Haqse: घर में काम करने वाले लोगों को पीटना क्यों बनता जा रहा है ट्रेंड?

नोएडा की एक और हाई राइज सोसाइटी में एक महिला ने हाउस हेल्प को बुरी तरह से पीटा और धमकियां दीं। पर क्या इतना आसान है अपनी हाउस हेल्प को अब्यूज करना?

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आपके घर में काम करने वाले लोगों को लेकर क्या नियम हैं? हर कोई अपने घरों में अपने हिसाब से ही काम करवाना चाहता है, लेकिन क्या अपने हिसाब से काम करवाने का मतलब यह है कि हम इंसानियत को ही भूल जाएं? आए दिन इस तरह की खबरें सामने आती रहती हैं कि किसी मालिक ने अपने घर पर काम करने वाला लोगों को बुरी तरह से पीटा, उनके साथ अमानवीय व्यवहार किया, उन्हें घर में बंद करके रखा, धमकियां दीं आदि। हाल ही में ब्रूट इंडिया की तरफ से एक वीडियो आया है जिसमें नोएडा में रहने वाली एक महिला घर के बाहर सफाई करने वाली महिला को पीट रही है और धमकियां दे रही है।

इससे पहले भी गाजियाबाद और मुंबई से ऐसी खबरें आई थीं जहां हाउस हेल्प को घर में बंद कर दिया गया और उनके साथ फिजिकल एब्यूज किया। ऐसे कई वायरल वीडियोज आए दिन सामने आते हैं जो हमारे जहन में कुछ सवाल छोड़ जाते हैं। क्या इतना आसान है घर में काम करने वाले लोगों को पीटना? क्या घर में काम करने वाले लोगों को एब्यूज करना एक स्टेटस सिम्बल बनता जा रहा है? इसके लिए हरजिंदगी ने बॉम्बे हाई कोर्ट की क्रिमिनल लॉयर शिखानी शाह से बात की।

कुछ भी कहने से पहले ब्रूट इंडिया का वो वीडियो देख लीजिए जिसकी बात आज हम कर रहे हैं।

इसके अलावा, कुछ समय पहले नोएडा की एक सोसाइटी में एक मेड को लिफ्ट से घसीटते हुए एक महिला दिखी थी। इस मामले ने भी बहुत तूल पकड़ा था।

ऐसे ही गुड़गांव की एक रिपोर्ट आई थी जिसमें हाउस हेल्प को ब्लेड से काटा गया था।

इस मामले में एक सवाल फिर से उठ खड़ा हुआ है। क्या वाकई बतौर समाज हम इस तरह की घटनाओं को नजरअंदाज कर सकते हैं?

क्या डोमेस्टिक वर्कर्स के लिए है कोई एक्ट?

लॉयर शिखानी शाह का कहना है, "हमारे पास डोमेस्टिक वर्कर्स रेजिस्ट्रेशन सोशल सिक्योरिटी और वेलफेयर एक्ट, 2008 है। यह एक्ट डोमेस्टिक वर्कर्स की पेमेंट और वर्किंग कंडीशन को रेगुलेट करने के लिए बनाया गया था। इस एक्ट के अंतर्गत वुमन ट्रैफिकिंग और अन्य युवा हाउस वर्कर्स की सुरक्षा के लिए भी नियम हैं"।

उनके अनुसार इस एक्ट में पुरुष, महिलाएं और बच्चे सभी कवर किए जाते हैं। हालांकि, इस एक्ट में महिलाओं की ह्यूमन ट्रैफिकिंग को लेकर खास प्रावधान बनाए गए हैं। किसी भी तरह के सेक्सुअल असॉल्ट के लिए भी प्रावधान हैं।

क्या है सजा?

