पीछे के कारणों के बारे में विस्तार से।
स्वास्तिक सौभाग्य का प्रतीक होता है
यदि हम ज्योतिष की मानें तो स्वास्तिक का चिह्न सौभाग्य, समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक होता है। ऐसा माना जाता है कि किसी भी शुभ कार्य को शुरू करने से पहले इस चिह्न को बनाना सौभाग्य और अनुकूल परिणामों को आमंत्रित करता है।
यह आपके घर में सकारात्मक वातावरण को आकर्षित करता है इसलिए इसे बनाना शुभ माना जाता है। इसे एक पवित्र और शक्तिशाली प्रतीक माना जाता है जो ऊर्जा के सामंजस्यपूर्ण प्रवाह का प्रतिनिधित्व करता है। जब हम किसी भी शुभ काम को शुरू करने से पहले स्वास्तिक का चिह्न बनाते हैं तो ये ऊर्जा को संतुलित करता है और पूरे वातावरण को शुभ करता है।
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स्वास्तिक की चार भुजाएं क्या दिखाती हैं
स्वस्तिक एक चार भुजाओं वाला चिह्न है जो घड़ी की सुई की दिशा में बनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि यह चार प्रमुख दिशाओं, चार तत्वों और जीवन के चार चरणों का प्रतिनिधित्व करता है।
इसे सूर्य के प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है, जिसे जीवन और ऊर्जा के स्रोत के रूप में देखा जाता है। स्वास्तिक के कई सकारात्मक प्रभाव होते हैं। ऐसा कहा जाता है कि यह सौभाग्य को आकर्षित करता है, बुरी आत्माओं से बचाता है और समृद्धि को बढ़ावा देता है।
स्वास्तिक बनाने के कई अलग-अलग तरीके हैं। जिसमें सबसे आम तरीका चार ऐसी भुजाएं बनाना है जो लंबाई और चौड़ाई में एक समान हों। भुजाओं को दक्षिणावर्त या वामावर्त दिशा में बनाया जा सकता है।
स्वास्तिक बनाने से देवताओं का आशीर्वाद मिलता है
शुभ काम की शुरुआत में स्वास्तिक का चिह्न बनाने से देवताओं का आशीर्वाद उस काम से जुड़ जाता है। ऐसी मान्यता है कि यह देवताओं का आह्वाहन करने का एक अच्छा तरीका है और इस चिह्न से उस जगह पर देवताओं को आमंत्रित किया जाता है।
यह चिह्न किसी शुभ कार्यक्रम के अवसर को चिह्नित करने का एक तरीका भी माना है इसी वजह से शुभ काम की शुरुआत होने होने से पहले जमीन, दीवार या मुख्य द्वार पर यह चिह्न बनाया जाता है।
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स्वास्तिक होता है शुभता का प्रतीक
ज्योतिषाचार्य डॉ आरती दहिया जी बताती हैं कि स्वास्तिक में सु' का अर्थ अच्छा या शुभ, 'अस' का अर्थ 'सत्ता' या 'अस्तित्व' और 'क' का अर्थ 'कर्त्ता' या करने वाले से है। इस तरह से स्वास्तिक शब्द का अर्थ मंगल करने वाला माना गया है। इसी वजह से जब भी हम किसी काम के पहले यह निशान बनाते हैं तो ये उस कार्यक्रम की सफलता सुनिश्चित करता है और कार्य को शुभ बनाता है।
यदि आप किसी भी काम की शुरुआत में स्वास्तिक का निशान बनाती हैं तो आपके उस काम में सफलता जरूर मिलती है। अगर आपको यह स्टोरी अच्छी लगी हो तो इसे फेसबुक पर शेयर और लाइक जरूर करें। इसी तरह और भी आर्टिकल पढ़ने के लिए जुड़े रहें हरजिंदगी से। अपने विचार हमें कमेंट बॉक्स में जरूर भेजें।
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