आखिर क्यों मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा होने के बाद टूट जाता है सामने रखा शीशा?

अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा पूरे देशवासियों के लिए बहुत खास था, तभी तो लोग आज भी प्राण प्रतिष्ठा से जुड़ी जानकारी और प्रोसेस के बारे में जानने के लिए अभी तक उत्सुक हैं।

 
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22 जनवरी को अयोध्या में हुए राम लला के मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के बाद देश में श्रद्धालुओं में एक अलग तरह की उत्साह देखी गई है। प्राण प्रतिष्ठा से जुड़े लोगों के मन में तमाम तरह के सवाल उठ रहे हैं। लोग सोशल मीडिया और गूगल में मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा से जुड़ी कई तरह के सवाल और प्रक्रिया के बारे में खोज रहे हैं। बहुत से लोगों के मन में राम लला के मुर्ती को देखने के बाद यह सवाल उठ रहा है कि आखिर क्यों प्राण प्रतिष्ठा से पहले तक मूर्ति की आंखों में पट्टी बांधी जाती है और प्राण प्रतिष्ठा के बाद सामने रखा शीशा क्यों टूट जाता है? यदि आपके भी मन में प्राण-प्रतिष्ठा को लेकर इस तरह के सवाल चल रहा है, तो चलिए जान लेते हैं पंडित जी से।

प्राण प्रतिष्ठा के दौरान क्यों टूट जाता है शीशा?

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आचार्य शिवम पाठक जी ने मूर्ति के सामने रखे शीशा का टूट जाने को लेकर बताया कि किसी भी मूर्ति के प्राण प्रतिष्ठा होने से पहले, भगवान की मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा विधि होती है, कई दिनों तक पूजा-अनुष्ठान और वैदिक मंत्रों का पाठ होता है। बहुत से जगहों में प्राण-प्रतिष्ठा के दौरान शीशा रखा जाता है, जो प्राण-प्रतिष्ठा होने के बाद टूट जाता है। प्राण प्रतिष्ठा (प्राण प्रतिष्ठा विधि) से पहले तक मूर्ति की आंखों को ढका जाता है और प्राण प्रतिष्ठा होने के बाद पट्टी खोल दी जाती है। मंत्रोच्चार और पूजा अनुष्ठान से भगवान की मूर्ति के अंदर विशिष्ट ऊर्जा आती है और भगवान के आंखों से पट्टी खोलने के बाद शीशा टूट जाती है। शीशा टूटने को लेकर यह मान्यता है कि भगवान की मूर्ति में वह तेज और ऊर्जा होती है, वह सीधे शीशे में पड़ती है, जिससे मूर्ति के सामने रखा शीशा टूट जाता है।

चक्षु उन्मीलन क्या है?

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प्राण प्रतिष्ठा के दौरान भगवान की मूर्ति के आंखों में पट्टी बांधी जाती है और मंत्रोच्चार के साथ पट्टी खोली जाती है, जिसके बाद शीशा टूट जाता है। प्राण प्रतिष्ठा के दौरान की जाने वाली इस प्रक्रिया को शास्त्रों में चक्षु उन्मीलन कहा जाता है। लगातार कई दिनों से प्राण प्रतिष्ठा के लिए या मूर्ति में प्राण डालने के लिए वैदिक मंत्रों का पाठ होते रहता है। इस मंत्रोच्चार और पाठ में इतनी शक्ति और तेज होती है कि यह भगवान के सामने रखे कांच के शीशे को तोड़ देती है। आचार्य जी के अनुसार प्राण प्रतिष्ठा के दौरान भगवान की आंखों को तुरंत देखने के बजाए उनके चरणों को देखते हुए ऊपर की ओर देखते हुए अंत में उनके चहरे को देखें।

आचार्य जी ने मूर्ति के सामने शीशा रखने वाली विधि के बारे में बताया है कि यह हर जगह नहीं होता है। सभी जगह की अलग-अलग मान्यताएं हैं, लेकिन प्राण प्रतिष्ठा के लिए वैदिक मंत्रोच्चार बहुत जरूरी है। प्राण प्रतिष्ठा के बाद मूर्ति में प्राण आ जाती है और उसके बाद भगवान की मूर्ति जीवित हो जाती है। किसी भी भगवान की मूर्ति की जब प्राण प्रतिष्ठा होती है, तब मूर्ति में अलग तेज और चमक देखने लायक हो जाती है। आप यकीन नहीं करेंगे लेकिन प्राण-प्रतिष्ठा के बाद और पहले की मूर्ति में बहुत अंतर और बदलाव देखने को मिलता है।

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Image Credit: (Reddit.com & Instagram-ayodhyanagri_ram324)

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