अगर किसी इंसान को डोमेस्टिक वर्कर को एब्यूज करते या उसकी ट्रैफिकिंग में हिस्सा लेते पाया गया, तो उसे कम से कम 6 महीने की कैद हो सकती है। उसके क्राइम के हिसाब से वो कैद 7 साल तक बढ़ सकती है। इसी के साथ, 50000 तक का फाइन भी लगाया जा सकता है। कुछ गंभीर मामलों में जेल और फाइन दोनों लगाया जा सकता है।

इस एक्ट के जरिए सिर्फ असॉल्ट और एब्यूज नहीं, बल्कि सैलरी से जुड़ी परेशानियों के खिलाफ भी शिकायत की जा सकती है। अगर कोई व्यक्ति अपने घर काम करने वाले लोगों को कम पेमेंट दे रहा है या काम का भुगतान नहीं कर रहा है, तो उसके बाकायदा पुलिस में शिकायत की जा सकती है।

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आखिर क्यों बनता जा रहा है हाउस हेल्प को पीटने का ट्रेंड?

आए दिन ऐसे वीडियोज सामने आते हैं और उनके कारण यह सवाल उठता है कि क्या वाकई लोगों के लिए हाउस हेल्प को पीटना एक फैशन ट्रेंड है? यह समझाना कि भाई हम तो इतने बड़े हैं कि 10 नौकर रख सकते हैं, उनके साथ किसी भी तरह का व्यवहार कर सकते हैं, उन्हें पीट सकते हैं, उन्हें काम के पूरे पैसे ना दें यह चलेगा। हाउस हेल्प के काम को हमेशा कम समझा जाता है। भारत में नौकर शब्द को लेकर भी एक अजीब धारणा है। नौकर का मतलब नौकरी करने वाला होता है, लेकिन हमारे देश में नौकर का मतलब हमारी गुलामी करने वाला इंसान समझा जाता है।

यह दुख की बात है कि कुछ लोग डोमेस्टिक वर्कर्स को मारना, पीटना या किसी भी तरह से उनका शोषण करना स्टेटस सिम्बल मानते हैं। हम यह भूल जाते हैं कि सामने वाला इंसान भी तो एक इंसान ही है। डोमेस्टिक वर्कर्स के पास भी कई तरह के अधिकार होते हैं, लेकिन उनके बारे में जानने की जहमत कौन उठाए? एक जाएगा और दूसरा आएगा वाली थिंकिंग ही हमें सही लगती है।

भारत में वर्क फोर्स ज्यादा है, तो डोमेस्टिक हेल्प बनने के लिए लोग भी आसानी से मिल जाते हैं। हमारे यहां प्लंबर, कार्पेंटर, हाउस वर्कर आदि को बहुत ही ज्यादा निम्न समझा जाता है, लेकिन विदेशों में इसका उल्टा है। वहां इस तरह के काम को करने के लिए लोग आसानी से उपलब्ध नहीं होते हैं। वहां उनका महत्व अलग है। तो समस्या कहां है? जब विकसित देशों में घर का काम करने वाले लोगों को महत्व दिया जाता है, तो हम क्यों नहीं दे सकते हैं?

हमें अपनी संस्कृति, अपनी सभ्यता पर गर्व है, लेकिन हमारी संस्कृति यह तो नहीं सिखाती कि काम करने वालों को पीटा जाए? सोशल स्टेटस बड़ा दिखाने के लिए सिर्फ लोगों को पीटना या एब्यूज करना ही एक तरीका क्यों समझा जाता है? हमारी गंगा-जमुनी तहजीब में हर चीज को टेकन फॉर ग्रांटेड लेने की आदत बन गई है। भारत अब दुनिया का सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला देश बन गया है। ऐसे में घर पर काम करने वाले लोगों को एब्यूज करने का ट्रेंड बहुत ही खतरनाक हो सकता है।

आपकी इस मामले में क्या राय है? हमें आर्टिकल के नीचे दिए कमेंट बॉक्स में बताएं। अगर आपको यह स्टोरी अच्छी लगी है, तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़ी रहें हरजिंदगी से।

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