हर अभिभावक बच्चों के सामने कोई भी परेशानी होने पर अपनी फीलिंग्स को बाहर निकालने से बचते हैं और जी भर कर रो भी नहीं पाते जोकि गलत है। एक्सपर्ट का मानना है कि विकास के लिए अपनी फीलिंग्स को उनके सामने निकालना मतलब रोना ज़रूरी है।
अभिभावक बच्चों के सुपर मॉडल होते हैं। वो एक ऐसे आदर्श होते हैं, जो पूरी तरह से अपनी भावनाओं में कंट्रोल रखते हैं। उनकी छवि एकदम परफेक्ट होती है, जिसमें सब कुछ मेंटेन रहता है। पर क्या ये सही है? इस बारे में मोनोचिकिसक प्रांजलि जी का कहना है कि माता पिता को ये सोचना चाहिए कि वो भी एक इंसान हैं। इसलिए बच्चों के सामने स्ट्रॉन्ग बनने से अच्छा है कि अगर आप दुखी व परेशान हैं तो उनके सामने रोने से बचें नहीं आंसू को बहने दें। इससे आपकी छवि खराब नहीं होगी बल्कि बच्चा कई बातों को आसानी से जान पायेगा।
ऐसी स्थिति में क्या करें
जब आप बहुत परेशान हो तो रोने में कंजूसी ना करें बल्कि खुलकर रोयें ताकि बच्चे को भी पता चले कि परेशानी आपको भी हो सकती है। और बच्चा बहुत बातें बिना कहे भी जान जाएगा जैसे -
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रोना असमान्य बात नहीं
बच्चे को अक्सर माता-पिता सिखाते हैं कि रोना कमजोरी की निशानी होती है पर ये गलत है। ये सोच उनकी भावना को बाहर नहीं आने देगा इसलिए अगर आप उनके सामने रोते हैं तो उनको समझ आज जाएगा कि रोना कमजोरी नहीं होती बल्कि भावनाओं को किसी भी रूप में बाहर निकाला जा सकता है। फिर चाहे वो हॅसना या रोना हो बस उसे व्यक्त करने का अलग तरीका होता है।
सहारा बनेगा
अगर आपको किसी बात पर रोना आ रहा है तो बच्चे से छुपने के बजाये उसके सामने रोयें ताकि आपको रोता देख कर वो आपको चुप कराने आए (जैसा आप उसके साथ करते या करती है जब वो रोता है ) अगर आपको ऐसा लगें कि वो आपको रोता देख डर गया या परेशान हो गया है तो आप खुद उसके गले लग कर रोयें ताकि आप की फीलिंग को वो समझ पाएं।
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तालमेल बिठाने में सक्षम हो जाएगा
रोने में शर्माए नहीं
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